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Wednesday, 27 March 2024

केंद्रीय विद्यालय गोपेश्वर में वार्षिक परीक्षा के उपरांत परिणामों की घोषणा हुई 2023-24

 केंद्रीय विद्यालय गोपेश्वर में वार्षिक परीक्षा के उपरांत परिणामों की घोषणा हुई 



       केंद्रीय विद्यालय गोपेश्वर में कक्षा 1 से कक्षा 9 और कक्षा 11 (मानविकी एवं विज्ञान) का परीक्षा परिणाम दिनांक 27 मार्च 2024 को परीक्षा प्रभारी श्री नितिन कुमार देवरानी द्वारा घोषित किया गया। इसमें सभी कक्षाओं का परिणाम बेहतर रहा । प्राचार्य श्री गजेंद्र सिंह ने बताया कि कक्षा दो से दसवीं और बारहवीं (कला-विज्ञान) की नियमित कक्षाएँ एक अप्रैल से शुरू हो जाएँगी। उन्होंने विद्यार्थियों को लगातार परिश्रम करने तथा अनुशासन में रहने की सलाह दी। 


     साथ ही पुस्तकालय-अध्यक्षा सुश्री श्रद्धा ग़ैरोला द्वारा विद्यार्थियों को ‘पुस्तकोपहार’ कार्यक्रम के अंतर्गत अपनी पुस्तकें दान करने हेतु प्रेरित किया गया ताकि काग़ज़ बचाकर , पेड़ों को काटने से बचाया जा सके।




Tuesday, 12 March 2024

कहानी ‘एक रुपया’ - घनश्याम शर्मा story - ek rupaya

                                               एक रुपया 

                   ✍️ घनश्याम शर्मा



               “यदि कंडक्टर ने किराया माँग लिया तो?? माँगेगा तो ज़रूर । फिर उसे कह दूँगा कि नहीं है । प्यार से कहूँगा कि नहीं है तो मानेगा? शायद ग़ुस्से से कह दूँगा ? कह पाऊँगा ? हरियाणवी में कहूँगा तो अवश्य ही डर जाएगा वो और दोबारा पैसे माँगेगा ही नहीं । जैसे रामफल कह्या करै! भाड़ा कोन्या बॉस , इब के झोटड़ी खोलैगा?”

यही कुछ सोचता हुआ स्वप्न एक प्राईवेट बस से नारनौल से अपने गाँव आ रहा था। 


              उसके विद्यालय की छुट्टी जल्दी हुई थी । आज हरियाणा रोडवेज़ से नहीं जा पाएगा क्योंकि रोडवेज़ बस के आने में अभी देर है। हरियाणा रोडवेज़ का तो पास बन रखा है किंतु घरवालों के पास इतना पैसा नहीं है कि प्राईवेट वाहनों का भी किराया देते फिरें। आर्थिक स्थिति सच में इतनी अच्छी नहीं थी कि सरकारी बस का ही पास बनवा सकें । वो तो जैसे-तैसे पैसे एकत्र करके बनवा दिया था। 


             

              प्राईवेट बसें भी तो बिना ईंधन नहीं चलती । कंडक्टर-ड्राइवर को भी वेतन देना , बस का रख-रखाव, और भी बहुत सारे झंझट … पर स्वप्न या अन्य पढ़ने जाने वाले लड़कों को इससे क्या ? 


            कंडक्टर आया । किराया माँगा। स्वप्न लगा बग़लें ताकने। उसे पता था कि किराया तो है नहीं तेरे पास … साथ ही ग़लत कंडक्टर नहीं तू स्वयं है। ‘उलटा चोर कोतवाल को डाँटे’ ये स्वप्न का नहीं सकता था और प्यार से ही कहा “भाई , किराया तो नहीं है। छुट्टी जल्दी हो गई थी। चौक पर आया तो यह बस खड़ी दिखी । चढ़ गया हिम्मत करके। सरकारी बस का तो पास है देखिए ।” 


         “किराया नहीं तो बस आते ही क्यों हो? ये कोई पानी से थोड़ी चलती है… और भी न जाने क्या-क्या…” कंडक्टर कहता रहा ।


        तभी पिछली जेब से पर्स निकालने लगा स्वप्न । कंडक्टर थोड़ा शांत हुआ । पूरा पर्स दिखाकर कहा स्वप्न ने ‘भाई बस ये एक रुपया है। ये रख लो । बाक़ी तो दे नहीं पाऊँगा।”  स्वप्न यह भी नहीं कह पा रहा था कि बाद में दे दूँगा । क्योंकि उसे पता था कि अभी कई वर्ष वह नहीं दे पाएगा।



         जब हम शालीन होकर पूरे आत्मविश्वास के साथ कोई बात कहते हैं और हमें पता है कि हम सच बोल रहे हैं तो सामने वाले पर इस बात का गहरा असर होता है। 


         यही हुआ कंडक्टर ने एक रुपया लिया। माथे पर लगाया कि तेरा ये रुपया मैं कहीं ख़र्च नहीं करूँगा । हमेशा अपने पास रखूँगा । तेरी बातों में तेज़ है । तेरे इस एक रुपए में भी तेज़ होगा । ऐसा कहते-कहते कंडक्टर ने रुपया अपने बटुए में रख लिया।


        इन बातों को बीस वर्ष बीत चुके थे। स्वप्न एक बड़े शहर में एक बहुत बड़ी कम्पनी चला रहा था । इस बार रामनवमी के मेले पर वह गाँव लौटा । गाँव का मेला देखे उसे बहुत साल हो गए थे। डीएम साहब ने मेले की व्यवस्थाएँ स्वयं सम्भाल रखी थीं। डीएमसाहब और स्वप्न एक-दूसरे को जानते थे। दोनों बातें कर ही रहे थे तभी विधायकजी का आगमन हुआ । 


          विधायकजी स्वयं ही उधर आ रहे थे । सबमें राम-राम हुई। विधायक जी और स्वप्न एक-दूसरे को पहचानने की कोशिश कर रहे थे। डीएम साहब ने बताया कि विधायकजी का बस का कारोबार है । बसों के मामले में क्षेत्र के नामी हैं विधायकजी । 


        तभी विधायक जी ने अपना पर्स निकाला और एक रुपए का सिक्का भी। स्वप्न पहचान गया । दोनों की नज़रें मिलीं । आँखें नम हुईं। 


         विधायक जी बोले, कि मैं देखते ही आपको पहचान गया था। आपके मुख मंडल पर एक सौम्यता है, शांति है, आकर्षण है, तेज़ है। उस समय भी इसी दिव्यता ने मुझे मोह लिया था। आपकी विनम्रता परखने के लिए ही मैंने आपा खोने का नाटक किया था, परंतु आपकी विनम्रता कम न हुई। ये रुपया भी नहीं लेने वाला था , पर आपको अखरता कि बिना किराए यात्रा की। अतः लिया ।


         कामयाबी का राज जानने पर विधायक जी ने बताया कि मेरा उद्देश्य पैसे कमाना था ही नहीं। बस यहाँ बसें कम थीं तो एक पुरानी बस से शुरुआत की। लोगों से मेल-मिलाप बढ़ता रहा। अच्छे लोगों को सदा के लिए सेव करता रहा। मैं अच्छी तरह जानता था कि विश्वास में शक्ति है, सो इस रुपए को विश्वास की शक्ति मानकर चलता रहा । साथ ही अच्छे लोगों और उनकी वस्तुओं के पास ग़ज़ब की चमत्कारी ताक़त होती है। ऐसे लोगों और वस्तुओं को एकत्र करता रहा । 


        बस के कारोबार पर ध्यान दिया। धीरे-धीरे  कई बसें होतीं गई । सामाजिक शुरू से ही हूँ। सामाजिक कार्य करता रहा। लोग जुड़ते गए। 

चुनाव आया। साथियों ने ज़बरदस्ती खड़ा कर दिया। जीत गया। 


           डीएम और स्वप्न बड़े मनोयोग से विधायक जी की बातें सुन रहे हैं। 

  

        सच ही कहा है , विश्वास में बड़ी ताक़त होती है। यदि व्यक्ति स्वयं पर विश्वास कर ले तो वह कोई भी वस्तु , कोई भी पद पा सकता है।





Saturday, 9 March 2024

विमान की पहली परीक्षा (लघुकथा) ✍️घनश्याम शर्मा । लघुकथा लेखन । नवीं हिंदी। लघुकथा लेखन




 विमान की पहली परीक्षा 

          ✍️घनश्याम शर्मा 



          “चल यार ! आज तो तू एक बार भी बाहर घूमने नहीं गया क्लास से , देख तो लंच टाइम भी हो गया है।” विमान का दोस्त टैंक लापरवाही से बोला । 

          “तुम जाओ दोस्त ! आज मैंने रामानुज की नोटबुक ले रखी है। लंच टाइम तक सारा गणित का काम पूरा करना है और आज काम करके ही कहीं जाऊँगा या कुछ खाऊँगा” आत्मविश्वास के साथ विमान बोला ।

         “क्या यार तू भी उस रामानुज की कोपी लाया है। देखा नहीं उसके कारण पिछली बार हम चारों को डाँट पड़ी थी । यदि वो भी काम न करे तो हम सब बच सकते हैं । पर वो हमेशा काम समय पर करता है और उसके कारण टीचर और मम्मी-पापा ग़ुस्सा हम पर होते हैं।” लगभग चिढ़ते हुए टैंक बोला । 


        “देख दोस्त, रामानुज बहुत अच्छा लड़का है। उसके पापा देहरादून में सब्ज़ी का ठेला लगाते हैं,कई-कई दिन घर नहीं आते ताकि रामानुज और उसकी छोटी बहन को ठीक से पढ़ा सकें । … और मुझे गर्व है रामानुज पर कि वो अपने माता-पिता का सपना पूरा करने के लिए एक पल भी ख़राब नहीं करता बल्कि पढ़ाई और काम में जुटा रहता है। मित्र टैंक ! रामानुज ही अपने पेरेंट्स को सच में चाहता है। हम तो बस पेरेंट्स की चिंता ही बढ़ा रहे थे । परंतु अब से मैंने निश्चय किया है कि मैं रामानुज से बढ़कर अपने घर की सहायता करने वाला हूँ और ...और ख़ूब पढ़ने वाला हूँ।” बहुत ही समझदारी और धैर्य से विमान ने कहा। 


       “मेरे प्रिय मित्र विमान, मैंने तो इतना सोचा ही नहीं था । मेरे पापा भी निजी विद्यालय में शिक्षक हैं । बहुत मेहनत करते हैं । मुझे लेकर चिंतित रहते हैं। अब मैं भी सारा काम करके पापा को सरप्राइज़ दूँगा और इस बार मेरे सारे अध्यापकगण पीटीएम में मेरी प्रशंसा ही करेंगे । धन्यवाद दोस्त सही राह दिखाने के लिए। भाग्यशाली हूँ कि तू मेरा दोस्त है।” ख़ुशी , उत्साह और दृढ़ता के साथ टैंक ने कहा । 


      ये थी विमान की पहली परीक्षा । अभी तो बहुत-सी और परीक्षाएँ होंगी । 


     मनुष्य जब भी कोई प्रतिज्ञा लेता है, निश्चय करता है तो उसे हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि अब परीक्षाओं का एक दौर शुरू होगा । ये ज़रूरी भी है। परीक्षाओं का आना ही इंगित करता है कि हम सही राह पर हैं और अब मिलेगी ही सफलताएँ और ख़ुशियाँ । 


~ घनश्याम शर्मा 

केंद्रीय विद्यालय गोपेश्वर 


मोब. - 8278677890

मेल :— jaimaranisati@gmail.com

और विमान बदल गया (लघुकथा) ✍️घनश्याम शर्मा नवीं हिंदी लघुकथा लेखन

 

लघुकथा - लेखन 

कक्षा - नवीं 


….और विमान बदल गया 

                         ✍️घनश्याम शर्मा


           

           आज विमान फिर एक कोने में बैठा सुबक रहा था । काफ़ी दिनों से वो अपने पापा से नया मोबाइल दिलवाने की ज़िद कर रहा था , क्योंकि विद्यालय में सब स्मार्टफ़ोन से कक्षाएँ ले रहे थे । आज फिर वो ठीक से कक्षाएँ नहीं ले पाया । विमान को अपने पापा पर बड़ा ग़ुस्सा आ रहा था कि एक मोबाइल तक उसके पापा नहीं ख़रीद रहे । 


           ग़ुस्सा नियंत्रण से बाहर हो रहा था ।विमान ने निर्णय लिया कि आज पापा पर ग़ुस्सा वहीं उतारूँगा, जहाँ वो काम करते हैं। 

अतः वो चल पड़ा ऑटो रिक्शा स्टैंड की ओर ।


            स्टैण्ड पर भीड़ थी । एक आदमी बीच में लगभग अधमरा पड़ा था । लोगों द्वारा पूछने पर उसने बताया कि उसने पिछले काफ़ी दिनों से पेटभर खाना नहीं खाया , सो हल्के -से चक्कर आ गए, पर उसकी हालत ज़्यादा ख़राब थी । बातों-बातों में पता चला कि बेटे को ऑनलाइन पढ़ाने के लिए एक मोबाइल लेना था । घर में इतने पैसे नहीं थे । अपना खाना कम करके ही पैसे जमा कर रहे थे, ताकि बेटे को सब सुविधाएँ दे सकें और पढ़-लिखकर परिवार को तंगहाली से बाहर निकाल सके। 


           विमान सबकुछ सुन रहा था । ये विमान के पापा ही थे ।


          तभी विमान को याद आया कि कैसे वो कक्षा में मस्ती करता रहता है, गृहकार्य नहीं करता, अध्यापकगण से डाँट सुनता है, बहुत ज़्यादा बातें करता है, कई बार घर के पैसे फ़ालतू में ख़र्च कर देता है, कम अंक लाता है, खेलों, आर्ट, संगीत आदि को भी मज़ाक़ में लेता है, जबकि उसके पापा सपना देख रहे हैं कि विमान बड़ा आदमी बनकर परिवार को ग़रीबी के दलदल से बाहर निकालेगा । 


        सोचते-सोचते विमान की आँखों ने कब उसके गालों को गीला कर दिया, पता ही नहीं चला। उसने मुट्ठी भींचकर प्रण किया कि अब से वो एक-एक पल का सदुपयोग करेगा । पढ़ाई के साथ ही घर के कामों में भी हाथ बँटाएगा, पापा का सहयोग करेगा और सबसे बढ़कर पढ़ेगा … ख़ूब पढ़ेगा । जैसे ही विमान ये दृढ़ निश्चय किया , वैसे ही उसने पाया कि उसके शरीर में अपार शक्ति समा गई है। वो ऊर्जा, सकारात्मकता और पवित्रता से भर गया है। 


        किसी ने सच ही कहा है , माता-पिता को सच्चा प्यार करने वाला बच्चा हमेशा कुछ रचनात्मक करता रहता है, पढ़ाई भी करता है और समय का हमेशा आदर करता है। 


~ घनश्याम शर्मा

केंद्रीय विद्यालय गोपेश्वर 


  


          




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