परम आदरणीय डॉ रवींद्र कुमार दुबे सर ...
विनम्रता, ज्ञान-विद्वता और सौम्यता की साक्षात प्रतिमूर्ति।
मैं जब भुवनेश्वर प्रथम पोस्टिंग पाकर गया तो कुछ समय बाद ही सर से भेंट हुई। सर का अथाह अनुभव और मेरी तो बस नौकरी की शुरुआत ही थी... तब भी जो सम्मान सर ने दिया, हृदय आज तक भुला नहीं पाया और न कभी भुला सकेगा...
सर ने कभी किसी भी व्यक्ति को छोटा महसूस होने ही नहीं दिया और मुझे तो सर से हमेशा विशेष स्नेह मिलता रहा जबकि न मैं उतना बड़ा विद्वान ही हूं और न ही अन्य कोई विशेष गुण है मुझमें...
संगठन ने जुड़ने के एक वर्ष बाद हमारा इंडक्शन कोर्स हुआ, सर हमारे संसाधक बनकर आए और पहले आधे घंटे में ही सबके चहेते बन गए , हम प्रतिभागी उनकी प्रशंसा करते न अघाते थे... यद्यपि तब तक मेरा परिचय सर से हुए एक वर्ष के करीब हो गया था और हम बहुत बार मिल चुके थे कभी घर पर, कभी कॉपी जांच के दौरान, कभी आरआईई एनसीईआरटी या कभी अन्य सरकारी काम काज के दौरान ... और मैंने देखा कि कंप्यूटर से लेकर मोबाइल, पुस्तकों से लेकर नित बदलते पाठ्यक्रम... सबमें माहिर हैं सर और लगातार सीखने के इच्छुक भी हैं....
इंडेक्शन कोर्स में सबसे अच्छा सर ने ही पढ़ाया, ये बात सभी प्रतिभागी स्नातकोत्तर शिक्षकों ने कही...
मेरे कुछ ऐसे अनुभव रहे जिन्होंने शिक्षकों के प्रति, समाज के प्रति , मनुष्य के प्रति मुझे और अधिक सकारात्मक, आशावान बना दिया... एक बार मुझे कोई पेपर बनाना था, नया होने के कारण और हिंदी टाइपिंग में हाथ तंग होने से यह कार्य मेरे लिए टेढ़ी खीर होता जा रहा था, सर ने न केवल हर प्रकार से मार्गदर्शन किया बल्कि बारह तेरह किलोमीटर बाइक से चलकर एक पुस्तक साथ ले आए और अपने छोटे बेटे को भी साथ लाए , जो उस समय सातवीं में थे... इस प्रकार की या इससे भी बढ़कर सहायता उन्होंने मेरी अकेले की ही नहीं की बल्कि कई साथियों की सहायता की....
एक और किस्सा है, एनसीईआरटी में उस दौरान पाठों के वीडियो बनते और शायद ज्ञानदर्शन आदि चैनल पर जाते थे.. मेरे भी एक वीडियो की शूटिंग होनी थी, यह अवसर मुझे सर ने ही दिलवाया था, इसके 2500/- रूपए भी दिलवाए सर ने और इसके लिए पीपीटी बनानी थी, जो मुझसे न बन सकी और मैं पूरे तरीके से इसमें फेल हो गया था... अगले ही दिन शूटिंग थी, सर से बात हुई ... सर ने कहा कि रात बारह बजे से सुबह तक जितने भी समय में अच्छी सी दो पीपीटी बनती हैं, मैं बनाता हूं, आप तब तक इसकी सामग्री देख लो... यह कार्य तीन दिनों का था कम से कम, क्योंकि एनसीईआरटी के लिए पीपीटी बनाने के कुछ नियम थे, पीपीटी उन नियमों अनुसार ही होनी चाहिए थी... सर ने न केवल पीपीटी बनाई बल्कि अगले दिन मेरे साथ भी गए, मेरा हौसला भी बढ़ाया... और बदले में कुछ नहीं मांगा कभी भी....
जब अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा था, तब सर को जैसे ही पता चला, तुरंत अपने परिवार और अपने दोस्तों सहित मेरी मदद को घर पर आ गए, कॉल से मेरा हालचाल लेते रहते और जब जब मुझे आवश्यकता रही भुवनेश्वर में सर हमेशा तत्पर रहे... साथ ही अन्य केवीएस के साथी , जिन्हें मुझसे कुछ सहायता चाहिए होती और मैं यदि असमर्थ रहता तो तुरन्त सर से संपर्क करता ... या तो सर सहायता भेज देते या स्वयं उन सहायता के इच्छुक अध्यापक से बात करके यथासंभव उनकी सहायता करते ...
एक बार हमने ऑनलाइन फ्री मार्गदर्शन शुरू किया था... यही कार्य करने के कुछ संस्थान पंद्रह से तीस हजार तक चार्ज करते थे, जबकि हम लोग केवल संसार की , जीवों की भलाई में योगदान मांगते कि अच्छाइयां फैलती रहें... ऐसी स्थिति में जब सर को न हम कोई अन्य लाभ दे पाते और न ही पैसा ही दे पाते तब भी सर हमारी सहायतार्थ खुशी खुशी तैयार हो गए और अब वो एपिसोड यूट्यूब पर हैं...
अब भी किसी भी प्रकार की कोई भी सहायता चाहिए होती है तो सर हमेशा तैयार रहते हैं... शायद पिछले बीस से अधिक कॉल मैने उनसे सहायता या मार्गदर्शन के लिए ही किए और सर ने हमेशा मदद ही की...
सर के विद्यार्थी भी सर को बहुत मानते हैं और बहुत श्रद्धा रखते हैं सर में... अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को बखूभी निभाते हुए, संगठन के कार्यों को अंजाम तक पहुंचाते दुबे सर उन लोगों के लिए अनुकरणीय उदाहरण हैं , जो कहते हैं संगठन के काम के साथ भलाई नहीं हो सकेगी या यह भी कि संगठन में रहते रहते आदमी शैतान हो जाता है...
भगवान सर को शानदार स्वास्थ्य, धनदौलत, बच्चों को सफलता और घर में हर प्रकार की , खुशी समृद्धि प्रदान करते रहें... संसार के लिए रत्न होते हैं ऐसे शानदार व्यक्तित्व ... सौभाग्यशाली हैं कि सर से मिल सका...
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