एक रुपया
✍️ घनश्याम शर्मा
“यदि कंडक्टर ने किराया माँग लिया तो?? माँगेगा तो ज़रूर । फिर उसे कह दूँगा कि नहीं है । प्यार से कहूँगा कि नहीं है तो मानेगा? शायद ग़ुस्से से कह दूँगा ? कह पाऊँगा ? हरियाणवी में कहूँगा तो अवश्य ही डर जाएगा वो और दोबारा पैसे माँगेगा ही नहीं । जैसे रामफल कह्या करै! भाड़ा कोन्या बॉस , इब के झोटड़ी खोलैगा?”
यही कुछ सोचता हुआ स्वप्न एक प्राईवेट बस से नारनौल से अपने गाँव आ रहा था।
उसके विद्यालय की छुट्टी जल्दी हुई थी । आज हरियाणा रोडवेज़ से नहीं जा पाएगा क्योंकि रोडवेज़ बस के आने में अभी देर है। हरियाणा रोडवेज़ का तो पास बन रखा है किंतु घरवालों के पास इतना पैसा नहीं है कि प्राईवेट वाहनों का भी किराया देते फिरें। आर्थिक स्थिति सच में इतनी अच्छी नहीं थी कि सरकारी बस का ही पास बनवा सकें । वो तो जैसे-तैसे पैसे एकत्र करके बनवा दिया था।
प्राईवेट बसें भी तो बिना ईंधन नहीं चलती । कंडक्टर-ड्राइवर को भी वेतन देना , बस का रख-रखाव, और भी बहुत सारे झंझट … पर स्वप्न या अन्य पढ़ने जाने वाले लड़कों को इससे क्या ?
कंडक्टर आया । किराया माँगा। स्वप्न लगा बग़लें ताकने। उसे पता था कि किराया तो है नहीं तेरे पास … साथ ही ग़लत कंडक्टर नहीं तू स्वयं है। ‘उलटा चोर कोतवाल को डाँटे’ ये स्वप्न का नहीं सकता था और प्यार से ही कहा “भाई , किराया तो नहीं है। छुट्टी जल्दी हो गई थी। चौक पर आया तो यह बस खड़ी दिखी । चढ़ गया हिम्मत करके। सरकारी बस का तो पास है देखिए ।”
“किराया नहीं तो बस आते ही क्यों हो? ये कोई पानी से थोड़ी चलती है… और भी न जाने क्या-क्या…” कंडक्टर कहता रहा ।
तभी पिछली जेब से पर्स निकालने लगा स्वप्न । कंडक्टर थोड़ा शांत हुआ । पूरा पर्स दिखाकर कहा स्वप्न ने ‘भाई बस ये एक रुपया है। ये रख लो । बाक़ी तो दे नहीं पाऊँगा।” स्वप्न यह भी नहीं कह पा रहा था कि बाद में दे दूँगा । क्योंकि उसे पता था कि अभी कई वर्ष वह नहीं दे पाएगा।
जब हम शालीन होकर पूरे आत्मविश्वास के साथ कोई बात कहते हैं और हमें पता है कि हम सच बोल रहे हैं तो सामने वाले पर इस बात का गहरा असर होता है।
यही हुआ कंडक्टर ने एक रुपया लिया। माथे पर लगाया कि तेरा ये रुपया मैं कहीं ख़र्च नहीं करूँगा । हमेशा अपने पास रखूँगा । तेरी बातों में तेज़ है । तेरे इस एक रुपए में भी तेज़ होगा । ऐसा कहते-कहते कंडक्टर ने रुपया अपने बटुए में रख लिया।
इन बातों को बीस वर्ष बीत चुके थे। स्वप्न एक बड़े शहर में एक बहुत बड़ी कम्पनी चला रहा था । इस बार रामनवमी के मेले पर वह गाँव लौटा । गाँव का मेला देखे उसे बहुत साल हो गए थे। डीएम साहब ने मेले की व्यवस्थाएँ स्वयं सम्भाल रखी थीं। डीएमसाहब और स्वप्न एक-दूसरे को जानते थे। दोनों बातें कर ही रहे थे तभी विधायकजी का आगमन हुआ ।
विधायकजी स्वयं ही उधर आ रहे थे । सबमें राम-राम हुई। विधायक जी और स्वप्न एक-दूसरे को पहचानने की कोशिश कर रहे थे। डीएम साहब ने बताया कि विधायकजी का बस का कारोबार है । बसों के मामले में क्षेत्र के नामी हैं विधायकजी ।
तभी विधायक जी ने अपना पर्स निकाला और एक रुपए का सिक्का भी। स्वप्न पहचान गया । दोनों की नज़रें मिलीं । आँखें नम हुईं।
विधायक जी बोले, कि मैं देखते ही आपको पहचान गया था। आपके मुख मंडल पर एक सौम्यता है, शांति है, आकर्षण है, तेज़ है। उस समय भी इसी दिव्यता ने मुझे मोह लिया था। आपकी विनम्रता परखने के लिए ही मैंने आपा खोने का नाटक किया था, परंतु आपकी विनम्रता कम न हुई। ये रुपया भी नहीं लेने वाला था , पर आपको अखरता कि बिना किराए यात्रा की। अतः लिया ।
कामयाबी का राज जानने पर विधायक जी ने बताया कि मेरा उद्देश्य पैसे कमाना था ही नहीं। बस यहाँ बसें कम थीं तो एक पुरानी बस से शुरुआत की। लोगों से मेल-मिलाप बढ़ता रहा। अच्छे लोगों को सदा के लिए सेव करता रहा। मैं अच्छी तरह जानता था कि विश्वास में शक्ति है, सो इस रुपए को विश्वास की शक्ति मानकर चलता रहा । साथ ही अच्छे लोगों और उनकी वस्तुओं के पास ग़ज़ब की चमत्कारी ताक़त होती है। ऐसे लोगों और वस्तुओं को एकत्र करता रहा ।
बस के कारोबार पर ध्यान दिया। धीरे-धीरे कई बसें होतीं गई । सामाजिक शुरू से ही हूँ। सामाजिक कार्य करता रहा। लोग जुड़ते गए।
चुनाव आया। साथियों ने ज़बरदस्ती खड़ा कर दिया। जीत गया।
डीएम और स्वप्न बड़े मनोयोग से विधायक जी की बातें सुन रहे हैं।
सच ही कहा है , विश्वास में बड़ी ताक़त होती है। यदि व्यक्ति स्वयं पर विश्वास कर ले तो वह कोई भी वस्तु , कोई भी पद पा सकता है।
जबरदस्त प्रेरणा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना,अत्यंत प्रेरणादायक।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कहानी..
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