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Friday, 24 April 2020

दसवीं -छाया मत छूना गिरिजाकुमार माथुर

प्रश्न अभ्यास

1. कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है क्योंकि यही सत्य है। कवि कहते है कि भूली-बिसरी यादें या भविष्य के सपने मनुष्य को दुखी ही करते है। हम यदि जीवन की कठिनाइयों व दु:खों का सामना न कर उनको अनदेखा करने का प्रयास करेंगे तो हम स्वयं किसी मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकते। मनुष्य को जीवन की कठिनाइयों को यथार्थ भाव से स्वीकार उनसे मुँह न मोड़कर उसके प्रति सकारात्मक भाव से उसका सामना करना चाहिए। तभी स्वयं की भलाई की ओर एक कदम उठाया जा सकता हैनहीं तो सब मिथ्या ही है।

2. भाव स्पष्ट कीजिए -
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।

उत्तर
प्रस्तुत पंक्ति प्रसिद्ध कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित छाया मत छूना’ नामक कविता से ली गई है।  भाव यह है कि मनुष्य सदैव प्रभुता व बड़प्पन के कारण अनेकों प्रकार के भ्रम में उलझ जाता हैउसका मन विचलित हो जाता है। जिससे हज़ारों शंकाओ का जन्म होता है। इसलिए उसे इन प्रभुता के फेरे में न पड़कर स्वयं के लिए उचित मार्ग का चयन करना चाहिए। हर प्रकाशमयी (चाँदनी) रात के अंदर काली घनेरी रात छुपी होती है। अर्थात् सुख के बाद दुख का आना तय है। इस सत्य को जानकर स्वयं को तैयार रखना चाहिए। दोनों भावों को समान रुप से जीकर ही हम मार्गदर्शन कर सकते हैं न कि प्रभुता की मृगतृष्णा में फँसकर।
3. 'छायाशब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ हैकवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?

उत्तर
छाया शब्द से तात्पर्य जीवन की बीती मधुर स्मृतियाँ हैं। कवि के अनुसारहमारे जीवन में सुख व दुख कभी एक समान नहीं रहता परन्तु उनकी मधुर व कड़वी यादें हमारे दिमाग में स्मृति के रुप में हमेशा सुरक्षित रहती हैं। अपनेवर्तमान के कठिन पलों को बीते हुए पलों की स्मृति के साथ जोड़ना हमारे लिए बहुत कष्टपूर्ण हो सकता है। वह मधुर स्मृति हमें कमज़ोर बनाकर हमारे दुख को और भी कष्टदायक बना देती है। इसलिए हमें चाहिए कि उन स्मृतियों को भूलकर अपने वर्तमान की सच्चाई को यथार्थ भाव से स्वीकार कर वर्तमान को भूतकाल से अलग रखें।
4. कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता हैजैसे कठिन यथार्थ। कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर

1. 
दुख दूना - यहाँ दुख दूना में दूना (विशेषण) शब्द के द्वारा दुख की अधिकता व्यक्त की गई है।
2. 
जीवित क्षण - यहाँ जीवित (विशेषण) शब्द के द्वारा क्षण को चलयमान अर्थात् उसके जीवंत होने को दिखाया गया है।
3. 
सुरंग-सुधियाँ - यहाँ सुरंग (विशेषण) शब्द के द्वारा सुधि (यादों) का रंग-बिरंगा होना दर्शाया गया है।
4. 
एक रात कृष्णा - यहाँ एक कृष्णा (विशेषण) शब्द द्वारा रात की कालिमा अर्थात् अंधकार को दर्शाया गया है।
5. शरद रात - यहाँ शरद (विशेषण) शब्द रात की रंगीनी और मोहकता को उजागर कर रहा है।
6. 
रस बसंत - यहाँ रस (विशेषण) शब्द बसंत को और अधिक रसीलामनमोहक और मधुर बना रहा है।

5. 'मृगतृष्णाकिसे कहते हैंकविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर
गर्मी की चिलचिलाती धूप में रेत के मैदान दूर पानी की चमक दिखाई देती है हम वह जाकर देखते है तो कुछ नहीं मिलता प्रकृति के इस भ्रामक रूप को'मृगतृष्णाकहा जाता है। इसका प्रयोग कविता में प्रभुता की खोज में भटकनेके संदर्भ में हुआ है। इस तृष्णा में फँसकर मनुष्य हिरन की भाँति भ्रम में पड़ा हुआ भटकता रहता है।
6. 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेयह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
 इन पंक्तियों में 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेका भाव झलकता है।
7. कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

'
छाया मत छूनाकविता में कवि ने मानव की कामनाओं-लालसाओं के पीछे भागने की प्रवृत्ति को दुखदायी माना है क्योंकिं इसमें अतृप्ति के सिवाय कुछ नहीं मिलता। हम विगत स्मृतियों के सहारे नहीं जी सकतेहमें वर्तमान में जीना है। उन्हें छूकर याद करने से मन में दुख बढ़ जाता है। दुविधाग्रस्तमन:स्थिति व समयानुकूल आचरण न करने से भी जीवन में दुख आ सकता है। व्यक्ति प्रभुता या बड़प्पन में उलझकर स्वयं को दुखी करता है।
भावार्थ
प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य को बीते लम्हों की याद ना कर भविष्य कीओर ध्यान देने को कहा है। कवि कहते हैं कि अपने अतीत को याद कर किसी मनुष्य का भला नही होता बल्कि मन और दुखी हो जाता है। हमारे जीवन में अनेक रंग-बिरंगी यादों की सुहावनी बेला आती हैजिनके सहारे व्यक्ति अपना सारा जीवन बिता देना चाहता है परन्तु कवि कहते हैं कि अब वे क्षण बीत चुके हैं। भले ही उनकी खुशबू चारों तरफ फैली हुई है परन्तु अब वह चांदनी रात समाप्त हो चुकी हैअब प्रिय की सुगंध ही मात्र शेष रह गई है। प्रिय के साथ बिताए वह सुन्दर क्षण अब मात्र यादों में ही रह गए हैं। वे कहते हैं कि अब उन्हें याद करने से हमें सिर्फ दुःख ही मिलेगावे पल वापस नही आएंगे।
कवि कहते हैं मनुष्य सारी जिंदगी यश,धन-दौलतमानऐश्वर्य के पीछे भागते हुए बिता देता है जो की केवल एक भ्रम है। कवि कहते हैं ये ठीक उसी प्रकार है जैसे रेगिस्तान में पशु पानी की तलाश में भटकता रहता है परन्तु दूरकहीं सूर्य की किरणों द्वारा उत्पन्न हुए जल के आभास से ठगा जाता है। वेकहते हैं कि हम जितना मान-सम्मानसम्पन्ति की चाह करते हैं  उतना ही हमारी चाहत इसके प्रति बढ़ती जाती हैइसका कोई अंत नही है। जिस तरह हर चांदनी रात के बाद अमावस्या आती है उसी तरह सुख-दुःख का पहिया सदा निरंतर चलता रहता है। इसलिए कवि हमें धरातल पर जीने की सलाह देते हैंसच्चाई को स्वीकारने में ही हमारी भलाई है। वर्ना अतीत के सुखों की यादों में हम वर्त्मान के दुखों को बढ़ा लेंगे।
कवि कहते हैं कि मनुष्य सदा दुविधा में फंसा रहता है जसके कारण उसे कोईरास्ता नही सूझता और वह अधिक निराश हो जाता है। जीवन में उसे जो कुछ उसे मिलता है उससे उसकी शारीरिक सुख तो मिल जाता है परन्तु मन संतुष्ट नही हो पाता। जिस प्रकार शरद पूर्णिमा की रात को चाँद न निकले तो शरद पूर्णिमा का सारा सौंदर्य और महत्व समाप्त हो जाता है उसी प्रकार अगर मनुष्य को जीवन में सुख-सम्पदा नहीं मिली तो इसका दुःख उसे जीवन भर सताता है। जैसे वसंत ऋतू में फूल न खिले तो वह निश्चित ही मतवाली और सुखदायी ना होगी वैसे ही मनुष्य को अगर अतीत में जो कुछ उसे मिलना चाहिए था वह न मिले तो वह उदास हो जाता है इसलिए उन्हें भूलना ही बेहतर है।
कवि परिचय
गिरिजाकुमार माथुर
इनका जन्म सन 1918 में गुनामध्य प्रदेश में हुआ था। इन्होने प्रारंभिकशिक्षा झांसीउत्तर प्रदेश में ग्रहण करने के बाद एम.ए अंग्रेजी व एल.एल.बी की उपाधि लखनऊ से अर्जित की। शुरू में कुछ समय वकालत किया तथा बाद में दूरदर्शन और आकाशवाणी में कार्यरत हुए। इनकी मृत्यु 1994 में हुई।
प्रमुख कार्य
काव्य-संग्रह - नाश और निर्माणधुप के धानशिलापंख चमकीलेभीतरी नदी की यात्रा।
नाटक - जन्म-कैद
आलोचना - नयी कविता: सीमाएँ और सम्भावनाएँ।
कठिन शब्दों के अर्थ

• 
दूना - दुगना
• 
सुरंग - रंग-बिरंगी
• 
सुधियाँ - यादें
• 
मनभावनी - मन को लुभाने वाली
• 
यामिनी - तारों भरी चांदनी रात
• 
कुंतल - लम्बे केश
• 
यश - प्रसिद्धि
• 
सरमाया - पूँजी
• 
भरमाया - भ्रम में डाला
• 
प्रभुता का शरण बिम्ब - बड़प्पन का अहसास
• 
मृगतृष्णा - कड़ी धूप में रेतीले मैदानों में जल के होने का छलावा
• 
चन्द्रिका - चांदनी
•  
कृष्णा - काली
• 
यथार्थ - सत्य
• 
दुविधा हत - दुविधा में फँसा हुआ
• 
पंथ - राह
• 
रस-बसंत - रस से भरपूर मतवाली वसंत ऋतू।
• 
वरण  अपनाना

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