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Friday, 24 April 2020

दसवीं - आत्मकथ्य :- जयशंकर प्रसाद

प्रश्न अभ्यास 

1. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहते हैं ?
उत्तर
कवि आत्मकथा लिखने से बचना चाहते हैं क्योंकि जीवन में बहुत सारीपीडादायक घटनाएँ हुई हैं। अपनी सरलता के कारण उसने कई बार धोखा भी खाया है। कवि के पास मात्र कुछ सुनहरे क्षणों की स्मृतियाँ ही शेष हैं जिसके सहारे वह अपनी जीवन - यात्रा पूरी कर रहा है। उन यादो को उसने अपने अंतर मन सँजोकर रखा है और उन्हें वह प्रकट करना नहीं चाहता है। कवि को लगता है की उनकी आत्मकथा में ऐसा कुछ भी नहीं हैं जिसे महान और सेवक मानकर लोग आनंदित होंगें । इन्हीं कारणों से कवि लिखने से बचना चाहते हैं।

2.  आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में 'अभी समय भी नहींकवि ऐसा क्यों कहता है 

उत्तर 

कवि कहता है कि उसके लिए आत्मकथा सुननाने का यह उचित समय नहीं है। कवि द्वारा ऐसा कहने का कारण है यह है कि कवि को अभी सुखों के के सिवाय और कोइ उपलब्धि नहीं मिल सकी है। कवि का जीवन दुःख और अभावों से भरा रहा हैं। कवि को अपने जीवन में जो बाहरी पीड़ा मिली हैउसे वह चुपचाप अकेले ही सहा है। जीवन का इस पड़ाव पर उसके जीवन के सभी दुःख तथा व्यथाएँ थककर सोई हूई है,, अर्थात बहुत मुश्किल से कवि को अपनी पुराणी वेदना से मुक्ति मिल चुकी है। आत्मकथा लिखने के लिए के लिए कवि को अपने जीवन की उन सभी व्यथाओं को जगाना होगा और कवि ऐसा प्रतीत होता है कि अभी उसके जीवन में ऐसी कोइ उपलब्धि नहीं मिली है जिसे वह लोगों के सामने प्रेरणास्वरूप रख सके। इन्हीं कारणों से कवि अपनी आत्मकथा अभी नहीं लिखना चाहता।
3. स्मृति को 'पाथेयबनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर
स्मृति को 'पाथेयबनाने से कवि का आशय जीवनमार्ग के प्रेरणा से है। कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा थावह उसे कभी प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए कवि स्वयं को जीवन - यात्रा से थका हुआ मानता है। जिस प्रकार 'पाथेययात्रा मेंयात्री को सहारा देता हैआगे बढ़ने की प्रेरणा देता है ठिक उसी प्रकार स्वप्न में देखे हुए किंचित सुख की स्मृति भी कवि को जीवन - मार्ग में आगे बढ़ने का सहारा देता है।
4. भाव स्पष्ट कीजिए -

(
क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
       आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
उत्तर
कवि कहना चाहता है कि जिस प्रेम के कवि सपने देख रहे थे वो उन्हें कभीप्राप्त नहीं हुआ। कवि ने जिस सुख की कल्पना की थी वह उसे कभी प्राप्त नहुआ और उसका जीवन हमेशा उस सुख से वंचित ही रहा। इस दुनिया में सुख छलावा मात्र है। हम जिसे सुख समझते हैं वह अधिक समय तक नहीं रहता हैस्वप्न की तरह जल्दी ही समाप्त हो जाता है।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
       अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर
कवि अपनी प्रेयसी के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि प्रेममयी भोरवेला भी अपनी मधुर लालिमा उसके गालों से लिया करती थी। कवि की प्रेमिका का मुख सौंदर्य ऊषाकालीन लालिमा से भी बढ़कर था।
5. 'उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँमधुर चाँदनी रातों की' - कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर
उपर्युक्त पंक्तियों से कवि का आशय निजी प्रेम का उन मधुर और सुख-भरेक्षणों से हैजो कवि ने अपनी प्रेमिका के साथ व्यतीत किये थे । चाँदनी रातों में बिताए गए वे सुखदायक क्षण किसी उज्ज्वल गाथा की तरह ही पवित्र हैजो कवि के लिए अपने अन्धकारमय जीवन में आगे बढ़ने का एकमात्र सहारा बनकर रह गया । इसीलिए कवि अपने जीवन की उन मधुर स्मृतियों को किसी से बाँटना नहीं चाहता बल्कि अपने तक ही सीमित रखना चाहता है ।
6. 'आत्मकथ्यकविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर

'
जयशंकर प्रसादद्वारा रचित कविता 'आत्मकथ्यकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
1. 
प्रस्तुत कविता में कवि ने खड़ी बोली हिंदी भाषा का प्रयोग किया है -
2. 
अपने मनोभावों को व्यक्त कर उसमें सजीवता लाने के लिए कवि ने ललितसुंदर एवं नवीन बिंबों का प्रयोग किया है कविता में बिम्बों का प्रयोग किया है।
3. 
विडंबनाप्रवंचना जैसे नवीन शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे काव्य में सुंदरता आई है।
4. 
मानवेतर पदार्थों को मानव की तरह सजीव बनाकर प्रस्तुत किया गया है । यह छायावाद की प्रमुख विशेषता रही है।
5. 
अलंकारों के प्रयोग से काव्य सौंदर्य बढ़ गया है।
7. कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे वह अपने प्रेमिका के रूप में व्यक्तकिया ह । यह प्रेमिका स्वप्न में कवि के पास आते-आते मुस्कराकर दूर चलीजाती है और कवि को सुख से वंचित ही रहना पड़ता है। कवि कहता है की अपने जीवन में वह जो सुख का सपना देखा था,, वह उसे कभी प्राप्त नहीं हुआ।

रचना और अभिव्यक्ति
8. इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्त्तित्व की जो झलक मिलती हैउसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर
प्रसाद जी एक सीधे-सादे व्यक्तित्व के इंसान थे। उनके जीवन में दिखावा नहीं था। वे अपने जीवन के सुख-दुख को लोगों पर व्यक्त नहीं करना चाहते थेअपनी दुर्बलताओं को अपने तक ही सीमित रखना चाहते थे। अपनी दुर्बलताओं को समाज में प्रस्तुत कर वे स्वयं को हँसी का पात्र बनाना नहीं चाहते थे। पाठ की कुछ पंक्तियाँ उनके वेदना पूर्ण जीवन को दर्शाती है। इस कविता में एक तरफ़ कवि की यथार्थवादी प्रवृति भी है तथा दूसरी तरफ़ प्रसाद जी की विनम्रता भी है। जिसके कारण वे स्वयं को श्रेष्ठ कवि मानने से इनकार करते हैं।
व्याख्या
मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास
यह लोकरते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगेदेखोगे-यह गागर रीती।
अर्थ - इस कविता में कवि ने अपने अपनी आत्मकथा न लिखने के कारणों को बताया है। कवि कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का मन रूपी भौंरा प्रेम गीत गाता हुआ अपनी कहानी सुना रहा है। झरते पत्तियों की ओर इशारा करते हुए कवि कहते हैं कि आज असंख्य पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं यानी उनकी जीवन लीला समाप्त हो रही है। इस प्रकार अंतहीन नील आकाश के नीचे हर पल अनगिनित जीवन का इतिहास बन और बिगड़ रहा है। इस माध्यम से कवि कह रहे हैं की इस संसार में हर कुछ चंचल हैकुछ भी स्थिर नही है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के मज़ाक बनाने में लगे हैंहर किसी को दूसरे में कमी नजर आती है। अपनी कमी कोई नही कहतायह जानते हुए भी तुम मेरी आत्मकथा जानना चाहते हो। कवि कहता है कि यदि वह उन पर बीती हुई कहानी वह सुनाते हैं तो लोगों को उससे आनंद तो मिलेगापरन्तु साथ ही वे यह भी देखेंगे की कवि का जीवन सुख और प्रसन्नता से बिलकुल ही खाली है।
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझोमेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँमधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिलाकर हँसतने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया।

अर्थ - कवि कहते हैं कि उनका जीवन स्वप्न के समान एक छलावा रहा है। जीवन में जो कुछ वो पाना चाहते हैं वह सब उनके पास आकर भी दूर हो गया। यह उनके जीवन की विडंबना है। वे अपनी इन कमज़ोरियों का बखान कर जगहँसाई नही करा सकते। वे अपने छले जाने की कहानी नहीं सुनाना चाहता। जिस प्रकार सपने में व्यक्ति को अपने मन की इच्छित वस्तु मिल जाने से वह प्रसन्न हो जाता हैउसी प्रकार कवि के जीवन में भी पएक बार प्रेम आया था परन्तु वह स्वपन की भांति टूट गया। उनकी सारी आकांक्षाएँ महज मिथ्या बनकर रह गयी चूँकि वह सुख का स्पर्श पाते-पाते वंचित रह गए। इसलिए कवि कहते हैं कि यदि तुम मेरे अनुभवों के सार से अपने जीवन का घड़ा भरने जा रहे हो तो मैं अपनी उज्जवल जीवन गाथा कैसे सुना सकता हूँ।
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़े कथाएँ आज कहूँ?
क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?
अभी समय भी नहींथकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।

अर्थ - इन पंक्तियों में कवि अपने सुन्दर सपनों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि उनके जीवन में कुछ सुखद पल आये जिनके सहारे वे वर्तमान जीवन बितारहे हैं। उन्होंने प्रेम के अनगनित सपने संजोये थे परन्तु वे सपने मात्र रह गएवास्तविक जीवन में उन्हें कुछ ना मिल सका। कवि अपने प्रेयसी के सुन्दरलाल गालों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मानो भोर अपनी लाली उनकी प्रेयसी के गालों की लाली से प्राप्त करती है परन्तु अब ऐसे रूपसी की छवि अब उनका सहारा बनकर रह गयी है क्योंकि वास्तविक जीवन वे क्षण कवि को मिलने से पहले ही छिटक कर दूर चले गए। इसलिए कवि कहते हैं कि मेरे जीवन की कथा को जानकर तुम क्या करोगेअपने जीवन को वे छोटा समझ कर अपनी कहानी नही सुनाना चाहते। इसमें कवि की सादगी और विनय का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। वे दूसरों के जीवन की कथाओं को सुनने और जानने में ही अपनी भलाई समझते हैं। वे कहते हैं कि अभी उनके जीवन की कहानी सुनाने का वक़्त नही आया है। मेरे अतीतों को मत कुरेदोउन्हें मौन रहने दो।
कवि परिचय
जयशंकर प्रसाद
इनका जन्म सन 1889 में वाराणसी में हुआ था। काशी के प्रसिद्ध क्वींस कॉलेज में वे पढ़ने गए परन्तु स्थितियां अनुकूल ना होने के कारण आँठवी से आगे नही पढ़ पाए। बाद में घर पर ही संस्कृतहिंदीफारसी का अध्ययन किया। छायावादी काव्य प्रवृति के प्रमुख कवियों में ये एक थे। इनकी मृत्यु सन  1937 में हुई।
प्रमुख कार्य
काव्य-कृतियाँ - चित्राधारकानन-कुसुमझरनाआंसूलहरऔर कामायनी।
नाटक - अजातशत्रुचन्द्रगुप्तस्कंदगुप्तध्रुवस्वामिनी।
उपन्यास - कंकालतितली और इरावती।
कहानी संग्रह - आकाशदीपआंधी और इंद्रजाल।
कठिन शब्दों के अर्थ

• 
मधुप - मन रूपी भौंरा
• 
अनंत नीलिमा - अंतहीन विस्तार
• 
व्यंग्य मलिन - खराब ढंग से निंदा करना
• 
गागर-रीती - खाली घड़ा
• 
प्रवंचना - धोखा
• 
मुसक्या कर - मुस्कुरा कर
• 
अरुण-कोपल - लाल गाल
• 
अनुरागिनी उषा - प्रेम भरी भोर
• 
स्मृति पाथेय - स्मृति रूपी सम्बल
• 
पन्था - रास्ता
• 
कंथा  अंतर्मन

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