प्रश्न अभ्यास
1. कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर 'गरजने' के लिएकहता है, क्यों?
उत्तर
कवि ने बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के लिए नहीं कहता बल्कि 'गरजने' के लिए कहा है; क्योंकि 'गरजना' विद्रोह का प्रतीक है। कवि ने बादल के गरजने के माध्यम से कविता में नूतन विद्रोह का आह्वान किया है।
2. कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?
उत्तर
यह एक आह्वान गीत है। कवि क्रांति लाने के लिए लोगों को उत्साहित करनाचाहते हैं। बादल का गरजना लोगों के मन में उत्साह भर देता है। इसलिए कविता का शीर्षक उत्साह रखा गया है।
3. कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है ?
उत्तर
कविता में बादल निम्नलिखित अर्थों की ओर संकेत करता है -
1. जल बरसाने वाली शक्ति है।
2. बादल पीड़ित-प्यासे जन की आकाँक्षा को पूरा करने वाला है।
3. बादल कवि में उत्साह और संघर्ष भर कविता में नया जीवन लाने में सक्रिय है।
1. कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर 'गरजने' के लिएकहता है, क्यों?
उत्तर
कवि ने बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के लिए नहीं कहता बल्कि 'गरजने' के लिए कहा है; क्योंकि 'गरजना' विद्रोह का प्रतीक है। कवि ने बादल के गरजने के माध्यम से कविता में नूतन विद्रोह का आह्वान किया है।
2. कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?
उत्तर
यह एक आह्वान गीत है। कवि क्रांति लाने के लिए लोगों को उत्साहित करनाचाहते हैं। बादल का गरजना लोगों के मन में उत्साह भर देता है। इसलिए कविता का शीर्षक उत्साह रखा गया है।
3. कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है ?
उत्तर
कविता में बादल निम्नलिखित अर्थों की ओर संकेत करता है -
1. जल बरसाने वाली शक्ति है।
2. बादल पीड़ित-प्यासे जन की आकाँक्षा को पूरा करने वाला है।
3. बादल कवि में उत्साह और संघर्ष भर कविता में नया जीवन लाने में सक्रिय है।
4. शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर
कविता की इन पंक्तियों में नाद-सौंदर्य मौजूद है -
1. "घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
2. ललित ललित, काले घुँघराले,बाल कल्पना के-से पाले
3. "विद्युत-छवि उर में"
3. "विद्युत-छवि उर में"
अट नहीं रही
1. छायावाद की एक खास विशेषता है अन्तर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है?लिखिए।
उत्तर
कविता के निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है कि प्रस्तुत कविता में अन्तर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाया गया है :कहीं साँस लेते हो,घर घर भर देते हो,उड़ने को नभ में तुम,पर पर कर देते हो।
2. कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
उत्तर
फागुन का मौसम तथा दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। चारों तरफ का दृश्य अत्यंत स्वच्छ तथा हरा-भरा दिखाई दे रहा है। पेड़ों पर कहीं हरी तो कही लाल पत्तियाँ हैं, फूलों की मंद-मंद खुश्बू हृदय को मुग्ध कर लेती है। इसीलिए कवि की आँख फागुन की सुंदरता से हट नहीं रही है।
3. प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है ?
उत्तर
प्रस्तुत कविता ‘अट नहीं रही है’ में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने फागुन के सर्वव्यापक सौन्दर्य और मादक रूप के प्रभाव को दर्शाया है।पेड़-पौधे नए-नए पत्तों,फल और फूलों से अटे पड़े हैं,हवा सुगन्धित हो उठीहै,प्रकृति के कण-कण में सौन्दर्य भर गया है। खेत-खलिहानों, बाग़-बगीचों, जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों एवं चौक-चौबारों में फ़ागुन का उल्लास सहज हीदिखता है।
4. फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?
उत्तर
फागुन में सर्वत्र मादकता मादकता छाई रहती है। प्राकृतिक शोभा अपने पूर्णयौवन पर होती है। पेड़-पौधें नए पत्तों, फल और फूलों से लद जाते हैं, हवासुगन्धित हो उठती है। आकाश साफ-स्वच्छ होता है। पक्षियों के समूह आकाश में विहार करते दिखाई देते हैं। बाग-बगीचों और पक्षियों में उल्लास भर जाता हैं। इस तरह फागुन का सौंदर्य बाकी ऋतुओं से भिन्न है।
5. इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर
महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी छायावाद के प्रमुख कवि माने जातेहैं। छायावाद की प्रमुख विशेषताएँ हैं- प्रकृति चित्रण और प्राकृतिक उपादानों का मानवीकरण।‘उत्साह’ और ‘अट नहीं रही है’ दोनों ही कविताओं मेंप्राकृतिक उपादानों का चित्रण और मानवीकरण हुआ है। काव्य के दो पक्ष हुआ करते हैं-अनुभूति पक्ष और अभिव्यक्ति पक्ष अर्थात् भाव पक्ष और शिल्प पक्ष ।इस दृष्टि से दोनों कविताएँ सराह्य हैं। छायावाद की अन्य विशेषताएँ जैसे गेयता , प्रवाहमयता , अलंकार योजना और संगीतात्मकता आदि भी विद्यमान है।‘निराला’ जी की भाषा एक ओर जहाँ संस्कृतनिष्ठ, सामासिक और आलंकारिक है तो वहीं दूसरी ओर ठेठ ग्रामीण शब्द का प्रयोग भी पठनीय है। अतुकांत शैली में रचित कविताओं में क्राँति का स्वर , मादकता एवम् मोहकता भरी है। भाषा सरल, सहज, सुबोध और प्रवाहमयी है।
भावार्थ
उत्साह
प्रस्तुत कविता एक आह्वाहन गीत है। इसमें कवि बादल से घनघोर गर्जन के साथ बरसने की अपील कर रहे हैं। बादल बच्चों के काले घुंघराले बालों जैसे हैं। कवि बादल से बरसकर सबकी प्यास बुझाने और गरज कर सुखी बनाने का आग्रह कर रहे हैं। कवि बादल में नवजीवन प्रदान करने वाला बारिश तथा सबकुछ तहस-नहस कर देने वाला वज्रपात दोनों देखते हैं इसलिए वे बादल से अनुरोध करते हैं कि वह अपने कठोर वज्रशक्ति को अपने भीतर छुपाकर सब में नई स्फूर्ति और नया जीवन डालने के लिए मूसलाधार बारिश करे।
आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल को देखकर कवि को लगता है की वे बेचैन से हैं तभी उन्हें याद आता है कि समस्त धरती भीषण गर्मी से परेशान है इसलिए आकाश की अनजान दिशा से आकर काले-काले बादल पूरी तपती हुई धरती को शीतलता प्रदान करने के लिए बेचैन हो रहे हैं। कवि आग्रह करते हैं की बादल खूब गरजे और बरसे और सारे धरती को तृप्त करे।
अट नहीं रही
प्रस्तुत कविता में कवि ने फागुन का मानवीकरण चित्र प्रस्तुत किया है।फागुन यानी फ़रवरी-मार्च के महीने में वसंत ऋतू का आगमन होता है। इस ऋतू में पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और नए पत्ते आते हैं। रंग-बिरंगे फूलों की बहारछा जाती है और उनकी सुगंध से सारा वातावरण महक उठता है। कवि को ऐसा प्रतीत होता है मानो फागुन के सांस लेने पर सब जगह सुगंध फैल गयी हो। वे चाहकर भी अपनी आँखे इस प्राकृतिक सुंदरता से हटा नही सकते।
इस मौसम में बाग़-बगीचों, वन-उपवनों के सभी पेड़-पौधे नए-नए पत्तों से लद गए हैं, कहीं यहीं लाल रंग के हैं तो कहीं हरे और डालियाँ अनगिनत फूलों से लद गए हैं जिससे कवि को ऐसा लग रहा है जैसे प्रकृति देवी ने अपने गले रंग बिरंगे और सुगन्धित फूलों की माला पहन रखी हो। इस सर्वव्यापी सुंदरता का कवि को कहीं ओऱ-छोर नजर नही आ रहा है इसलिए कवि कहते हैं की फागुन की सुंदरता अट नही रही है।
कवि परिचय
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
इनका जन्म बंगाल के महिषादल में सन 1899 में हुआ था। ये मूलतः गढ़ाकोला, जिला उन्नाव, उत्तर प्रदेश के निवासी थे। इनकी औपचारिक शिक्षा नवीं तक महिषादल में ही हुई। इन्होने स्वंय अध्ययन कर संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी का ज्ञान अर्जित किया। रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद की विचारधारा ने इनपर गहरा प्रभाव डाला। सन 1961 में इनकी मृत्यु हुई।
प्रमुख कार्य
काव्य-रचनाएं - अनामिका, परिमल, गीतिका, कुकुरमुत्ता और नए पत्ते।
कठिन शब्दों के अर्थ
• धराधर - बादल
• उन्मन - अनमनापन
• निदाघ - गर्मी
• सकल - सब
• आभा - चमक
• वज्र - कठोर
• अनंत - जिसका अंत ना हो
• शीतल - ठंडा
• छबि - सौंदर्य
• उर - हृदय
• विकल - बैचैन
• अट - समाना
• पाट-पाट - जगह-जगह
• शोभा श्री - सौंदर्य से भरपूर
• पट - समा नही रही
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