साभार 🙏🙏
(ल्हासा की ओर)
शिक्षण- उद्देश्य :-
ज्ञानात्मक उद्देश्य :
कौशलात्मक उद्देश्य :
बोधात्मक उद्देश्य :
प्रयोगात्मक उद्देश्य :
सहायक शिक्षण – सामग्री:-
पूर्व ज्ञान:-
प्रस्तावना – प्रश्न :-
उद्देश्य कथन :- बच्चो! आज हम प्रसिद्ध लेखक ‘ राहुल सांकृत्यायन ’ के द्वारा रचित यात्रा -वृतांत‘ ल्हासा की ओर’ का अध्ययन करेंगे।
पाठ की इकाइयाँ—
प्रथम अन्विति— ( वह............. चलेंगे। )
द्वितीय अन्विति :- ( दूसरे...............पड़े।)
शिक्षण विधि :-
क्रमांक | अध्यापक - क्रिया | छात्र - क्रिया |
| पाठ का सार:- प्रस्तुत पाठ यात्रा वृतांत है जिसमें लेखक ने अपनी प्रथम तिब्बत यात्रा का वर्णन किया है ।जो उन्होंने सन् 1929 - 30 में नेपाल के रास्ते से की थी ।इसमें तिब्बत की राजधानी ल्हासा की ओर जाने वाले दुर्गम रास्तों का वर्णन उन्होंने बहुत ही रोचक शैली में किया है ।नेपाल से तिब्बत जाने का मुख्य मार्ग नेपाल तिब्बत मार्ग ही है। नेपाल हिंदुस्तान का व्यापार भी इसी मार्ग से होता है। तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत सी तकलीफे भी है और कुछ आराम की बातें भी। वहां समाज में जाति पाति, छुआछूत नहीं है। स्त्रियां पर्दा भी नहीं करती हैं। लेखक चीनी किले से जब चलने लगा तो एक आदमी उससे रामधारी मांगनेलगा।उस समय लेखक ने अपनी और अपने मित्र की चिट उस राहदारी मांगने वाले व्यक्ति को दे दी। वहां सुमति की जान पहचान होने के कारण जो थोड्ला के पहले के आखिरी गांव में उन्हें ठहरने के लिए उचित स्थान मिल गया। लेखक को थोड़्ला स्थान पार करना था। यह स्थान तिब्बत में सबसे खतरनाक स्थान था जहां 16-17 ऊंचाई के कारण आस पास कोई गांव दिखाई नहीं देता। डाकुओं के लिए यह सबसे सुरक्षित स्थान था ।यहां पहले डकैत आदमी को मारते हैं उसके बाद उसकी जेब टटोलते हैं। यहां हथियार रखने का कानून न होने के कारण यहां के लोग पिस्तौल बंदूक लाठी की तरह लिए घूमते हैं ।लेखकों से बिल्कुल भी डर नहीं लगता क्योंकि उसका साथी भीखमंगे के रूप में यात्रा कर रहे थे घोड़े पर सवार होकर दोनों मित्र रास्ते में चाय पीते हुए के ऊपर जा पहुंचे उसके दाई तरफ हिमालय के शिखर थे जिस पर किसी भी प्रकार की कोई बर्फ नहीं थी और ना ही हरियाली ।सर्वोच्च स्थान पर वहां के देवता का स्थान था। जो पर्वत के जानवरों के सींग तथा वृक्षों से सजा हुआ था। पहाड़ से नीचे उतरने की बारी थी। लेखक के घोड़े की चाल धीमी थी ।रास्ता घुमावदार होने के कारण लेखक रास्ता भटक गया फिर वापस आया शाम को लेखक को रुकने का स्थान मिल गया अब तिड्र्री के विशाल मैदान में पहुंच गए ।यह स्थान पहाड़ों से घिरा टापू सा दिखाई दे रहा था ।जिसमें दूर एक छोटी-सी पहाड़ी मैदान के भीतर दिखाई दे रही थी उस पहाड़ी का नाम था तिड्र्री समाधि गिरि था। अगले दिन लेखक वहां से चल पड़े। तिब्बत की जमीन छोटे-बड़े जागीरदारों में बांटी हुई है इनका बहुत सा हिस्सा मठों के हाथ में है। लेखक को यहां भीख मांगे के रूप में देख कर भी वहां उनसे बहुत प्रेम भाव से मिले। अगले दिन लेखक और उनका मित्र वहां से विदाई लेकर चल पड़े। | पाठ को ध्यानपूर्वक सुनना और समझने का प्रयास करना। |
2. | महापंडित राहुल सांकृत्यायन को हिंदी यात्रा साहित्य का जनक कहा जाता है क्योकि उन्होंने यात्रा विवरण संबंधित ‘साहित्य कला’ का विकास किया था और उन्होंने भारत के अधिकतर भूभाग की यात्रा भी की थी, उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के 45 साल अपने घर से दूर रहकर यात्रा करने में ही बिताये. उन्होंने काफी प्रसिद्ध जगहों की यात्रा की और अपना यात्रा विवरण भी लिखा। महापंडित राहुल सांकृत्यायन का जन्म 9 अप्रैल 1893 को अपने ननिहाल पंदहा जिला आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता श्री गोवर्धन पाण्डेय, कनैला (आजमगढ़, उत्तर प्रदेश) के निवासी थे, अत: आपका पैतृक गांव कनैला था। आपके बाल्यकाल का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। राहुल सांकृत्यायन का मानना था कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि- "कमर बाँध लो भावी घुमक्कड़ों, संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है।" राहुल ने अपनी यात्रा के अनुभवों को आत्मसात करते हुए ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ भी रचा। वे एक ऐसे घुमक्कड़ थे जो सच्चे ज्ञान की तलाश में था और जब भी सच को दबाने की कोशिश की गई तो वह बागी हो गये। उनका सम्पूर्ण जीवन अन्तर्विरोधों से भरा पड़ा है। साहित्यिक रुझान राहुल जी वास्तव के ज्ञान के लिए गहरे असंतोष में थे, इसी असंतोष को पूरा करने के लिए वे हमेशा तत्पर रहे। उन्होंने हिन्दी साहित्य को विपुल भण्डार दिया। उन्होंने मात्र हिन्दी साहित्य के लिए ही नहीं बल्कि वे भारत के कई अन्य क्षेत्रों के लिए भी उन्होंने शोध कार्य किया। वे वास्तव में महापंडित थे। राहुल जी की प्रतिभा बहुमुखी थी और वे संपन्न विचारक थे। धर्म, दर्शन, लोकसाहित्य, यात्रासहित्य, इतिहास, राजनीति, जीवनी, कोष, प्राचीन ग्रंथो का संपादन कर उन्होंने विविध क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किया। उनकी रचनाओ में प्राचीन के प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है। यह केवल राहुल जी थे, जिन्होंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य चिंतन को पूर्ण रूप से आत्मसात् कर मौलिक दृष्टि देने का प्रयास किया। उनके उपन्यास और कहानियाँ बिल्कुल नए दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं। तिब्बत और चीन के यात्रा काल में उन्होंने हजारों ग्रंथों का उद्धार किया और उनके सम्पादन और प्रकाशन का मार्ग प्रशस्त किया, ये ग्रन्थ पटना संग्रहालय में है। यात्रा साहित्य में महत्वपूर्ण लेखक राहुल जी रहे है। उनके यात्रा वृतांत में यात्रा में आने वाली कठिनाइयों के साथ उस जगह की प्राकृतिक सम्पदा, उसका आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन और इतिहास अन्वेषण का तत्व समाहित होता है। "किन्नर देश की ओर", "कुमाऊ", "दार्जिलिंग परिचय" तथा "यात्रा के पन्ने" उनके ऐसे ही ग्रन्थ है।
| लेखक के बारे में आवश्यक जानकारियाँ अपनी अभ्यास –पुस्तिका में लिखना। |
3. | शिक्षक के द्वारा पाठ का उच्च स्वर में पठन करना। | उच्चारण एवं पठन – शैली को ध्यान से सुनना। |
4. | पाठ के अवतरणों की व्याख्या करना। | पाठ को हॄदयंगम करने की क्षमता को विकसित करने के लिए पाठ को ध्यान से सुनना। पाठ से संबधित अपनी जिज्ञासाओं का निराकरण करना। |
5. | कठिन शब्दों के अर्थ :-व्यापारिक -व्यापार से संबंधित, चौकिया -सुरक्षा के लिए बनाए गए ठिकाने, पलटन -सेना ,बसेरा -रहने का स्थान, आबाद -बसा हुआ , निम्न श्रेणी- घटिया प्रकार, राहदारी- यात्रा करने का कर ,चिट -पर्ची ,निर्जन- एकांत, श्वेत शिखर- पर्वत चोटियां ,सत्तू- गेहूं से बना हुआ खाद्य पदार्थ।
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6. | छात्रों द्वारा पठित अनुच्छेदों में होने वाले उच्चारण संबधी अशुद्धियों को दूर करना। | छात्रों द्वारा पठन। |
7. | पाठ में आए व्याकरण का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना। • देशज शब्द • उपवाक्य ( रचना के आधार पर वाक्य भेद)
| व्याकरण के इन अंगों के नियम, प्रयोग एवं उदाहरण को अभ्यास-पुस्तिका मेंलिखना। |
गृह – कार्य :-
मूल्यांकन :-
निम्न विधियों से मूल्यांकन किया जाएगा :-
इकाई पाठ – योजना (कैदी और कोकिला)
शिक्षण- उद्देश्य :-
ज्ञानात्मक उद्देश्य–
कौशलात्मक उद्देश्य-
बोधात्मक उद्देश्य –
प्रयोगात्मक उद्देश्य–
सहायक शिक्षण – सामग्री:-
पूर्व ज्ञान:-
प्रस्तावना – प्रश्न :-
उद्देश्य कथन :- बच्चो! आज हम कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ के द्वारा रचित देश भक्ति से संबंधित कविता‘ कैदी और कोकिला’ का अध्ययन करेंगे।
पाठ की इकाइयाँ—
प्रथम अन्विति— (क्या.......…अली।)
द्वितीय अन्विति :- ( क्यों...........तो)
तृतीय अन्विति-: (काली............तो।)
शिक्षण विधि :-
क्रमांक | अध्यापक - क्रिया | छात्र - क्रिया |
1. | कविता का सारांश-: कवि ने “कैदी और कोकिला” कविता उस समय लिखी थी, जब देश ब्रिटिश शासन के अधीन गुलामी के जंजीरों में जकड़ा हुआ था। वे खुद भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिस वजह से उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। जेल में रहने के दौरान वे इस बात से अवगत हुए कि जेल जाने के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कितना दुर्व्यवहार होता है। इसी सोच को उस समय समस्त जनता के सामने लाने के लिए उन्होंने इस कविता की रचना की।अपनी इस कविता में कवि ने जेल में बंद एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ एक कोयल का वर्णन भी किया है। कविता में कवि हमें उस समय जेल में मिल रही यातनाओं के बारे में बता रहा है। कवि (कैदी) के अनुसार, जहाँ पर चोर-डाकुओं को रखा जाता है, वहाँ उन्हें (स्वतंत्रता सेनानियों) को रखा गया है। उन्हें भर-पेट भोजन भी नसीब नहीं होता। ना वह रो सकते हैं और ना ही चैन की नींद सो सकते हैं। जेल में उन्हें बेड़ियाँ और हथकड़ियाँ पहन कर रहना पड़ता है। वहां उन्हें ना तो चैन से जीने दिया जाता है और ना ही चैन से मरने दिया जाता है। ऐसे में, कवि चाहते हैं कि यह कोयल समस्त देशवासियों को मुक्ति का गीत सुनाये।
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कविता को ध्यानपूर्वक पढ़्ना और सुनना तथा समझने का प्रयत्न करना। साथ हीअपनी शंकाओं तथा जिज्ञासाओं का निराकरण करना। |
2. | कवि का परिचय -:माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक गांव में सन 1889 में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा के बाद इन्होंने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। वे भारत के ख्याति-प्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे, जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। वे सरल भाषा और जोशीली भावनाओं के अनूठे हिन्दी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठित पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ ज़ोरदार प्रचार किया और नई पीढी से आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। वे सच्चे देशप्रेमी थे और 1921-22 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। उनकी कविताओं में हमें देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण मिलता है।
| कवि के बारे में आवश्यक जानकारियाँ अपनी अभ्यास –पुस्तिका में लिखना। |
3. | शिक्षक के द्वारा पाठ का उच्च स्वर में पठन करना। | उच्चारण एवं पठन – शैली को ध्यान सेसुनना। |
4. | कविता के पदों की व्याख्या करना। | कविता को हॄदयंगम करने की क्षमता को विकसित करने के लिए कविता को ध्यान सेसुनना। कविता से संबधित अपनी जिज्ञासाओं का निराकरण करना। |
5. | कठिन शब्दों के अर्थ :- कोकिल-कोयल, बटमार -रास्ते में जाते हुए लोगों को लूटने वाले डाकू, तम- अंधेरा, हिमकर -चंद्रमा ,हूक- कसक भरी आवाज वेदना- पीड़ा ,मृदुल- कोमल, बावली- पागल, रजनी- रात, गुनाह-पाप ,रणभेरी- युद्ध का संगीत, कृति- रचना ,लौह श्रृंखला - लोहे की जंजीर । |
छात्रों द्वारा शब्दों के अर्थ अपनी अभ्यास-पुस्तिका में लिखना। |
6. | छात्रों द्वारा पठित पदों में होने वाले उच्चारण संबधी अशुद्धियों को दूर करना। | छात्रों द्वारा पठन। |
7. | कविता में आए व्याकरण का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना। समास • उपमा अलंकार
| व्याकरण के इन अंगों के नियम, प्रयोग एवंउदाहरण को अभ्यास-पुस्तिका में लिखना। |
गृह – कार्य :-
मूल्यांकन :-
निम्न विधियों से मूल्यांकन किया जाएगा :-
इकाई पाठ – योजना (यमराज की दिशा)
कक्षा – नवमीं
पुस्तक – क्षितिज (भाग-१)
विषय-वस्तु – कविता
प्रकरण – ‘ यमराज की दिशा ’
शिक्षण- उद्देश्य :-
ज्ञानात्मक उद्देश्य –
कौशलात्मक उद्देश्य -
बोधात्मक उद्देश्य–
प्रयोगात्मक उद्देश्य
सहायक शिक्षण – सामग्री:-
1.चाक , डस्टर आदि।
2.पावर प्वाइंट के माध्यम से पाठ की प्रस्तुति।
पूर्व ज्ञान:-
1.शहरी जीवन और उसकी मुश्किलों का ज्ञान है।
2.सामाजिक जीवन की अच्छाइयों और बुराइयों से परिचितहैं।
3. कविता - रचना का ज्ञान है।
4. साहित्यिक-भाषा की थोड़ी-बहुत जानकारी है।
5.मानवीय स्वभाव की जानकारी है।
6.पौराणिक गाथाओं से थोड़ा-बहुत परिचित हैं।
प्रस्तावना – प्रश्न :-
1.बच्चो! आपके क्षेत्र में कौन-कौन सी समस्याएँ हैं ?
2. आप लड़ाई झगड़े के बारे में क्या जानते हैं ?
3.मनुष्य की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए।
4.आप समाज में किस प्रकार के बदलाव देखते हैं ?
उद्देश्य कथन :- बच्चो! आज हम प्रसिद्ध कवि चन्द्रकांत देवतालेके द्वारा रचित गीत ‘ यमराज की दिशा ’ का अध्ययन करेंगे।
पाठ की इकाइयाँ—
प्रथम अन्विति— ( माँ की……दक्षिण में )
द्वितीय अन्विति : ( माँ की ……………घर देख लेता)
तृतीय अन्विति : (पर आज…………….माँ जानती थी )
शिक्षण विधि :-
क्रमांक | अध्यापक - क्रिया | छात्र - क्रिया |
1. | कविता का सारांश :- प्रस्तुत पाठ में कवि सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर इशारा करते हुए कहता है कि जीवन-विरोधी ताकतें चारों तरफ़ फैलती जा रही हैं। जीवन के दुख-दर्द के बीच जीती माँ अपशकुन के रूप में जिस भय की चर्चा करती थी, अब वह सिर्फ़ दक्षिण दिशा में ही नहीं हैं, सर्वव्यापक है। सभी तरफ़ फैलते विध्वंस, हिंसा और मृत्यु के चिह्नों की ओर इंगित करके कवि इस चुनौती के सामने खड़ा होने का मौन आह्वान करता है। कवि कहता है कि उसकी माँ का ईश्वर के प्रति गहरा विश्वास था । वह ईश्वर पर भरोसा करके अपना जीवन किसी तरह बिताती आई थी। वह हमेशा दक्षिण की तरफ़ पैर करके सोने के लिए मना करती थी। अपने बचपन में कवि पूछता था कि यमराज का घर कहाँ है? माँ बताती थी कि वह जहाँ भी है वहाँ से हमेशा दक्षिण की तरफ़। उसके बाद कवि कभी भी दक्षिण की तरफ़ पैर करके नहीं सोया। वह जब भी दक्षिण की ओर जाता , उसे अपनी माँ के याद अवश्य आती। माँ अब नहीं है। पर आज जिधर भी पैर करके सोओ , वही दक्षिण दिशा हो जाती है। आज चारों ओर विध्वंस और हिंसा का साम्राज्य है।
| कविता को ध्यानपूर्वक सुनना और समझने का प्रयास करना। आधुनिकता की भावना को आत्मसात करते हुए वर्तमान जीवन से प्रेरणा प्राप्त करना। |
2. | कवि परिचय :- चंद्रकांत देवताले ( जन्म-१९३६) साठोत्तरी हिन्दी कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। देवताले की कविता की जड़ें गाँव-कस्बों और निम्न मध्यवर्ग के जीवन में है। उसमें मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि। उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है - माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्यप्रदेश शासन का् शिखर सम्मान। | कवि के बारे में दी गई जानकारी को अभ्यास-पुस्तिका में लिखना। |
3. | शिक्षक के द्वारा कविता का उच्च स्वर में पठन करना। | उच्चारण एवं पठन – शैली को ध्यान से सुनना। |
4. | कविता के पदों की व्याख्या करना। | कविता को हॄदयंगम करने की क्षमता को विकसित करने के लिए गीत को ध्यान से सुनना। कविता से संबधित अपनी जिज्ञासाओं का निराकरण करना। |
5. | कठिन शब्दों के अर्थ :- बरदाश्त – सहन यमराज – मृत्यु का देवता कृद्ध – नाराज़ फ़ायदा – लाभ लाँघना – पार करना आलीशान – भव्य दहकती – जलती विराजना - पधारना | शब्दार्थ अभ्यास-पुस्तिका में लिखना। |
6. | छात्रों द्वारा पठित पदों में होने वाले उच्चारण संबधी अशुद्धियों को दूर करना। | छात्रों द्वारा पठन। |
7. | कविता में आए व्याकरण का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना। • शब्द तथा शब्द युग्म • नुक्ता | व्याकरण के इन अंगों के नियम, प्रयोग एवं उदाहरण को अभ्यास-पुस्तिका में लिखना। |
गृह – कार्य :-
1.पाठ के प्रश्न – अभ्यास कराना ।
2.काम पर जाते हुए किसी बच्चे के स्थान पर अपने आप को रख कर देखिए आपको जो महसूस होता है उसे लिखिए।
3. किसी कामकाजी बच्चे से संवाद कीजिए और उसे अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए।
मूल्यांकन :-
निम्न विधियों से मूल्यांकन किया जाएगा :-
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