10. महादेवी वर्मा
(भक्तिन)
पाठ का सार:-
इस पाठ में भक्तिन लेखिका महादेवी वर्मा की सेविका है, जिसका मूल नाम लछ्मिन या लक्ष्मी था। भक्तिन के जीवन को मुख्य रूप से तीन परिच्छेदों में बांटा गया है-
पहला परिच्छेद:-
इस परिच्छेद में भक्तिन के जन्म से लेकर ससुराल आने तक का वर्णन है। बचपन में ही भक्तिन की माँ का निधन हो गया था और सौतेली माँ ने पांच वर्ष की छोटी सी आयु में ही उसका विवाह करवा दिया था | नौ वर्ष की उम्र में गौना करके ससुराल भी भेज दिया था। इस परिच्छेद में भक्तिन को माता का सुख न मिलकर विमाता की ईर्ष्या ही मिलती है।
दूसरा परिच्छेद:-
इस परिच्छेद में भक्तिन के ससुराल आने से लेकर पति की म्रुत्यु तक का वर्णन है। ससुराल में तीन बेटियों को जन्म देने के कारण उसे सास और जिठानियों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है। भक्तिन और बेटियाँ दिन भर काम करती थी और जिठानियाँ व उनके बेटे आराम फरमाते थे। जिठानियों के बेटों को दूध मक्खन मिलता था जबकि भक्तिन की बेटियाँ घूघरी आदि साधारण सा भोजन पाती थी। भक्तिन पति की सहमति से अलगौझा कर लेती है। खेतों में सारा काम भक्तिन ही करती थी, जिससे अच्छे- अच्छे खेतों व जानवरों के बारे में उसका ही ज्ञान अधिक था अतः उपर से असंतोष और अंदर से प्रसन्न होती हुई सभी अच्छी चीजें प्राप्त करने में कामयाब हो जाती है। अलगौझा करने के बाद मेहनती दंपति अपनी बेटियों के साथ सुखपूर्वक रहने लगते हैं किंतु भक्तिन का भाग्य भी उससे कम हठी न था और बड़ी लड़की का विवाह करने के पश्चात पति ने दो कन्याओं और कच्ची गृहस्थी का भार 29 वर्षीय पत्नी पर छोड़कर इस संसार से विदा ले ली।भक्तिन के हरे-भरे खेतों, गाँय-भैसों तथा फलों से लदे पेड़ों को देखकर जेठ-जिठानियों के मुँह में पानी भर आया और उन्हे हड़पने के लिए भक्तिन की दूसरी शादि करने की सोचने लगे। भक्तिन ने भी गुरु से कान फुड़वाकर, कंठी बांधकर व केशों को पति के नाम पर समर्पित कर कभी न ट्लने की घोषणा कर दी और दोनों छोटी लड़कियों की शादी कर बड़े दामाद को घर जवाई बना लिया।
तीसरा परिच्छेद:-
भक्तिन का दुर्भाग्य उससे भी बडा था और बड़ी लड़की विधवा हो गई। भक्तिन की सम्पत्ति हड़पने के इरादे से जिठौत ने विधवा बहन का गठबंधन करवाने के लिए अपने तीतर लडाने वाले साले को बुला लिया, लेकिन भक्तिन की बेटी ने उसे अस्वीकार कर दिया। जिठौत हर तरीके से यह गठबंधन करवाना चाहते थे और एक दिन वो इस चाल में कामयाब भी हो जाते हैं। पंचायत ने अपीलहीन फैसला करते हुए भक्तिन की बड़ी बेटी का विवाह उस तीतरबाज साले से करवा दिया। गले पड़ा दामाद भक्तिन और इसकी बेटी के लिए दुर्भाग्य ही था, जिसके कारण दोनोँ को अनेक कष्ट झेलने पडे। दामाद कुछ भी काम नहीं करता था तथा आपसी कलह में खेती-बाड़ी भी जल गई और लगान न देने के कारण जमींदार ने भक्तिन को दिन भर धूप में खड़ा करेके अपमानित भी किया। स्वाभिमानी और मेहनती भक्तिन यह अपमान सहन न कर सकी और अपना घर-बार सब कुछ छोड़कर काम की तलाश में शहर में लेखिका के पास आ जाती है और इसी के साथ उसके जीवन का तीसरा परिच्छेद समाप्त हो जाता है।
चौथा और अंतिम परिच्छेद:-
जब भक्तिन शहर आती है तो वह अपना वास्तविक नाम छुपाती है क्योकि उसके नाम और भाग्य में बहुत ज्यादा विरोधाभाष था। उसकी वेशभूषा आदि देखकर लेखिका ने उसका नया नामकरण (भक्तिन) किया जिसे पाकर भक्तिन गद्गद हो जाती है। भक्तिन एक समर्पित सेविका है और सेवक धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा तक करती है। भक्तिन के आ जाने के बाद लेखिका की दिनचर्या में अनेक बदलाव आएं और लेखिका धीरे-धीरे भक्तिन के साथ रहते हुए ग्रामीण भोजन आदि करते हुए देहातिन सी होने लगी। भक्तिन जीवन के अंत तक लेखिका का साथ छोड़ने को तैयार न थी | युद्ध के कारण भक्तिन लेखिका को गाँव चलने का अनुरोध करती है तथा रूपये न होने का बहाना बनाने पर कुछ रुपयें गड़े होने की बात बताई। समग्र रूप से देखे तो इस पाठ में भक्तिन और लेखिका के बीच सेवक-स्वामी का सम्बंध बताना कठिन है। भक्तिन को नौकर कहना भी असंगत है। लोग लेखिक के जेल जाने की बात कहकर भक्तिन को चिढ़ाते थे और यह सच भी है कि वह लेखिका के लिए बड़े लाट तक से लड़ने को तैयार हो जाती थी। लेखिका भी भक्तिन को बहुत ज्यादा चाहती थी और सौचती थी कि जब यमराज का बुलावा आएगा तब यह देहातिन वृद्धा क्या करेगी। भक्तिन और लेखिका दोनों ही एक दूसरे को नहीं छोड़ना चाहती थी।
प्रश्न-1 निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 60-70 शब्दों में लिखिए-
“इस दंड-विधान के भीतर कोइ ऐसी धारा नहीं थी, जिसके अनुसार खोते सिक्कों की टकसाल –जैसी पत्नी से पति को विरक्त किया जा सकता | सारी चुगली-चबाई की परिणति, उसके पत्नी प्रेम को बढाकर ही होती थी | जिठानियाँ बात-बात पर धमाधम पीटी-कूटी जाती; पर उसके पति ने उसे कभी उँगली भी नहीं छुआई वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था | इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से सच्ची पत्नी को वह चाहता भी बहुत रहा होगा, क्योकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने अलगौझा करके सबको अँगूठा दिखा दिया | काम वही करती थी, इसलिए गाय-भैंस, खेत-खलिहान, अमराई के पेड़ आदि के संबंध में उसी का ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था | उसने छांट-छांट कर, ऊपर से असंतोष की मुद्रा के साथ और भीतर से पुलकित होते हुए जो कुछ भी लिया, वह सबसे अच्छा भी रहा , साथ ही परिश्रमी दम्पति के निरंतर प्रयास से उसका सोना बन जाना भी स्वाभाविक हो गया |”
प्रश्न-
(1) यहाँ दंड विधान की बात क्यों की गई है?
उतर- यहाँ दंड विधान के बात लछमिन(भक्तिन) के संदर्भ में की जा रही है | इसका कारण है कि उसने तीन –तीन बेटियों को जन्म दिया था | उसके कोई पुत्र नहीं था जबकि जिठानियों ने पुत्रों को जन्म दिया था | अतः उसे दंड देने की बात की गई है |
(2) चुगली-चबाई की परिणति पत्नी प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी- इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए
उत्तर- भक्तिन की जिठानियाँ भक्तिन के पति के सामने उसकी चुगली किया करते थी | वे चाहती थी कि भक्तिन की पिटाई हो, किन्तु चुगलियों का प्रभाव उल्टा होता था | इन सबसे भक्तिन का पति भक्तिन को और अधिक चाहने लगता है |
(ग) किस के बल पर लछमिन अलगौझा कर जीवन संघर्ष को जीत पाई ?
उत्तर- पति के प्रेम के बलबूते पर ही लक्षमिन बँटवारा करके सबको अँगूठा दिखा पाई थी | उसे खेती और पशुओं के बारे बहुत ज्ञान था और उसी के कारण परिश्रम करके वह इस जीवन संघर्ष को जीत पाई थी |
प्रश्न-2 निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 60-70 शब्दों में लिखिए-
“भक्तन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं | वह सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं बन सकती; पर नरो व कुंजरो वा’ कहने में भी बिश्वास नहीं करती | मेरे इधर-उधर पड़े पैसे –रूपये, भण्डार गृह की किसी मटकी में कैसे अंतरहित हो जाते हैं, यह रहस्य भी भक्तिन जानती है | पर, उस संबंध में किसी के संकेत करते ही वह उसे शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे डालती है, जिसे स्वीकार कर लेना किसी तर्क शिरोमणी के लिए संभव नहीं | यह उसका अपना घर ठहरा, पैसा-रूपया जो इधर-उधर पडा देखा, संभालक रख लिया | यह क्या चोरी है? उसके जीवन का परम कर्तव्य मुझे प्रसन्न रखना है- जिस बात से मुझे क्रोध आ सकता है, उसे बदलकर इधर-उधर करके बताना, क्या झूठ है! इतनी चोरी और इतना झूठ तो धर्मराज महाराज में भी होगा, नहीं तो वे भगवान जी को कैसे प्रसन्न रख सकते और संसार को कैसे चला सकते!”
प्रश्नोत्तर-
(क) भक्तिन को अच्छा क्यों नहीं कहा जा सकता ?
उत्तर – भक्तिन के स्वाभाव में अनेक दुर्गुण थे | वह सत्य की अपनी ही परिभाषा मानती थी | वह लोक-व्यवहार पर भी खरी नहीं उतरती थी, इसलिए भक्तिन को अच्छा कहना कठिन है |
(ख) भक्तिन के अनुसार सच और झूठ की क्या परिभाषा है?
उत्तर- भक्तिन के अनुसार सच और झूठ से ज्यादा उसका आचरण करने वालों की नियत ज्यादा महत्त्वपूर्ण है | वह लेखिका के घर में इधर-उधर पड़े पैसों को मटकी में इकट्टा करती चली जाती है | कुछ लोग इसे चोरी मानते हैं परन्तु वह ऐसा नहीं मानती है | वहा पैसों को संभालकर रखने को चोरी नहीं मानती है |
(ग) झूठ बोलने के सन्दर्भ में भक्तिन के क्या तर्क थे?
उत्तर- भक्तिन का परम कर्तव्य मुझे खुश रखना था और इसके लिए वह बातों को इधर-उधर करके भी बताती थी और वह मानती थी कि इतना सा झूठ तो धर्मराज महाराज भी बोलते होंगे नहीं तो अपने भगवान को कैसे प्रसन्न रख पाते होंगे |
प्रश्न-3 पाठों की विषयवस्तु से संबंधित तीन बोधात्मक प्रश्न :-
(1) पाठ के आधार पर भक्तिन की तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए |
अथवा
‘भक्तिन’ पाठ के आधार पर भक्तिन की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए|
उत्तर- भक्तिन पाठ महादेवी के द्वारा लिखित प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें भक्तिन महादेवी की सेविका है | वह महादेवी से उम्र में 25 वर्ष बड़ी थी जिसकी वजह से उसने अपने आप सेविका से ज्यादा अभिभावक ही माना है | उसके सेवाभाव में अभिभावक जैसा अधिकारे और माँ जैसी ममता है | वह स्वभाव से कर्कश, कठोर और रूखी है फिर भी उसके मन में महादेवी के प्रति विशेष आदर, प्रेम और समर्पण भाव है | वह लेखिका को महान मानती है और उसका भला करने के फेर में लेखिका की रूचियाँ और आदतों में भी बदलाव कर देती है | उसका सेवा भाव अनुकरणीय है | वह महादेवी की छाया के सामान उसके साथ रहती है | महादेवी जिधर भी जिज्ञासा ससे देखती है भक्तिन वहीं पहुँच जाती है | भक्तिन वैसे तो डरपोक है किंतु स्वामिन के लिए वह बड़े लाट तक से लड़ने को तैयार हो जाती है | वह सचमुच समर्पित सेविका है, जिसने अपनी सद्भावना के बल पर अभिभावक पद पा लिया है |
(2) भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गई ?
उत्तर- भक्तिन तो देहाती थी ही, पर उसके आ जाने पर महादेवी भी देहाती हो गयी थी | भक्तिन ने महादेवी को देहाती खाने की विशेषताएँ बता-बताकर उसे खाने की आदत दाल देती है | वह बताती है कि रात को बना मकई का दलिया सवेरे मट्ठे से सोंधा लगता है | बाजरे के टिल लगाकर बनाए हुए पुए बहुत अच्छे लगते हैं | ज्वार के भुने हुए भुट्टे के हरे दाने की खिचडी बहुत स्वादिष्ट लगती है | उसके अनुसार सफ़ेद महुए की लपसी संसार भर के हलवे को लजा सकती है | भक्तिन ने धीरे-धीरे महादेवी को देहाती भाषा और दंतकथाएँ भी सिखा दी है | और भक्तिन की अनमोल आत्मीयता ने महादेवी को उसके अनुसार ढलने पर प्रेमपूर्वक मजबूर भी कर दिया था |
(3) भक्तिन के बेटी के विवाह के मामले में पंचायत के फैसले पर टिप्पणी कीजिए | और यह भी बताए की ऐसे रवैये से कैसे निपटा जाए?
अथवा
भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा जबरन पति थोंपा जाना स्त्री के मानवाधिकारों को कुचलने की परम्परा का प्रतीक है | इस कथन तर्कसम्मत टिप्पणी कीजिए |
उत्तर- भारतीय विवाह परंपरा में लड़कियों को अपनी इच्छानुसार वर चुनने की स्वतंत्रता नहीं होती थी तथा समाज व पंचायत द्वारा उनकी इच्छा को नजअंदाज भी कर दिया जाता था | इस पाठ में भक्तिन की बड़ी बेटी के साथ भी यही होता है | पति की मृत्य के बाद जिठौत ने अपने तीतरबाज साले के मिलकर जो किया, उसे उसकी सजा मिलनी चाहिए थी | लेकिन गाँव की पंचायत ने अपीलहीन फैसला करते हुए लड़की की इच्छा के विपरीत उसका विवाह उस तीतरबाज के साथ कर दिया जाता है | विवाह के नाम पर स्त्री के मानवाधिकारों को कुचलने की परंपरा इस देश में सदियों पुरानी है | आज भी हमारे समाज में स्त्रियों की यही दशा है, जो स्त्रियों के मानवाधिकारों के विरुद्ध है |विवाह जैसा गंभीर निर्णय लेने का लड़कियों को कोई अधिकार नहीं था, जो समाज की स्त्री विरोधी एवं पुरुषवादी मानसिकता का द्योतक है और सामजिक समानता का विरोधी है | ऐसी समस्याओं को शिक्षा द्वारा तथा स्त्रियों को आत्मनिर्भर बनाने से हल किया जा सकता है |
(4) भक्तिन अपना नाम क्यों छुपाती थी ? उसे यह नाम किसने और क्यों दिया?
उत्तर- भक्तिन का मूल नाम लछमिन या लक्ष्मी था, जो उसके भाग्य से बिलकुल भी मेल नहीं खाता था | इसलिए भक्तिन अपना वास्तविक नाम छुपाती थी | भक्तिन को यह नाम लेखिका महादेवी वर्मा ने दिया था क्योकि उसकी वेशभूषा में उसके गले में कंठी माला आदि थे |
प्रायः पूछे जाने वाले महत्त्वपूर्ण प्रश्न
1. लेखिका ने सेवक धर्म में भक्तिन की तुलना किससे की है और क्यों?
2. भक्तिन अपना नाम क्यों छुपाती थी? उसके नाम में क्या विरोधाभास था?
3. लेखिका ने भक्तिन को यह नाम किस आधार पर दिया था?
4. विमाता ने लक्षमिन के साथ कैसा व्यवहार किया और क्यों ?
5. ससुराल में भक्तिन को किस बात का दंड मिला ?
6. भक्तिन और उसके पति का आपसी व्यवहार किस तरह का था?
7. जिठानियों के बच्चों की तुलना काकभुशुंडी से क्यों की है?
8. पाठ में ऐसा क्यों कहा कि भक्तिन का दुर्भाग्य भी कम हठी न था ?
9. भक्तिन के आ जाने से लेखिका अधिक देहातिन कैसे हो गई थी?
10. भक्तिन लाट साहब तक से लड़ने को क्यों तत्पर थी?
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