11. जैनेंद्र कुमार
(बाजार दर्शन)
पाठ का सार:-
बाजार दर्शन पाठ में बाजारवाद और उपभोक्तावाद के जादू के बारे में बताया गया है। बाजार में एक जादू है और वह आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है और यह जादू तभी असर करता है जब जेब भरी हो और मन खाली हो। बाजार के जादू को रोकने का उपाय यही है कि बाजार जाते समय मन खाली न हो,मन में लक्ष्य भरा हो। बाजार की असली सार्थकता है- आवश्यकता के समय काम आना। जो लोग अपनी आवश्यकता के अनुसार बाजार का उपभोग करते हैं वे ही बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। जो लोग अपने पैसों के घमंड में पर्चेजिंग पावर को दिखाने के लिए खरीददारी करते हैं वे लोग बाजार का बाजारूपन ही बढ़ाते हैं। इस तरह के बाजार का पोषण करने वाला शास्त्र अनीतिशास्त्र है। इस पाठ में भगत जी के उदाहरण के माध्यम से अपने मन को नियंत्रण में करने और वास्तविक जीवन दर्शन पर बल दिया गया है।
प्रश्न-1. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 60-70 शब्दों में लिखिए-
“यहां एक अंतर चीन्ह लेना जरूरी है| मन खाली नहीं रहना चाहिए इसका मतलब यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए| जो बंद हो जाएगा वह शून्य हो जाएगा और शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो सनातन भाव से संपूर्ण है शेष सब अपूर्ण है इससे मन बंद नहीं रह सकता | सब इच्छाओं का निरोध कर लोगे यह झूठ है और अगर ‘इच्छानिरोध्स्तप:’ का ऐसा ही नकारात्मक अर्थ हो तो वह तब झूठ है|”
(क) यहाँ किस अंतर को समझने की बात कही गई है?
उत्तर- यह कि मन के खाली नहीं रहने का अर्थ यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए |उसमें कुछ भी नहीं रहे|
(ख) लेखक के अनुसार मन बंद क्यों नहीं रहना चाहिए?
उत्तर- वह इसलिए कि जो मन बंद हो जाता है वह शून्य हो जाता है जबकि शून्यहोने का अधिकार केवल परमात्मा का है|
(ग) शून्य होने का अधिकार किसका है और क्यों ?
उत्तर- शून्य होने का अधिकार केवल परमात्मा का है क्योंकि वह सनातन भाव से संपूर्ण है वह सत्य है शेष सब कुछ अपूर्ण है, नश्वर है|
प्रश्न-2 निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 60-70 शब्दों में लिखिए-
“यहाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाज़ार को सार्थकता वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वेक्या चाहते हैं, अपनी पर्चेजिंग पावर के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति- शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाज़ार को दे ते हैं। न तो वे बाज़ार का लाभ उठा सकते हैं, न उस बाज़ार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाज़ार का बाज़ारूपन बढाते हैं। जिसका मतलब है कि कपट बढाते हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ- परस्पर में सदभाव की घटी ।इस सदभाव के ह्रास से आदमी आपस में भाई- भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं, और आपस में कोरे गाहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं। मानो दोनों एक- दूसरे को ठगने की घात में हों ।एक की हानि में दूसरे का अपना लाभ दीखता है और यह बाज़ार का, बल्कि इतिहास का; सत्य माना जाता है| ऐसे बाज़ार को बीच में लेकर लोगों में आवश्यकताओं का आ दान- प्रदान नहीं होता; बल्कि शोषण होने लगता है तब कपट सफल होता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाज़ार मानवता के लिए विडंवना हैं और जो ऐसे बाज़ार का पोषण करता है, जो उसका शस्त्र बना हुआ है; वह अर्थ शास्त्र सरासर औंधा है, वह मायावी शास्त्र है, वह अर्थशास्त्र अनीति- शास्त्र है।“
1. बाज़ार को सार्थकता देने का क्या आशय है?यह कौन कर सकता है?
उत्तर- ज़रूरत की चीजों का बाज़ार से खरीदना | चीज़ खरीदने वाला |
2. ‘ऐसे बाज़ार ’प्रयोग का सांकेतिक अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- बाज़ार कि जादुई शक्ति |
3. बाज़ार का बाज़ारूपन क्या है? यह कैसे बढ़ाया जाता है?
उत्तर- केवल हानि- लाभ के लिए चकाचौंध पैदा करना |कपटी आचरण से |
प्रश्न-3 पाठों की विषयवस्तु से संबंधित तीन बोधात्मक प्रश्न :-
(1) बाजार का जादू क्या है ? उसके चढ़ने और उतरने का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?
उत्तर- बाजार का जादू चढ़ने पर मनुष्य बाजार के आकर्षक चीजों के वश में हो जाता है | वह लालक में आकर अनावश्यक चीजों को खरीदता चला जाता है | इस जादू के प्रभाव में मनुष्य सोचने लगता है कि बाजार में बहुत कुछ है और उसके पास बहुत कम चीजें हैं| बाजार का जादू मनुष्य के सिर चढ़ कर बोलता है और उसे विकल बना देता है| ऐसी अवस्था में बाजार कहता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो|बाजार का जादू उतरने पर मनुष्य को पता चलता है कि फैंसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती है, बल्कि खलल ही डालती हैं | बाजार का जादू उतरने पर उसे खरीदी गई चीजें अनावश्यक ही लगाने लगती हैं|
(2) बाजार की सार्थकता किसमे है?
अथवा
बाजारूपन से क्या तात्पर्य है ? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं ?
उत्तर- बाजारुपन से तात्पर्य है- दिखावे के लिए बाजार का उपयोग करना | जब हम अपनी क्रय शक्ति के गर्व में अपने पैसे से केवल विनाशक शक्ति, शैतानी शक्ति और व्यंग्य शक्ति बाजार को देते हैं तब हम बाजार का बाजारुपन बढ़ाते हैं | इस प्रकार के प्रवृत्ति के कारण न हम बाजार से लाभ उठा सकते हैं और न ही बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं |बाजार को सार्थकता वे ही लोग देते हैं जो यह जानते हैं कि वे क्या चाहते हैं |ऐसे व्यक्ति अपनी आवश्यकता की ही वस्तुएँ बाजार से खरीदते हैं | बाजार की सार्थकता इसी में है कि वह लोगो की आवश्यकताओं की पूर्ति करे |
(3) लेखक ने अर्थशास्त्र को अनीतिशास्त्र क्यों कहा है? उदाहरण देकर समझाइए |
उत्तर- इस पाठ में लेखक ने अर्थशास्त्र को अनीतिशास्त्र इसलिए कहा है क्योकि इसमें धन को अधिक से अधिक बढाने पर बल दिया गया है | धन बढ़ाने का तरीका भी गलत है और अनावश्यक गला काट प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है | इसे अनीतिशास्त्र कहने में निम्न कारण हैं-
बाजार का मूल दर्शन है- आवश्यकता की पूर्ती करना | यदि इस लक्ष्य को छोड़कर व्यापारी धन कमाने की होड़ में लग जाएगा तो बाजार का असली लक्ष्य ही नष्ट हो जाएगा | पैसा कमाने का लक्ष्य व्यापार में कपट बढाता है | व्यापारी ग्राहक की हानि करके भी अपना लाभ कमाना चाहते हैं | अतः ऐसे पूंजीवादी बाजार से मानवीय प्रेम, भाईचारा और सौहाद्र की भावना समाप्त हो जाती है| सभी लोग ग्राहक और विक्रेता बनकर रह जाते हैं| लोग बिना आवश्यकता के ही बाजार के जादू में फंसने लगते हैं | इसलिए लेखक ने ऐसे शास्त्र को अनीतिशास्त्र कहा है |
(4) बाजार दर्शन में लेखन ने भगत जी का उदाहरण क्यों दिया है ?
उत्तर- बाजार दर्शन के लेखक ने भगत जी का उदाहरण देते हुए पाठकों को यह समझाने का प्रयास किया है कि किस तरह से बाजार के जादू से बचा जा सकता है | लेखक भगत जी के माध्यम से बाजार के नकारात्मक प्रभावों को बेअसर करने की शिक्षा देना चाहता है | बाजार की चकाचौंध भगत जी पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकी | भगत आँख खोलकर, भरे हुए मन से और मग्न भाव से चौक बाजार से चले जाते हैं और एक छोटी सी पंसारी की दूकान से अपनी आवश्यकता की चीजें खरीदते हैं| भगत जी की आवश्यकताएँ बिलकुल स्पष्ट हैं और वे बाजार में भटकते नहीं हैं |
प्रायः पूछे जाने वाले महत्त्वपूर्ण प्रश्न
1. बाजार के बाजारुपन से क्या अभिप्राय है?
2. बाजार का जादू कब ज्यादा असर करता है?
3. बाजार कब आनंद देने लगता है?
4. पाठ के आधार पर ‘पर्चेंजिंग पावर’ किसे कहा गया है?
5. लेखक ने किस प्रकार के बाजार को मानवता के लिए विडंबना कहा ? और क्यों?
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