2. आनन्द राव (कहानी- जूझ)
कहानी का सार –
जूझ कहानी के लेखक ने इस कहानी के माध्यम से अपने उस संघर्ष को व्यक्त करने का प्रयास किया जिसमे वह पढ़ने तो चाहता है परन्तु अपने पिता के दबाव के कारण पढ़ नहीं पा रहा था | इस परिस्थिति जहाँ 90% बच्चे हार मान जाते है परन्तु लेखक हार नही मानी और अपनी सूझ बूझा से पढ़ाई जारी रखी | उसने विद्यालय जाने के लिए पिता की जो शर्तें मानी थी उनका पालन किया। वह विद्यालय जाने से पहले बस्ता लेकर खेतों में पानी देता। वह ढोर चराने भी जाता। मराठी अध्यापक सौंदलगेकर का उसके जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा क्योंकि कविता के अच्छे रसिक व मर्मज्ञ थे। वे कक्षा में बच्चों को सस्वर कविता-पाठ कराते थे तथा लय, छंद गति, आरोह-अवरोह आदि का ज्ञान कराते थे। उनसे प्रभावित होकर लेखक कुछ तुकबंदी करने लगा। उसे यह ज्ञात हो गया कि वह भी अपने आस-पास के दृश्यों पर कविता बना सकते है। धीरे-धीरे उनमें कविता रचने का आत्मविश्वास बढ़ने लगा। उसके जीवन को प्रगति देने सबसे ज्यादा योगदान उसका स्वयं का रहा उसके परन्तु अन्य लोगों ने मुख्य भूमिका निभाई जैसे –
दत्ता जी राव जिन्होंने उसके पिता को समझाया कि लेखक को पढ़ने भेजे |
लेखक की माता जिन्होंने अपने पति से डरते हुए भी युक्ति के द्वारा उसके पढ़ने के लिए रास्ता बनाया |
उसके अध्यापक सौंदलगेकर जिन्होंने उसे कविता और साहित्य का ज्ञान करवाया |
पाठ पर आधारित प्रश्न-
प्रश्न 1) जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
प्रश्न 2) स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
प्रश्न 3) श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रूचि जगाई।
प्रश्न 4) कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
प्रश्न. 5) आपके खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दें।
प्रश्न. 6) दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।
पाठ पर आधारित प्रश्नों के उत्तर
उत्तर-1: जूझ का अर्थ है – संघर्ष। यह कथानायक के जीवन भर के संघर्ष को दर्शाती है। बचपन से अभावों में पला बालक, विपरीत परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर सका। लगन,लक्ष्य प्राप्ति की इच्छा और मानसिक दृढ़ता से किसी भी परिस्थिति से जूझा जा सकता है।
कथानायक की चारित्रिक विशेषताएँ-
दृढ़ इच्छाशक्ति -- एक ओर पढ़ने के लिए पिता को दत्ता जी के माध्यम से मनाना तो दूसरी ओर पढने के साथ कविता रचने का भी साहस पा लेना कथानायक की दृढ़ इच्छाशक्ति को दर्शाता है।
पढ़ने की लगन- पुन पाठशाला जाने पर सहपाठियों के द्वारा परेशान किए जाने के बावजूद कक्षा के सबसे अच्छे छात्र बसंत पाटिल से प्रेरणा लेना उसकी पढ़ने की लगन को उजागर करता है।
उत्तर 2: स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में इस तरह पैदा हुआ कि उसे पढ़ाने वाले मराठी साहित्य के अध्यापक सौंदलगेकर जी कविता के ज्ञाता, रसिक व मर्मज्ञ थे।
वे कक्षा में गाकर कविता-पाठ करते थे तथा लय, छंद गति, आरोह-अवरोह आदि का ज्ञान कराते थे। कविता में आये भावों का अभिनय के द्वारा प्रस्तुतिकरण भी करते थे। उनसे प्रेरित होकर लेखक पहले तो कुछ तुकबंदी करने लगा। पर बाद में उसे प्रेरणा हुई कि वह अपने आस-पास के दृश्यों को देखकर, उन पर कविता बना सकता है। इस तरह धीरे-धीरे उनमें कविता रचने का आत्मविश्वास बढ़ने लगा। उसने एक कविता लिखकर उसे अपनी तरह से गाया और भाव भी प्रस्तुत किया। मास्टर जी उससे बहुत प्रभावित हुए और पूरे स्कूल के सामने उससे वह कविता प्रस्तुत करायी। इससे लेखक यानी आनंदा का हौसला बढ़ा। वह और गंभीरता से कविता रचने के काम में जुट गया।
उत्तर 3: श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की विशेषताओं इस प्रकार हैं, जिन्हों , जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रूचि जगाई-
1. मास्टर सौंदलगेकर कुशल अध्यापक, मराठी साहित्य के ज्ञाता व कवि थे।
2. वे सुरीले ढंग से स्वयं की व दूसरों की कविताएँ गाते थे।
3. पुरानी-नयी मराठी कविताओं के साथ-साथ उन्हें अनेक अंग्रेजी कविताएँ भी कंठस्थ थीं।
4. पहले वे कविता को गाकर सुनाते थे। फिर बैठे-बैठे अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण कराते थे।
5. आनन्दा को कविता लिखने के प्रारम्भिक काल में उन्होंने उसका मार्गदर्शन किया। कविता में सुधार किया। उसका आत्मविश्वास बढ़ाया। इससे वह धीरे-धीरे कविताएँ लिखने में कुशल होकर प्रतिष्ठित कवि बन गया।
उत्तर 4: कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक ढोर ले जाते समय, खेत में पानी डालते और अन्य काम करते समय अकेलापन बुरा लगता था। कविता के प्रति लगाव हो जाने के बाद वह खेतों में पानी देते समय, भैंस चराते समय कविताओं में खोया रहता और चाहता कि वह अकेला ही रहे। अकेलेपन से उसे ऊब न होती। अब उसे अकेलापन अच्छा लगने लगा था। वह अकेले में कविता गाता, अभिनय व नृत्य करता था।
उत्तर 5: मेरे खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया ही सही था। लेखक के पिता तो शिक्षा के विरोधी थे। इस संबंध में मैं ये तर्क देना चाहता हूं-लेखक का मत है कि जीवन भर खेतों में काम करके कुछ भी हाथ आने वाला नहीं है। अगर मैं पढ़-लिख गया, तो कहीं मेरी नौकरी लग जाएगी या कोई व्यापार ही करके अपने जीवन को सफल बनाया जा सकता है। दत्ता जी को जब पता चलता है लेखक के पिता उसे पढ़ने से मना करते हैं, तो राव पिता जी को बुलाकर खूब डाँटते हैं। उनकी आवारगी पर फटकार भी लगाते हैं।फीस के पैसों के लिये अपने यहां आनंदा को कुछ काम करने का प्रस्ताव भी देते हैं।
उत्तर 6: दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को झूठ का सहारा लेना पड़ा। कभी-कभी अच्छे काम के लिये झूठ का भी सहारा लेना पड़ता है। अगर वे झूठ का सहारा न लेते और सच बता देते कि उन्होंने दत्ता जी राव से पिता को बुलाकर लेखक को स्कूल भेजने के लिए कहा है, तो लेखक के पिता दत्ता राव के घर कभी न जाते।संभव है कि वे माँ-बेटे की पिटाई भी कर देते। लेखक को खेती में ही झोंके रखते और लेखक का जीवन बरबाद हो जाता।
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