ghanshyamsharmahindi.blogspot.com

Saturday, 4 April 2020

E content 12th vishnu khare

14. विष्णु खरे
(चार्ली चैप्लिन यानी हम सब)        
पाठ का सार-संसार के महानतम् अभिनेता चार्ली चैप्लिन के बारे में रचित इस निबंध में चार्ली के अभिनय की आधारभूत विशेषताओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं। चार्ली के अभिनय में हास्य और करुणा का मिश्रित संतुलन ही उन्हें आम जनता के अपने कष्टों और दुखों तक ले जाता है। इस तरह वे अभिनय के माध्यम से आम जन से सीधे जुड़ाव करते हैं।चार्ली के जीवन के एक सौ तीस साल पूरे हो चुके हैं, और उनकी फिल्में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक लगातार अपनी लोकप्रियता बनाये हुए हैं। उनकी पहली फिल्म थी, ‘मेकिंग ए लिविंग’ उसे बने हुए भी सौ साल से ज्यादा हो रहे हैं।चार्ली की फिल्मों का मूल बुद्धि पर नहीं, भावनाओं और मनुष्यता पर टिका हुआ है। उनकी फिल्मों की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि उन्हें पागलखाने के मरीज, साधारण जन और आइंस्टीन जैसे महान प्रतिभावान एक साथ देख सकते हैं और उसका आनंद ले सकते हैं।चार्ली ने फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया और दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण व्यवस्था को भी तोड़ा। चार्ली के बचपन की कुछ घटनाओं ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। उनमें से एक यह है, कि जब वे बीमार थे, तब उनकी मां ने उन्हें ईसा मसीह के जीवन के बारे में पढ़कर सुनाया था। उससे उन्हें स्नेह, करुणा और मानवता के गुणों को ग्रहण किया था।करुणा को हास्य में और हास्य को करुणा में बदल देने वाले वे एकमात्र अभिनेता हैं। भारतीय फिल्मों और अभिनेताओं पर भी चार्ली का खासा असर देखा जा सकता है। राजकपूर तो जीवन भर चार्ली से ही प्रेरित रहे। चार्ली की अधिकतर फिल्में मूक हैं। भाषा से परे। इसीलिये उन्हें ज्यादा से ज्यादा मानवीय होना पड़ा। मानवीयता की भाषा ने ही चार्ली को विश्व भर के दर्शकों तक पहुंचाया। चार्ली की फिल्में आम आदमी की विविध असफलताओं को दिखाती हैं, जो कि असल में उसकी असफलताएं नहीं हैं, बल्कि एक क्रूरतावादी सभ्यता के आगे लाचार हो गये आम आदमी का कड़वा सच हैं।इस आम आदमी के साथ खड़े चार्ली सदा अमर रहे |
गद्यांश पर आधारित प्रश्न :-
गदयांश (1)
​“यदि यह वर्ष चैप्लिन की जन्मशती का न होता तो भी चैप्लिन के जीवन का एक महत्वपूर्ण वर्ष होता क्योंकि आज उनकी पहली फिल्म “ मेकिंग ए लिविंग “ के 75 वर्ष पूरे होते हैं | पौन शताब्दी से चैप्लिन की कला दुनिया के सामने है और पाँच पीढ़ियो को मुग्ध कर चुकी है| समय, भूगोल और संस्कृति की सीमाओ से खिलवाड़ करता हुआ चार्ली आज भारत के लाखों बच्चों को हंसा रहा है जो उसे अपने बुढ़ापे तक याद रखेंगे | पश्चिम में  तो बार बार चार्ली का पुनर्जीवन होता ही है, विकासशील दुनिया मे  जैसे-जैसे टेलीविज़न और वीडियो का प्रसार हो रहा है , एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए  सिरे से चार्ली को घड़ी सुधारते या जूते खाने की कोशिश करते हुए  देख रहा है | चैप्लिन की ऐसी कुछ फिल्मे या इस्तेमाल न की गयी रीलें भी मिली हैं जिनके बारे मे कोई जनता न था अभी चैप्लिन पर करीब 50वर्ष तक काफी कुछ कहा जाएगा|”
1 पाठ और लेखक का नाम लिखें |
2 चैप्लिन के जन्म शती का वर्ष महत्वपूर्ण क्यों है ?
3 चार्ली को लोग कब तक याद रखेंगे ?
4 विकासशील देशों में चैप्लिन क्यों लोकप्रिय हो रहे हैं?
गदयांश (2)
​“चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म कला को लोकतान्त्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा | यह अकारण नहीं है कि जो भी व्यक्ति ,समूह या तंत्र गैर बराबरी नहीं मिटाना चाहता वह अन्य संस्थाओं के अलावा चैप्लिन की फिल्मों पर भी हमला करता है | चैप्लिन भीड़ का वह बच्चा है जो इशारे से बटला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना मैं हूँ और भीड़ हंस देती है | कोई भी शासक या तंत्र जनता का अपने ऊपर हँसना पसंद नहीं करता | एक परित्यक्ता , दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होने , बाद में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना , साम्राज्य , औद्योगिक क्रांति , पूंजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाजद्वारा दुरदुराया जाना - इन सबसे चैप्लिन को वे जीवन-मूल्य मिले जो करोड़पति हो जाने के बावजूद अंत तक उनमे रहे |”
(1) कोई भी शासक या तंत्र क्या पसंद नहीं करता ?
(2) चैप्लिन ने क्या युगांतकारी परिवर्तन किए ?
(3) चैप्लिन पर कौन लोग हमला करते हैं ?
(4) चैप्लिन के जीवन में कौनसे मूल्य अंत तक रहे ?
गदयांश (3)
​“एक होली का त्योहार छोड़ दें तो भारतीय परंपरा में व्यक्ति के अपने पर हँसने , स्वयं को जानते - बूझते हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं के बराबर है | गाँवों और लोक संस्कृति में तब भी वह शायद हो , नगर-सभ्यता में तो वह थी ही नहीं | चैप्लिन का भारत में महत्त्व यह है कि वह अंग्रेजों जैसे व्यक्तियों पर हँसने का अवसर देते हैं | चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत्त , आत्मविश्वास से लबरेज , सफलता , सभ्यता , संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति , दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ ,अपने को "वज्रादपि कठोराणी" अथवा "मृदुनि कुसुमादपि" क्षण में दिखलाता है |”
(1) होली का त्योहार किस रूप में क्या अवसर प्रदान करता है ?
(2) अपने पर हँसने के संदर्भ में लोक संस्कृति एवं नगर-सभ्यता में मूल अंतर क्या था और क्यों ?
(3) 'अंग्रेजों जैसे व्यक्तियों ' वाक्यांश में निहित व्यंग्यार्थ को स्पष्ट कीजिए?
(4) चार्ली जिन दशाओं में अपने ऊपर हँसता है , उन दशाओं में ऐसा करना अन्य व्यक्तियों के लिए संभव क्यों नहीं है?
विषयवस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न-
(1) चार्ली चैप्लिन को लोग कब तक याद रखेंगे ?
(2) चार्ली चैप्लिन का क्या चमत्कार है ?
(3)  चार्ली चैप्लिन का जीवन किन परिस्थितियों में बीता ?

(4) भारतीय परंपराओं में क्या नही मिलता ?
(5) चार्ली के बारे में क्या मूल्यांकन होना शेष है ?

(6) हमारा चेहरा कब चार्ली-चार्ली हो जाता है ?
(7) होली का  त्यौहार क्या अवसर प्रदान करता है ?
(8) लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों ?गांधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा ?
(9) जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे सम्पन्न बनाया ?
(10)“अभी चार्ली चैप्लिन पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है।”लेखक ने यह बात क्यों और किस संदर्भ में कही है ?  
​​     पाठ का नाम – चार्ली चैप्लिन यानी हम सब

गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर
गदयांश (1)
(क) पाठ का नाम - चार्ली चैप्लिन यानी हम सब, लेखक – विष्णु खरे
(ख) क्योंकि इसी दिन उनकी पहली  फिल्म “ मेकिंग ए लिविंग “ के 75 वर्ष पूरे हुए। वे पाँच पीढ़ियों को मुग्ध  कर चुके हैं।
(ग) चार्ली समय, भूगोल और संस्कृतियों को पार करते हुए लाखों बच्चों को हँसा रहे हैं अतः लोग उसे अपने बुढ़ापे तक याद रखेंगे।
(घ) विकासशील देशों में  जैसे-जैसे टेलीविज़न और वीडियो का प्रसार हो रहा है , एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए  सिरे से चार्ली को घड़ी सुधारते या जूते खाने की कोशिश करते हुए देख रहा है। इसी कारण चैप्लिन लोकप्रिय हो रहे हैं।
गदयांश (2)
(1) कोई भी शासक या तंत्र जनता का अपने ऊपर हँसना पसंद नहीं करता |
(2) चैप्लिन ने फिल्म कला को लोकप्रिय और लोकतान्त्रिक बनाया | उसने दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा | चैप्लिन ने इस तरह के युगांतकारी परिवर्तन किए |
(3) चैप्लिन पर वे लोग हमला करते हैं जो व्यक्ति,समूह या तंत्र के भेदभाव को नहीं मिटाना चाहते| वे समाज व कला के परंपरागत रूप को बनाए रखना चाहते हैं |
(4) एक परित्यक्ता , दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होने , बाद में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना , साम्राज्य , औद्योगिक क्रांति , पूंजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज द्वारा दुरदुराया जाना - इन सबसे चैप्लिन को वे जीवन-मूल्य मिले जो उनके जीवन में अंत तक रहे |
गदयांश (3)
(1) होली का त्योहार व्यक्ति को अपने पर हँसने तथा मौज मस्ती करने का अवसर प्रदान करता है |
(2) अपने पर हँसने के संदर्भ में लोक संस्कृति एवं नगर-सभ्यता में मूल अंतर यह था कि लोक संस्कृति में तो इसके अनेक अवसर थे , पर नगर सभ्यता में ये अवसर मिलते ही नहीं थे |
(3) 'अंग्रेजों जैसे व्यक्तियों ' वाक्यांश में निहित व्यंग्यार्थ यह है कि बनावटी जिंदगी जीने वाले व्यक्तियों अर्थात जो हैं तो भारतीय पर अंग्रेज़ी सभ्यता के प्रभावस्वरूप स्वयं को अंग्रेज़ सिद्ध करने पर तुले हुए हैं |
(4) चार्ली जिन दशाओं में अपने ऊपर हँसता है , उन दशाओं में ऐसा करना अन्य व्यक्तियों के लिए संभव इसलिए नहीं है क्योंकि इसमें अत्यधिक आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है |
विषयवस्तु पर आधारित प्रश्नों के उत्तर –
(1) चार्ली समय,भूगोल और संस्कृतियों को पार करते हुए लाखों बच्चों को हँसा रहे हैं अतः लोग उसे अपने बुढ़ापे तक याद रखेंगे।
(2) चार्ली चैप्लिन का सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि उनकी फिल्मों को पागल से लेकर बुद्धिमान व्यक्ति तक देखते हैं।पागलखाने का मरीज, विकल मस्तिष्क वाला तथा प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति अर्थात सभी स्तर के लोग उनकी फिल्मों को रस लेकर देखते हैं।
(3) चार्ली चैप्लिन का जीवन अत्यंत विषम परिस्थितियों में बीता। उसकी माँ परित्यक्ता व स्टेज अभिनेत्री थी। चार्ली को गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना पड़ा। उसे औद्योगिक घरानों एवं सामंतों से भी टक्कर लेनी पड़ी। 
(4) भारतीय परम्पराओं में ऐसा रस-सिद्धांत नही मिलता जो करुणा को हास्य में बदल सके।
(5) चार्ली ने भारतीय जनमानस पर जो व्यापक प्रभाव डाला है, उसका पर्याप्त मूल्यांकन होना अभी शेष है।
(6) जब हम सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चर्मोत्कर्षो में आइना देखते हैं तब हमारा चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है।
(7) होली का त्यौहार व्यक्ति को अपने पर हँसने तथा मौज-मस्ती करने का अवसर प्रदान करता है।
(8) लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण राजकपूर को कहा क्योंकि राजकपूर की फ़िल्म ‘आवारा’ सिर्फ ‘दिट्रैम्प’ का शब्दानुवाद ही नही था बल्कि चार्ली का भारतीयकरण ही था। गांधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य इसलिए चाहा था क्योंकि उन्हें चार्ली अच्छा लगता था। वह उन्हें हँसाता था।
(9) उसकी माँ परित्यक्ता व स्टेज अभिनेत्री थी। चार्ली को गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना पड़ा। उसे पूंजीपतिवर्ग तथा सामंतशाहों ने भी दुत्कारा। वे नानी की तरफ से खानाबदोशों के साथ जुड़े हुए थे। अपने पिता की तरफ से वे यहूदीवंशी थे। जटिल परिस्थितियों से संघर्ष करने की प्रवृत्ति ने उन्हें ‘घूमंतू’ चरित्र बना दिया। इस संघर्ष के दौरान उन्हें जो जीवन मूल्य मिले, वे उनके धनी होने के बावजूद अंत तक कायम रहे। उनके संघर्ष ने उनके व्यक्तित्व में त्रासदी और हस्योत्पादक तत्त्वों का समावेश कर दिया। उसका व्यक्तित्व इस रूप में ढल गया जो अपने ऊपर हंसता है|
(10) लेखक स्पष्ट रूप से मानता है कि आने वाले 50 वर्ष तक चार्ली चैप्लिन जैसा महान      हास्यकलाकार और कोई नहीं हो सकेगा। चार्ली द्वारा अभिनीत कुछ फिल्में या प्रयोग में नहीं लाई गई कुछ रीलें हाल ही में मिली हैं, जिनके बारे में कोई नही जानता था। उन रीलों द्वारा दर्शकों का मनोरंजन भी होगा तथा समीक्षक उसकी समीक्षा भी करेंगे। चार्ली चैप्लिन का अभिनय उन्हें लम्बे समय तक प्रासंगिक व लोकप्रिय बनाए रखेगा यानी अभी बहुत दिनों तक चार्ली चैप्लिन पर चर्चा होगी। लेखक ने प्रस्तुत पंक्ति इसी संदर्भ में कही है।

(11) लेखक ने चार्ली के विषय मे निम्न निष्कर्ष निकाले हैं-
चार्ली ने पिछले 75 वर्षों से संसार को अपनी फिल्मों से मुग्ध किया है।
चार्ली ने पाँच पीढ़ियों को इतना हँसाया है कि वे उसे बुढ़ापे तक याद रखेंगे।
चार्ली में दर्शक अपना रूप भी देख लेते हैं।
चार्ली ने संसार को अपने ऊपर हँसना सिखाया है।
चार्ली ने फ़िल्मकला को लोकतांत्रिक बनाया तथा दर्शकों की वर्ग एवम वर्णव्यवस्था को तोड़ा।
(12) पहली घटना- बचपन में चार्ली का बीमार होना और उनकी माँ के द्वारा ईसामसीह के जीवन बाइबिल से पढ़कर सुनाते हुए दोंनो का एक साथ रो पड़ना।दूसरी घटना- एक कसाई के हाथ से एक भेड़ के जान छुड़ाकर भागने की घटना वे उसकी प्रतिक्रिया।

(13) चार्ली की अधिकांश फिल्में भाषा का इस्तेमाल नही करती इसलिये उन्हें ज्यादा से ज्यादा मानवीय होना पड़ा। बड़े बड़े हास्यकलाकार चार्ली की सार्वभौमिकता तक नही पहुँच पाए। चार्ली का चिर युवा होना या बच्चों जैसा दिखना एक विशेषता तो है ही, सबसे बड़ी विशेषता शायद यह है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नही लगते। चार्ली के सारे संकटों में हमें यह भी लगता है कि यह ‘मैं’ भी हो सकता हूँ, लेकिन ‘मैं’ से ज़्यादा चार्ली हमें ‘हम’ लगते हैं।
(14) निस्संदेह चार्ली की फिल्मों का प्रधान पक्ष भावना है न कि बुद्धि | उनकी फिल्मों में त्रासदी भी है और हास्योत्पादक तत्वों का समन्वय भी | चार्ली चैप्लिन पर बाल्यावस्था में घटित घटनाओं का गहरा प्रभाव पड़ा |उसकी माँ स्टेज अभिनेत्री थी |उसने बचपन में भयावह गरीबी का अनुभव किया था | उनकी प्रमुख फिल्में हैं- मेट्रोपोलिस,द कैबिनेट ऑफ डॉक्टर कैलिगरी,द रोवन्थ सील, लास्ट ईयर इन मरिएनबाद, द सेकरीफाइस आदि |इन सभी में बुद्धि का प्राधान्य नहीं है अपितु भावना की प्रधानता है |
​​​​​

No comments:

Post a Comment

हर घर तिरंगा har ghar tiranga selfie my gov connect

  +91 93554 13636 *नमस्कार*   my gov connect द्वारा *हर घर तिरंगा* अभियान चलाया जा रहा है।      इसके अंतर्गत दिए गए नम्बर पर *Hi* लिखकर भेजे...