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Saturday, 4 April 2020

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13.फणीश्वर नाथ रेणु
(पहलवान की ढोलक)
पाठ का सार- कहानी ‘पहलवान की ढोलक’ में कहानी के मुख्य पात्र लुट्टन के माता-पिता का देहांत उसके बचपन में ही हो गया था। अनाथ लुट्टन को उसकी विधवा सास ने पाल-पोसकर बड़ा किया था। उसकी सास को गाँव वाले सताते थे। यह बात लुट्टन को बुरी लगती थी। उसने लोगों से बदला लेने के लिए कुश्ती के दाँव-पेंच सीखे और कसरत करके पहलवान बन गया।एक बार लुट्टन श्यामनगर मेला देखने गया हुआ था। वहाँ पर ढोल की आवाज और कुश्ती के दाँव-पेंच देखकर उसने जोश में आकर नामी पहलवान चाँदसिंह को ही चुनौती दे दी। लुट्टन ने चाँद सिंह को हरा दिया और वहां का ‘राज पहलवान’ बन गया। इससे उसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फ़ैल गयी। वह 15 वर्षों तक अजेय बना रहा।उसके दो पुत्र थे। उसने दोनों बेटों को भी पहलवानी के गुर सिखा दिये थे।राजा की मृत्यु के बाद नए राजकुमार ने गद्दी संभाली। राजकुमार को घोड़ों की दौड़ का शौक था। मैनेजर ने नये राजा को भड़काया और पहलवान तथा उसके दोनों बेटों के भोजनखर्च को फ़िजूल खर्च बताया। नए राजा ने उसकी सलाह मानकर कुश्ती को बंद करवा दिया और पहलवान लुट्टनसिंह को उसके दोनों बेटों सहित महल से निकाल दिया।राजदरबार से निकाल दिए जाने के बाद लुट्टन सिंह अपने दोनों बेटों के साथ गाँव में झोपड़ी बनाकर रहने लगा और गाँव के लड़कों को कुश्ती सिखाने लगा। लुट्टन का शिक्षण ज्यादा दिन नहीं चला। उसके दोनों बेटों को मजदूरी करनी पड़ी। इसी दौरान गाँव में अकाल और महामारी आ पड़ी। लोग मरने लगे और प्रतिदिन लाशें उठायी जाने लगीं।पहलवान ने ऐसे भीषण समय में साहस नहीं खोया। वह महामारी से डरे हुए लोगों को ढोलक बजाकर बीमारी से लड़ने की ताकत देने लगा। एक दिन पहलवान के दोनों बेटे भी महामारी की चपेट में आकर मर गए, पर उस रात भी पहलवान ढोलक बजाकर लोगों को हिम्मत बंधाने का काम किया। पर इस घटना के चार-पाँच दिन बाद पहलवान की भी मौत हो जाती है।पहलवान की ढोलक, व्यवस्था के बदलने के साथ लोक कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने की कहानी है। इस कहानी में लुट्टन नाम के पहलवान की हिम्मत और जिजीविषा का वर्णन किया गया है। व्यवस्था का कला के प्रति अनादर, भूख और महामारी, अजेय लुट्टन की पहलवानी को फ़टे ढोल में बदल देते हैं। यह कहानीअपने अंत के साथ यह सवाल करती है कि कला का कोई स्वतंत्र अस्तित्व भी है या पहीं अथवा कला व्यवस्था की मोहताज ही रहेगी ?
गद्यांश पर आधारित अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्न :-
गद्यांश (1)
“ रात्रि की विभीषिका को सिर्फ़ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी।पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस खयाल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अदर्धम्रत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज़ में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें सेंदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आंख मूंदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।“
प्रश्न--
[क] गद्यांश में रात्रि की बिभीषिका की चर्चा की गई है। ढ़ोलक उसको किस प्रकार की चुनौती देती थी?  
[ख] किस प्रकार के व्यक्तियों को ढ़ोलक से राहत मिलती थी?   यह राहत कैसी थी?  
[ग]दंगल के दृश्य से लेखक का क्या अभिप्राय है?  यह दृश्य लोगों पर किस तरह का प्रभाव डालता था?  
[घ] ढ़ोलक की आवाज का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता था?  

गद्यांश (2)
​“अंधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने ह्रदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफ़लता पर खिलखिलाकर हंस पड़ते थे।“
​[क]गांव में ऎसा क्या हो गया था कि अंधेरी रात चुपचाप आँसू  बहा रही थी?  
​[ख]कहानी में वातावरण निर्माण के लिए लेखक अंधेरी रात के स्थान पर चाँदनी रात         ​       को चुनता तो क्या अंतर आ जाता?   स्पष्ट करें।
​[ग]उक्त गद्यांश के आधार पर  लेखक की भाषा-शौली पर टिप्पणी कीजिए |
​[घ]’निस्तब्धता’किसे कहते है?उस रात की निस्तब्धता क्या प्रयत्न कर रही थी और   ​         क्यों?  
गद्यांश-3
“गाँव प्राय: सूना हो चला था।घर के घर खाली पड़ गए थे।रोज़ दो-तीन लाशें उठने लगीं | लोगों मे खलबली मची हुई थी।दिन मे तो कलरव हा हाकार तथा  हृदय विदारक रूदन के बावजूद भी लोगों के चेहरे पर कुछ प्रभा दृष्टिगोचर होती थी ,शायद सूर्य  के प्रकाश मे सूर्योदय होते ही लोग कांखते-कूखते –कराहते अपने-अपने घरों से बाहर अपने पड़ोसियो और आत्मीयों को ढाढ़स देते थे। अरे क्या करोगी रोकर ,दुल्हिन ! जो गया सो चला गया , वह जो है उसको देखो।“

​(क) गाँव प्राय:सूना क्यों हो गया था ?
 ​(ख) सूर्योदय होते ही लोग क्या करते थे ?
​(ग) हैजा के बावजूद भी लोगों के चेहरे पर कैसा भाव दिखता था ?
​(घ) सूर्योदय का विपरीत शब्द लिखिए |
गद्यांश 4
​“सौभाग्यवश शादी हो चुकी थी , वह भी मां – बाप का अनुसरण करता। विधवा सास ने पाल-पोस कर बड़ा किया। बचपन से वह गाय चराता , धारोष्ण दूध पीता और कसरत किया करता था। गांव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ दिया करते थे; लुट्टन के सिर पर कसरत की धुन लोगों से बदला लेने के लिए सवार हुई थी। नियमित कसरत ने किशोरावस्था में ही उसके सीने और बांहों को सुडौल बना दिया था। जवानी में कदम रखते ही गांव में सबसे अच्छा पहलवान समझा जाने लगा था। लोग उससे डरने लगे थे और वह दोनों हाथों को 45 डिग्री की दूरी पर फैलाकर ,पहलवानों की भांति चलाने लगा।“
       ​(क) लुट्टन को पाल-पोस कर किसने बड़ा किया ?
      ​(ख) अपनी सास की तकलीफ का बदला किससे लेना चाहता था ?
       ​(ग)गांव के लोग उससे क्यों डरने लगे थे ?
      ​(घ)लुट्टन ने पहलवानी क्यों सीखा ?


पाठ की विषय वस्तु आधारित प्रश्न -
1)कुश्ती के समय ढ़ोल की आवाज और लुट्टन के दाव-पेंच में क्या ताल-मेल था?   ढ़ोलक की आवाज आप के मन में कैसी ध्वनि पैदा करती है?  
2)कहानी में लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आया?  
3) लुट्टन  पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरू कोई पहलवान नही ,यही ढोल है?  
4)ढोल की आवाज का पूरे गांव पर क्या असर होता था?  
5) पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है पाठ में ऎसे अंश को चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।
गदयांश पर आधारित अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नों के उत्तर :-
उत्तर- गद्यांश 1
[क] महामारी की बिभीषिका की चर्चा की गई है।ढ़ोलक की आवाज मन में उत्साह पैदा करती हैजिससे मनुष्य महामारी से निपटने को तैयार होता है।
[ख] ढोलक से महामारी के कारण अदर्धमृत,औषधी और उपचार विहीन लोंगों को राहत मिलती थी। उसकी आवाज़ सुनकर उनके शरीरों में दंगल जीतने का दृश्य साकार हो उठ्ता था।
[ग] लुट्ट्न ढोलक की आवाज़ के बल पर  ही दंगल जीतता था। उस दृश्य को याद कर लोग उत्साह से भर उठते है। वह उन्हें बीमारी से लड़ने  की प्रेरणा देता है।
[घ] ढोलक की आवाज़ से स्पंदन-शक्ति-शून्य  स्नायुओं में बिजली दौड़ जाती थी। यह मरते हुए प्राणियों की तकलीफ़ भी कम कर देती थी। वे मरते समय मृत्यु से डरते नहीं थे।
उत्तर - गद्यांश 2
[क] गांव में हैजे मलेरिया का प्रकोप था।इस कारण घर-घर मौतें हो रही थी यह देखकर अंधेरी रात भी आँसू बहा रही थी।
[ख] कहानी में वातावरण बनाने के लिए लेखक चाँदनी रात को चुनता तो भाव में अन्तर आ जाता क्योंकि चादनी रात प्रेम और संयोग की अभिब्यक्ति करती है। इससे मनुष्य की व्यथा और दयनीय दशा का सुन्दर चित्रण नही हो पाता।
[ग] इस गद्यांश में लेखक ने चित्रात्मक एवं अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया है। रात का मानवीकरण किया है कि वह मानव की तरह रो रही है। मिश्रित शब्दावली एवं खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
[घ] निस्तब्धता का अर्थ मौन या गतिहीनता है क्योकिं रात के अंधेरे में सब कुछ शान्त हो जाता है। उस रात की निस्तब्धता करूण सिसकियों व आहों को दबाने की कोशिश कर रही है क्योकिं दिन में मौत का तांडव रहता है तथा हर तरफ चीख - पुकार होती है।
उत्तर - गद्यांश 3
1) हैजे की चपेट में गांव पराया: सून हो चला था क्योंकि ज़्यादातर लोग  मर गए थे |
2) सूर्योदय होते ही लोग एक दूसरे को सांत्वना देते थे कि अब रोकर क्या करोगे जो चला गया सो गया अब जो जिंदा है उसकी चिंता करो |
3) हैजे के बावजूद भी भी लोगों के चेहरे पर आशा का भाव दिखाई देता था |
4) सूर्योदय का विपरीत सूर्यास्त है |

उत्तर - गद्यांश 4
1) लुट्टन को उसकी सास ने पाल-पोस कर बड़ा किया |
2) गांव वालों से अपनी सास की तकलीफ का बदला लेना चाहता था | क्योकि  वे उसकी सास को तकलीफ देते थे |
3) जब वह एक अच्छा पहलवान बन गया तब गांव वाले उससे डरने  लगे क्योकि वह अपनी सास का बदला लेना चाहता था |
4) लुट्टन ने अपनी सास का बदला लेने की ठान ली थी इसलिए वह नियमित व्यायाम करता था ताकि वह एक अच्छा पहलवान बनकर गांव वालों से बदला ले सके |
पाठ की विषय वस्तु आधारित प्रश्नों के उत्तर
उत्तर-(1) कुश्ती के समय ढ़ोल की आवाज और लुट्टन के दाव-पेंच में अद्भुत तालमेल था।ढ़ोल बजते ही रगों में खून दौड़ने लगता था उसे हर थाप में नए दांव-पेंच सुनाई देता था जैसे-चट धा गिड़ धा-मत डरना, चटाक चट धा- उटा पटक दे, धाक धिना तिरकट धिना-दांव काटो बाहर  हो जा,धिना-धिना,धिक धिना-चित करो,चित करो आदि ध्वन्यात्मक शब्द मन में उत्साह का संचार करते हैं।
(2) कहानी में लुट्टन के जीवन में अनेक मोड़ आए जैसे--
​-नौ वर्ष की उम्र में माता-पिता की मृत्यु और उसका पालन-पोषण विधवा सास ने किया।   ​सास पर होने वाले अत्याचारों का बदला लेने के लिए वह पहलवानी करने लगा।
​-श्यामनगर के दंगल में चांद सिंह पहलवान को हराकर राज पहलवान बन गया और १५  ​वर्ष तक अपने बेंटों को पहलवानी सिखाता रहा
​- राजा श्यामनंद के मरने पर राजकुमार ने उसे महल से निकाल दिया।
​ गांव में महामारी फैलने के बाद उसके बेंटों की मृत्यु हो गई और अंतत: उसकी भी  
​ मृत्यु हो गई पर वह कभी हार नही माना। 
(3) लुट्टन पहलवान का कोई व्यक्ति नहीं बल्कि ढ़ोलक ही उसकी गुरू थी क्योंकि ढ़ोलक के थाप से ही वह अपने दांव पेंच लगाता था जैसे- कुश्ती के समय ढ़ोल की आवाज और लुट्टन के दाव-पेंच में अद्भुत तालमेल था।ढ़ोल बजते ही रगों में खून दौड़ने लगता था उसे हर थाप में नए दांव-पेंच सुनाई देता था जैसे-चट धा गिड़ धा-मत डरना, चटाक चट धा- उटा पटक दे, धाक धिना तिरक्ट धिना-दांव काटो बाहर हो जा,धिना-धिना,धिक धिना-चित करो,चित करो आदि ध्वन्यात्मक शब्द उसके मन में उत्साह का संचार करते थे।
(4) महामारी से जूझते हिए लोगों के लिए ढ़ोलक की आवाज संजीवनी शक्ति का काम करती थी  क्योंकि इसकी आवाज सुनते ही बूढ़े बच्चे एवं जवान सभी के आँखों के सामने दंगल का दृश्य नाचने लगता था और उनकी स्पंदन शक्ति से शुन्य स्नायुओं में बिजली दौड़ जाती थी अत: आँखे मूंदते समय उन्हें कोई तकलीफ नही होती थी अर्थात उन्हें मृत्यु से डर नही लगता था इस तरह ढ़ोलक की आवाज उनमें प्रेरणा जगाती थी।
(5) पाठ में कई जगह मानवीकरण के सुन्दर उदाहरण दिए गए हैं जैसे--
क.अंधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी अर्थात गाँव वालों के पीड़ा के रात भी आँसू बहा रही थी।
ख.  गाँव भयार्त शिशु की तरह कांप रहा था अर्थात गाँव भी लोगों की तरह कांप रहा था।
ग. कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता।
घ. अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

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