अपठित अवबोध (गद्यांश एवं पद्यांश )
पारंपरिक शिक्षा तीव्रगति से वैज्ञानिकता की ओर बढ़ रही है। परिवर्तनशील जगत में शैक्षिक परिवेश भी बदलता जा रहा है। इस क्षेत्र में नित्य नूतन प्रयोग किए जा रहे हैं जिसका समावेश वर्तमान शैक्षिक परिवेश में होना स्वाभाविक ही है। यदि आज की मांग की उपेक्षा करके पारंपरिक शिक्षा पर केवल बल दिया जाए तो आज का बालक शिक्षा –विमुख हो जाएगा। बालक उस चीज को ज्यादा सीखने का प्रयास करता है और जल्दी सीख लेता है जो उसके रूचि के अनुकूल हो तथा वैज्ञानिकता पर आधारित हो।यदि किसी बालक को पारंपरिक शिक्षा पद्धति के नीरस मार्ग पर ले जाने का बलात प्रयास किया जाए तो शिक्षण का उद्देश्य असफल होना अवश्यम्भावी है।
वर्तमान समय में शिक्षा–ज्ञान का साधनमात्र न होकर व्यवसाय हो गयी है। लोग अपनी व्यावसायिकता के क्षेत्र में उच्चतर प्रतिमान स्थापित करने के लिए स्वयं को गतिमान एवं परिवर्तनशील बनाए रखना चाहते हैं। आज के तकनीकी युग में छात्रों के पास इतना समय नहीं कि वे रामायण, महाभारत आदि अतिपृथुल ग्रंथों का अध्ययन कर उसे स्मरण करने का प्रयास करे। देश और काल ध्यान को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय विद्यालय संगठन का सर्वदा प्रयास रहा है कि प्रतिबद्ध शैक्षिक एवं गैर- शैक्षिक कर्मचारियों का ऐसा दल तैयार करे जो तकनीकी एवं बौद्धिक स्तर पर वर्तमान की चुनौतियों का सामना कर सके एवं समाज की जरूरतों के अनुसार योगदान दे सके। का मापांक तैयार करने दायित्व मिला है। एतदर्थ हम संगठन के आभारी हैं।
पाठ्यांश ------अपठित अवबोध
अपठित अवबोध एक ऐसा प्रश्न है जो छात्रों के पठन, लेखन एवं बोध ,तीनों क्षमताओं के मूल्यांकन करने में समर्थ है। इसके द्वारा संक्षिप्त समय में ही छात्रों की बौद्धिक क्षमता का मूल्यांकन हो जाता है। भाषा शिक्षण आज चुनौतीपूर्ण है । भाषागत क्षमता का मूल्यांकन जितना अधिक अपठित अवबोध के द्वारा संभव है उतना किसी अन्य क्षेत्र के द्वारा नहीं। छात्रों को प्रदत्त यह अध्ययन सामग्री विविध पक्षों से मनन करने के लिए प्रेरित करता है । यह अंश सामाजिक, ऐतिहासिक ,साहित्यिक अथवा समकालिक हो सकता है। उसका सर्वप्रथम लाभ यह होता है कि यह परीक्षा में छात्रों को एकाग्रता प्रदान में सक्षम है।
उद्देश्य :
वैसे तो “अपठित अवबोध “ गद्यात्मक अथवा पद्यात्मक हो सकता है ,किन्तु उसका मुख्य उद्देश होता है-छात्रों में पठन, लेखन एवं मनन क्षमता के साथ-साथ विविध पहलूओं पर संवेदनशील बनाना तथा सामाजिकता की भावना का विकास करना । प्रदत्त जानकारियों को अपनी भाषा में व्यक्त करने की क्षमता का विकास करना। नवप्रवर्तनों से अवगत कराना। परीक्षा मात्र पर उनका ध्यान केन्द्रित कराना । इससे उनमें जागरूकता पैदा होती है । वह अपठित अंश को पढ़कर कल्पनाशीलता विकसित करता है। उसके अंदर की नकारात्मकता गायब हो जाती हैतथा सकारात्मक सोच का आविर्भाव होता है। वह नए शब्द के प्रयोग के लिए प्रवृत्त होता है तथा उसके शाब्दिक भंडार का विकास होता है। वह शिक्षक एवं समाज के बीच में अपने आप को समन्वयक की भूमिका में पाता है। इससे स्वाध्याय की आदत का विकास होता है तथा रचनात्मक सोच विकसित होती है। वह क्रियात्मक शोध के लिए अनुप्रेरित होता है। साथ ही इससे सामुदायिकता की भावना का विकास भी होता है।
शिक्षण सामग्री:
1. कक्षानुसार एवं विषयानुसार अपठित अंश गद्य अथवा पद्य के दिए जाएँगे । इन अंशों को यदि लिखित रूप में देना अपेक्षित हों तो छात्रों की संख्या के अनुसार उतनी छाया प्रति दी जाएगी। इसपर आधारित प्रश्नों का संग्रह भी दिया जाएगा।
2. पावर-पॉइंट प्रस्तुति का सहारा भी लिया जा सकता है। एतदर्थ संगणक अथवा प्रोजेक्टर के माध्यम बड़े अक्षरों में दिखया जाए एवं छात्रों को ध्यान पूर्वक पढने के लिए कहा जाए। तत्पश्चात पावर पॉइंट में दिए गए प्रश्नों को भी पढने के लिए कहा जाए।
3. विडियो द्वारा इसका शिक्षण संभव नहीं है क्योंकि पठन ,मनन एवं लेखन इसका मुख्य उद्देश्य होता है।
4. अपठित अंश का श्यामपट्ट पर लेखन भी संभव नहीं क्योंकि इससे समय का अतिक्रम हो सकता है।
5. अंशों में आए स्थानों एवं व्यक्तित्वों के चित्र ।
6. चाक,डस्टर इत्यादि ।
शिक्षण नीति:
सर्वप्रथम शिक्षक सम्पूर्ण अंश का वाचन करेगा ,तदनंतर छात्रों से उसका वाचन करने के लिए कहेगा । सही तरीके से समझने के लिए उसका वाचन मौन होना चाहिए। इसके पश्चात् प्रमुख बिन्दुओं पर परिचर्चा की जाएगी
अंश में आए हुए व्यक्तित्वों या स्थानों के चित्र दिखाए जा सकते हैं।
कालांशावधि में शिक्षनार्थ छात्रों को समूह में बाँट देना आसान होगा । वे सुविधानुसार प्रश्नों को बाँट लेंगे तथा शिक्षकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर एकैकशः देंगे।
समूहों में कार्य विभाजन करके गृहकार्य देकर अगले दिन भी अपेक्षित उत्तर लिए जा सकते हैं।
शिक्षक सभी उत्तरों को सुनने के बाद सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर देगा तथा इसका विस्तार पूर्वक व्याख्या करेगा ।
शिक्षक ध्यान रखेगा कि सभी छात्र इस कार्य में हिस्सा ले।
शिक्षक प्रदत्त अंश का विस्तार पूर्वक चर्चा करके छात्रों को समझाएगा।
यदि प्रदत्त कवितांश किसी प्रसिद्ध कवि की है तो शिक्षक उसके बारे में विस्तार से बताएगा ।
गद्यांश अथवा पद्यांश के व्याकरणिक बिन्दुओं को भी बताएगा तथा इसके शीर्षक चयन की प्रक्रिया भी बताएगा।
पठन के समय अशुद्धियों का संशोधन किया जाएगा।
शिक्षण व्यवस्था :
शिक्षण के समय प्रयोग में लाए जाने वाली सभी सामग्रियों की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि वे सुगम्य एवं सुलभ्य हो। श्यामपट्ट/श्वेतपट को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाए कि लेखन के लिए सुगम हो। एल.सी.डी.,प्रोजेक्टर आदि को शिक्षण प्रक्रिया से पूर्व जाँच लेना चाहिए। साथ ही शिक्षण स्थल पर मांग के अनुसार प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए। कंप्यूटर आज की शिक्षण प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण अंग होता है। उसके लिए एक सुनिश्चित स्थान होना चाहिए,जहाँ से उसका समुचित सञ्चालन संभव हो। छात्रों की उपवेशन व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि सभी छात्र सम्पूर्ण शिक्षण प्रक्रिया में सुविधापूर्वक भाग ले सके।
आवश्यक निर्देश:
छात्रों को प्रदत्त गद्यांश अथवा पद्यांश को पढने के बाद अपनी भाषा में आत्मबोध पर आधारित उत्तर लिखने के लिए कहा जाएगा। उन्हें हिदायत दी जाएगी कि गद्यांश अथवा पद्यांश का अक्षरशः लेखन न करे। अक्षरशः उत्तर लेखन से सटीक उत्तर नहीं मिलता तथा समय भी ज्यादा लगता है। कुछ शब्दों को लिखने में कोई आपत्ति नहीं है किन्तु पूर्ण वाक्य लेखन अंकों को कम कर सकता है।
मंद गति छात्रों को शिक्षण:
जिन छात्रों की अवबोध क्षमता अपेक्षाकृत कम है,उनके लिए उपचारात्मक नीति अपनाई जाएगी। उन्हें सम्बद्ध विषय पर अन्य साधनों जैसे प्रोजेक्टर आदि का प्रयोग करके उनकी रूचि बढाई जाएगी । साथ ही प्रतिभाशाली छात्रों को उनकी सहायता के लिए प्रेरित किया जाएगा। यह ध्यान दिया जाएगा कि प्रतिभाशाली छात्र उनके उत्तर न लिखे। वे अपना उत्तर खुद लिखें। यह प्रक्रिया तबतक दुहराई जाएगी जबतक उन छात्रों को अपेक्षित अवबोध न हो जाए। उन्हें अलग से कक्षा लेकर भी एतदर्थ शिक्षण दिया जा सकता है।
स्वाध्यायार्थ प्रेरण :
छात्रों को कहा जाएगा कि वे हिन्दी समाचारपत्रों एवं पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करते रहें। आजकल देखा जाता है कि छात्र श्रव्य एवं दृश्य माध्यम में अपना ज्यादा समय व्यतीत करते हैं। स्वाध्याय की आदत समाप्तप्राय होती जा रही है। अपठित अवबोध के प्रश्नों का हल वह छात्र ज्यादा अच्छा कर सकता हैजो स्वाध्याय को ज्यादा महत्त्व देता है । दैनन्दिनजीवन में स्वाध्यायरत रहने से आत्मचिंतन शक्ति का विकास होता है।
अपठित गद्यांश –
अभ्यास के लिए 10-15 प्रश्नों को पूछा जाएगा तथा उनके अपेक्षित उत्तर छात्रों से लिए जाएँगे । तदनंतर आदर्श उत्तर शिक्षक द्वारा दिया जाएगा । अन्य गद्यांशों और पद्यांशों के अभ्यास कराए जाएँगे। छात्रों के उत्तरों पर पर्याप्त परिचर्चा कराई जाए। गद्यांशों/पद्यांशों में व्याकरणिक शब्दों के उपसर्ग,प्रत्यय,समास,समानार्थी, विपरीतार्थक आदि से सम्बद्ध प्रश्न होना अनिवार्य है। तीन प्रश्न एक अंक के तथा अन्य प्रश्न दो-दोअंक के दिए जा सकते हैं। व्याकरणिक प्रश्नों के तथा शीर्षक के लिए एक अंक निर्धारित किए जा सकते हैं।
मूल्यांकन :
कम-से-कम 10 गद्यांशों एवं पद्यांशों के कक्षाकार्य एवं गृहकार्य के रूप में अभ्यास कराए जाने के बाद कक्षा में अपठितांश पर परीक्षा ली जाए तथा इसका मूल्यांकन अंक प्रदान के साथ किया जाए। यह प्रक्रिया सुविधानुसार कभी भी परिचालित की जा सकती है। इससे छात्रों की मनन-शक्ति के मूल्यांकन के साथ-साथ लेखन-क्षमता का मूल्यांकन भी होता है।
काठिन्य-निवारण :
अपठितांश में निहित कठिन शब्दों के अर्थ बताए जाएँ तथा उक्त अपठितांश जिस विषय पर आधारित होगा उसके बारे में बताया जाए। अपठित पद्यांश में काठिन्य-निवारण का अवसर ज्यादा आता है। इसके शब्दों एवं भावों को विस्तृत रूप से बताया जाए।
पुनरावृत्ति-प्रश्न:
सम्बद्ध गद्यांश/पद्यांश के उन पहलूओं पर आधारित प्रश्न देकर पुनरावृत्ति-कार्य किए जाएँगे जिनपर प्रश्न नहीं पूछे गए हों। पुनः छात्रों से इनके अपेक्षित उत्तर लिए जाएँगे तथा आदर्श उत्तर बताए जाएँगे।
गृहकार्य :
आदर्श अध्यापन के बाद छात्रों को विविध क्षेत्रो सम्बद्ध अपठित अवबोध और प्रश्नावली उपलब्ध कराकर स्वयं ही स्वाध्याय एवं मनन द्वारा उपयुक्त उत्तर लिखकर लाने के लिए कहा जाए। कक्षा में छात्रों के उत्तर सुनने के बाद उसकी उपयुक्तता की जाँच की जाएगी एवं सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर बताया जाएगा।
पारंपरिक शिक्षा तीव्रगति से वैज्ञानिकता की ओर बढ़ रही है। परिवर्तनशील जगत में शैक्षिक परिवेश भी बदलता जा रहा है। इस क्षेत्र में नित्य नूतन प्रयोग किए जा रहे हैं जिसका समावेश वर्तमान शैक्षिक परिवेश में होना स्वाभाविक ही है। यदि आज की मांग की उपेक्षा करके पारंपरिक शिक्षा पर केवल बल दिया जाए तो आज का बालक शिक्षा –विमुख हो जाएगा। बालक उस चीज को ज्यादा सीखने का प्रयास करता है और जल्दी सीख लेता है जो उसके रूचि के अनुकूल हो तथा वैज्ञानिकता पर आधारित हो।यदि किसी बालक को पारंपरिक शिक्षा पद्धति के नीरस मार्ग पर ले जाने का बलात प्रयास किया जाए तो शिक्षण का उद्देश्य असफल होना अवश्यम्भावी है।
वर्तमान समय में शिक्षा–ज्ञान का साधनमात्र न होकर व्यवसाय हो गयी है। लोग अपनी व्यावसायिकता के क्षेत्र में उच्चतर प्रतिमान स्थापित करने के लिए स्वयं को गतिमान एवं परिवर्तनशील बनाए रखना चाहते हैं। आज के तकनीकी युग में छात्रों के पास इतना समय नहीं कि वे रामायण, महाभारत आदि अतिपृथुल ग्रंथों का अध्ययन कर उसे स्मरण करने का प्रयास करे। देश और काल ध्यान को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय विद्यालय संगठन का सर्वदा प्रयास रहा है कि प्रतिबद्ध शैक्षिक एवं गैर- शैक्षिक कर्मचारियों का ऐसा दल तैयार करे जो तकनीकी एवं बौद्धिक स्तर पर वर्तमान की चुनौतियों का सामना कर सके एवं समाज की जरूरतों के अनुसार योगदान दे सके। का मापांक तैयार करने दायित्व मिला है। एतदर्थ हम संगठन के आभारी हैं।
पाठ्यांश ------अपठित अवबोध
अपठित अवबोध एक ऐसा प्रश्न है जो छात्रों के पठन, लेखन एवं बोध ,तीनों क्षमताओं के मूल्यांकन करने में समर्थ है। इसके द्वारा संक्षिप्त समय में ही छात्रों की बौद्धिक क्षमता का मूल्यांकन हो जाता है। भाषा शिक्षण आज चुनौतीपूर्ण है । भाषागत क्षमता का मूल्यांकन जितना अधिक अपठित अवबोध के द्वारा संभव है उतना किसी अन्य क्षेत्र के द्वारा नहीं। छात्रों को प्रदत्त यह अध्ययन सामग्री विविध पक्षों से मनन करने के लिए प्रेरित करता है । यह अंश सामाजिक, ऐतिहासिक ,साहित्यिक अथवा समकालिक हो सकता है। उसका सर्वप्रथम लाभ यह होता है कि यह परीक्षा में छात्रों को एकाग्रता प्रदान में सक्षम है।
उद्देश्य :
वैसे तो “अपठित अवबोध “ गद्यात्मक अथवा पद्यात्मक हो सकता है ,किन्तु उसका मुख्य उद्देश होता है-छात्रों में पठन, लेखन एवं मनन क्षमता के साथ-साथ विविध पहलूओं पर संवेदनशील बनाना तथा सामाजिकता की भावना का विकास करना । प्रदत्त जानकारियों को अपनी भाषा में व्यक्त करने की क्षमता का विकास करना। नवप्रवर्तनों से अवगत कराना। परीक्षा मात्र पर उनका ध्यान केन्द्रित कराना । इससे उनमें जागरूकता पैदा होती है । वह अपठित अंश को पढ़कर कल्पनाशीलता विकसित करता है। उसके अंदर की नकारात्मकता गायब हो जाती हैतथा सकारात्मक सोच का आविर्भाव होता है। वह नए शब्द के प्रयोग के लिए प्रवृत्त होता है तथा उसके शाब्दिक भंडार का विकास होता है। वह शिक्षक एवं समाज के बीच में अपने आप को समन्वयक की भूमिका में पाता है। इससे स्वाध्याय की आदत का विकास होता है तथा रचनात्मक सोच विकसित होती है। वह क्रियात्मक शोध के लिए अनुप्रेरित होता है। साथ ही इससे सामुदायिकता की भावना का विकास भी होता है।
शिक्षण सामग्री:
1. कक्षानुसार एवं विषयानुसार अपठित अंश गद्य अथवा पद्य के दिए जाएँगे । इन अंशों को यदि लिखित रूप में देना अपेक्षित हों तो छात्रों की संख्या के अनुसार उतनी छाया प्रति दी जाएगी। इसपर आधारित प्रश्नों का संग्रह भी दिया जाएगा।
2. पावर-पॉइंट प्रस्तुति का सहारा भी लिया जा सकता है। एतदर्थ संगणक अथवा प्रोजेक्टर के माध्यम बड़े अक्षरों में दिखया जाए एवं छात्रों को ध्यान पूर्वक पढने के लिए कहा जाए। तत्पश्चात पावर पॉइंट में दिए गए प्रश्नों को भी पढने के लिए कहा जाए।
3. विडियो द्वारा इसका शिक्षण संभव नहीं है क्योंकि पठन ,मनन एवं लेखन इसका मुख्य उद्देश्य होता है।
4. अपठित अंश का श्यामपट्ट पर लेखन भी संभव नहीं क्योंकि इससे समय का अतिक्रम हो सकता है।
5. अंशों में आए स्थानों एवं व्यक्तित्वों के चित्र ।
6. चाक,डस्टर इत्यादि ।
शिक्षण नीति:
सर्वप्रथम शिक्षक सम्पूर्ण अंश का वाचन करेगा ,तदनंतर छात्रों से उसका वाचन करने के लिए कहेगा । सही तरीके से समझने के लिए उसका वाचन मौन होना चाहिए। इसके पश्चात् प्रमुख बिन्दुओं पर परिचर्चा की जाएगी
अंश में आए हुए व्यक्तित्वों या स्थानों के चित्र दिखाए जा सकते हैं।
कालांशावधि में शिक्षनार्थ छात्रों को समूह में बाँट देना आसान होगा । वे सुविधानुसार प्रश्नों को बाँट लेंगे तथा शिक्षकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर एकैकशः देंगे।
समूहों में कार्य विभाजन करके गृहकार्य देकर अगले दिन भी अपेक्षित उत्तर लिए जा सकते हैं।
शिक्षक सभी उत्तरों को सुनने के बाद सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर देगा तथा इसका विस्तार पूर्वक व्याख्या करेगा ।
शिक्षक ध्यान रखेगा कि सभी छात्र इस कार्य में हिस्सा ले।
शिक्षक प्रदत्त अंश का विस्तार पूर्वक चर्चा करके छात्रों को समझाएगा।
यदि प्रदत्त कवितांश किसी प्रसिद्ध कवि की है तो शिक्षक उसके बारे में विस्तार से बताएगा ।
गद्यांश अथवा पद्यांश के व्याकरणिक बिन्दुओं को भी बताएगा तथा इसके शीर्षक चयन की प्रक्रिया भी बताएगा।
पठन के समय अशुद्धियों का संशोधन किया जाएगा।
शिक्षण व्यवस्था :
शिक्षण के समय प्रयोग में लाए जाने वाली सभी सामग्रियों की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि वे सुगम्य एवं सुलभ्य हो। श्यामपट्ट/श्वेतपट को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाए कि लेखन के लिए सुगम हो। एल.सी.डी.,प्रोजेक्टर आदि को शिक्षण प्रक्रिया से पूर्व जाँच लेना चाहिए। साथ ही शिक्षण स्थल पर मांग के अनुसार प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए। कंप्यूटर आज की शिक्षण प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण अंग होता है। उसके लिए एक सुनिश्चित स्थान होना चाहिए,जहाँ से उसका समुचित सञ्चालन संभव हो। छात्रों की उपवेशन व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि सभी छात्र सम्पूर्ण शिक्षण प्रक्रिया में सुविधापूर्वक भाग ले सके।
आवश्यक निर्देश:
छात्रों को प्रदत्त गद्यांश अथवा पद्यांश को पढने के बाद अपनी भाषा में आत्मबोध पर आधारित उत्तर लिखने के लिए कहा जाएगा। उन्हें हिदायत दी जाएगी कि गद्यांश अथवा पद्यांश का अक्षरशः लेखन न करे। अक्षरशः उत्तर लेखन से सटीक उत्तर नहीं मिलता तथा समय भी ज्यादा लगता है। कुछ शब्दों को लिखने में कोई आपत्ति नहीं है किन्तु पूर्ण वाक्य लेखन अंकों को कम कर सकता है।
मंद गति छात्रों को शिक्षण:
जिन छात्रों की अवबोध क्षमता अपेक्षाकृत कम है,उनके लिए उपचारात्मक नीति अपनाई जाएगी। उन्हें सम्बद्ध विषय पर अन्य साधनों जैसे प्रोजेक्टर आदि का प्रयोग करके उनकी रूचि बढाई जाएगी । साथ ही प्रतिभाशाली छात्रों को उनकी सहायता के लिए प्रेरित किया जाएगा। यह ध्यान दिया जाएगा कि प्रतिभाशाली छात्र उनके उत्तर न लिखे। वे अपना उत्तर खुद लिखें। यह प्रक्रिया तबतक दुहराई जाएगी जबतक उन छात्रों को अपेक्षित अवबोध न हो जाए। उन्हें अलग से कक्षा लेकर भी एतदर्थ शिक्षण दिया जा सकता है।
स्वाध्यायार्थ प्रेरण :
छात्रों को कहा जाएगा कि वे हिन्दी समाचारपत्रों एवं पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करते रहें। आजकल देखा जाता है कि छात्र श्रव्य एवं दृश्य माध्यम में अपना ज्यादा समय व्यतीत करते हैं। स्वाध्याय की आदत समाप्तप्राय होती जा रही है। अपठित अवबोध के प्रश्नों का हल वह छात्र ज्यादा अच्छा कर सकता हैजो स्वाध्याय को ज्यादा महत्त्व देता है । दैनन्दिनजीवन में स्वाध्यायरत रहने से आत्मचिंतन शक्ति का विकास होता है।
अपठित गद्यांश –
अभ्यास के लिए 10-15 प्रश्नों को पूछा जाएगा तथा उनके अपेक्षित उत्तर छात्रों से लिए जाएँगे । तदनंतर आदर्श उत्तर शिक्षक द्वारा दिया जाएगा । अन्य गद्यांशों और पद्यांशों के अभ्यास कराए जाएँगे। छात्रों के उत्तरों पर पर्याप्त परिचर्चा कराई जाए। गद्यांशों/पद्यांशों में व्याकरणिक शब्दों के उपसर्ग,प्रत्यय,समास,समानार्थी, विपरीतार्थक आदि से सम्बद्ध प्रश्न होना अनिवार्य है। तीन प्रश्न एक अंक के तथा अन्य प्रश्न दो-दोअंक के दिए जा सकते हैं। व्याकरणिक प्रश्नों के तथा शीर्षक के लिए एक अंक निर्धारित किए जा सकते हैं।
मूल्यांकन :
कम-से-कम 10 गद्यांशों एवं पद्यांशों के कक्षाकार्य एवं गृहकार्य के रूप में अभ्यास कराए जाने के बाद कक्षा में अपठितांश पर परीक्षा ली जाए तथा इसका मूल्यांकन अंक प्रदान के साथ किया जाए। यह प्रक्रिया सुविधानुसार कभी भी परिचालित की जा सकती है। इससे छात्रों की मनन-शक्ति के मूल्यांकन के साथ-साथ लेखन-क्षमता का मूल्यांकन भी होता है।
काठिन्य-निवारण :
अपठितांश में निहित कठिन शब्दों के अर्थ बताए जाएँ तथा उक्त अपठितांश जिस विषय पर आधारित होगा उसके बारे में बताया जाए। अपठित पद्यांश में काठिन्य-निवारण का अवसर ज्यादा आता है। इसके शब्दों एवं भावों को विस्तृत रूप से बताया जाए।
पुनरावृत्ति-प्रश्न:
सम्बद्ध गद्यांश/पद्यांश के उन पहलूओं पर आधारित प्रश्न देकर पुनरावृत्ति-कार्य किए जाएँगे जिनपर प्रश्न नहीं पूछे गए हों। पुनः छात्रों से इनके अपेक्षित उत्तर लिए जाएँगे तथा आदर्श उत्तर बताए जाएँगे।
गृहकार्य :
आदर्श अध्यापन के बाद छात्रों को विविध क्षेत्रो सम्बद्ध अपठित अवबोध और प्रश्नावली उपलब्ध कराकर स्वयं ही स्वाध्याय एवं मनन द्वारा उपयुक्त उत्तर लिखकर लाने के लिए कहा जाए। कक्षा में छात्रों के उत्तर सुनने के बाद उसकी उपयुक्तता की जाँच की जाएगी एवं सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर बताया जाएगा।
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