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Tuesday 27 February 2024

सेवा-निवृत्ति । Retirement । प्रशस्ति-पत्र । श्री सेंटू रॉय । पीएम श्री केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक - 2, ईशापुर । K V NO. 2 , Ishapore

 



पीएम श्री केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक२ ईशापुर

मुश्किलों में साथ आपका याद रहेगा

गिरते हुए को आपका हाथ याद रहेगा

आपकी जगह चाहे जो भी आए

आपके साथ हर जज्बात याद रहेगा

श्री सेंटू रॉय जी  ने 1 अगस्त 1990 को केंद्रीय विद्यालय शापुर में कार्यालय सहायक के रूप में  पद भार ग्रहण किया I  विभिन्न केन्द्रीय विद्यालयों से स्थानांतरित होते हुए और सफलता की सीढ़ियाँ पार करते हुए, आप पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय क्रमांक 2  शापुर से दिनांक 29 फरवरी 2024 को कार्यालय सहायक के पद से सेवानिवृत हो रहे हैं Iआपने अपने 33 वर्ष 6  माह और 29 दिन के कार्यकाल में विद्यालयों को जो सेवाएं  प्रदान की हैं,उन्हें सदा स्मरण किया जाएगाI  विद्यालय के प्रत्येक कार्य में आपका योगदान अतुलनीय है  आपने अपने दायित्व का निर्वहन पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ किया है।

ईश्वर की  कृपा  से आपको अत्यंत सुशील अर्धांगिनी के साथ दो आज्ञाकारी बच्चे प्राप्त हुए हैं । आपका सुपुत्र एक प्रसिद्ध कंपनी में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत है  और आपकी सुपुत्री अभी अध्ययनरत हैI कार्यालयीन कर्मचारियों ,शिक्षकों व अधिकारियों के प्रति आपका मृदुल और सहयोगी स्वभाव सदा याद किया जाएगा I  विद्यालय परिवार ईश्वर से आपके  स्वस्थ, दीर्घायु और सुखद जीवन की मंगल कामना करते हैं।

समस्त विद्यालय परिवार

पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय क्रमांक 2 ईशापुर

Monday 26 February 2024

CDP courses 50 HOURS। CBSE। NCERT। Project Inclusion App । CIET। youtube CBSE




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Thursday 22 February 2024

Part - 13 Vacancy 2024-25 संविदा-शिक्षक साक्षात्कार , files - 20+ contractual teacher interviews KENDRIYA VIDYALAYA

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ढाई घंटे की नौकरी (कहानी) - घनश्याम शर्मा dhai ghante ki naukari (story) Ghanshyam Sharma







ढाई घंटे की नौकरी 

       

       वह एक कम पढ़े-लिखे, गरीब पिता की संतान था। 12वीं अच्छे अंको से पास कर ली थी। गर्मियों की छुट्टियां चल रही थी। उसने सोचा कि चलो कहीं थोड़ा बहुत काम धंधा करके कमा लिया जाए। पिताजी व घर की थोड़ी-सी सहायता हो जाएगी और कुछ सीखने को भी मिलेगा।

पर क्या नौकरी मिलना इतना आसान है आज?


उसके पिताजी ने काफी जगह पता किया, तब कहीं जाकर एक छोटी-सी नौकरी की बात बनी। उसे एक दुकान में काम करना था। दुकान में किराना के सामान के अतिरिक्त, दवाइयां भी थी। साथ ही मालिक ने कोल्ड ड्रिंक्स की एजेंसी भी ले रखी थी। एक बड़ी-सी दुकान में छोटी-छोटी दो-तीन दुकानें थी।

बड़ी ही सिफारिश से मिली इस नौकरी के लिए आरित को सुबह आठ बजे वाली बस से प्रतिदिन पंद्रह किलोमीटर जाना और शाम को आठ बजे वाली बस से वापस आना था।


पहला दिन, पहला दिन क्या.. पहला घंटा.. पहला घंटा क्या.. पहले ही मिनट में बताया गया कि भई दुकान में रखे डिब्बों पर कपड़ा मार दो। ना कोई परिचय, ना कोई बात, ना दुकान के कायदे-कानून ही समझाए गए और ना ही काम के घंटे व वेतन निर्धारित किया गया।


आरित कपड़ा मारने लगा। अच्छे तरीके से डिब्बों की सफाई करने लगा। दुकान में अन्य तीन लड़के और भी काम करते थे और उन्होंने बताया कि हमने पहले ही कपड़ा मार दिया है। फिर भी मालिक ने कहा तो नौकर को काम तो करना ही पड़ेगा।


आरित अपने काम में होशियार था। मेहनती था। ऊपर से पहली नौकरी का जोश। पांच ही मिनट में एकदम चमकाकर बैठ गया।


मालिक ने देखा।

मालिक ने तुरंत नया काम बताया। कहा, "वह हथौड़ा लो और गुड़ की बड़ी डलियों को फोड़कर छोटा कर दो।" नयी नौकरी। जोश। कुछ ही मिनट। काम खत्म।

मालिक अपने नौकर को बैठे हुए कैसे देखे?


कोई भी मालिक अपने नौकर को बैठे हुए पैसे कैसे दे दे? नौकर को बैठे हुए देखकर मालिक ने अगला काम बताया, "काम खत्म हो गया तो बैठे क्यों हो? जाओ गोदाम में कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलें रखवा आओ।" आरित गया। नयी नौकरी। जोश। कुछ मिनट। काम खत्म। आया। बैठ गया।

मालिक परेशान।


यद्यपि दुकान के अन्य लड़कों ने बताया कि यहाँ हर काम तब तक करते रहो, जब तक मालिक ही न बुला ले। काम खत्म होने से मतलब नहीं, काम करते हुए दिखना चाहिए। पर आरित को अपना काम ईमानदारी से करने से मतलब था। उसने उन लड़कों से कहा, "ईमानदारी और मेहनत से अपना काम करना चाहिए।"


मालिक आए और उन्होंने कहा," काफी दिनों से शोकेस के ऊपर पेंट चिपका हुआ है। इसे साफ कर।"


आरित ने तुरंत सफाई शुरू कर दी। पर कपड़े व पानी से साफ नहीं हुआ तो मालिक ने एक नौकर को केरोसिन तेल लाने भेजा। केरोसिन तेल आने पर आरित साफ करने लगा लेकिन मालिक ने कपड़ा लिया और खुद ही साफ करने लगा। आरित हैरान। पर बाद में पता चला कि मालिक ने पूरा कपड़ा तेल में तर कर दिया ताकि लड़का साफ करते-करते तेल में सन जाए और हुआ भी वैसा ही। परंतु नई नौकरी। जोश। काम में फुर्ती और काम खत्म।

हाथ धोकर बैठ गया आरित।


मालिक अपने उन दो-तीन दुकानों में से एक में गया, नया काम देखने इतनी देर में एक औरत ने एक बिस्कुट का पैकेट तथा साबुन मांगा... आरित ने दे दिए और पैसे गल्ले में रख दिए। मालिक आया। पूछा। पता चला। गुस्सा हुआ। कहा, "खबरदार जो आगे से किसी को भी सामान दिया और गल्ले को हाथ लगाया तो।"

आरित बेचारा अचंभित और उदास भी।

मालिक गुस्सा।


तभी एक और ग्राहक आया। बोला, "मुझे दो पेप्सी के कार्टन चाहिए।"

मालिक ने पैसे लिए और कहा, "आप जाइए मैं अभी भिजवाता हूँ (आरित की तरफ इशारा करते हुए) इसके हाथ।"

ग्राहक ने कहा, "यहीं पास ही है। मैं साइकिल लाया हूँ। मैं ही ले जाता हूँ।"


मालिक ने आरित को धक्का-सा दिया कि जा रखवाकर आ। परंतु वह ग्राहक अपनी साइकिल पर रखकर चल पड़ा और कहा दो ही तो हैं। ले जाऊँगा।

तभी एक अन्य दुकानदार का फोन आया। उसने चार कार्टन कोल्ड ड्रिंक्स के मंगवाए। मालिक ने आरित को भेजा साइकिल पर कार्टन रखकर। पहले कभी साइकिल पर या वैसे आरित कार्टन लेकर नहीं गया था। बड़ा परेशान हुआ। पर पहुंचा दिया। मालिक ने फोन करके अगले दुकानदार को इसी लड़के के हाथों तीन खाली कार्टन लाने को भी कहा। आरित वापस कार्टन लेकर आया। आकर बैठ गया। मालिक फिर परेशान।


मालिक ने उसे अपनी दवाइयों की दुकान में कुछ सामान ऊपर चढ़ाने के लिए कहा। लड़का जोश में। पहली नौकरी। पांच मिनट। काम खत्म। आरित फिर आकर बैठ गया। मालिक फिर परेशान।


मालिक ने नया काम शायद पहले से ही सोच रखा था। शोकेस के नीचे की सफाई। पर यह काम भी खत्म। तराजू की फिर से सफाई। डिब्बों को इधर से उधर, उधर से इधर, बोरों को यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ, एक बार फिर से फर्श पर झाड़ू लगाना, कपड़े से दीवार की सफाई आदि के फालतू के काम करवाकर जब मालिक के पास कोई ढंग का काम नहीं बचा तो उसने एक बेतुका काम लड़के से करवाया।


और उस काम का अंजाम क्या हुआ ?


मालिक जिन कागजों पर अपने हिसाब करता था (छोटे जोड़)। उन कागजों को छोटे-छोटे टुकड़ों में फाड़ा। जिस तरह खेत में यूरिया खाद डालते हैं, वैसे ही नीचे दुकान के सामने सड़क पर बिखरा दिए (वो सब देख रहा था)। उसको बुलाया और कहा, "झाड़ू ले। इनको साफ कर और कूड़ेदान में फेंक दे।"


आपके संस्कार, आपके शिष्टाचार, आपकी विनम्रता एक तरफ है, किंतु यदि ये एक सीमा से अधिक हो जाते हैं तो वर्तमान दुनिया इन्हें कायरता की श्रेणी में गिनती है और आपको एक कमज़ोर व्यक्ति सिद्ध कर देती है। ऐसी परिस्थितियों में हमें वही करना चाहिए जो भगवान राम ने समुद्र से रास्ता मांगते समय किया और भगवान श्रीकृष्ण ने कौरवों की सभा में किया।


उसने सेठजी से पूछा, "साहब यह तो आप मुझे दे देते। मैं पहले ही कूड़ेदान में फेंक देता। आपने आगे बिखरा दिए। अभी इनको झाड़ू लगानी होगी। अपना समय बच सकता था।" सेठजी ने कहा, "जा, जितना बताया, उतना कर।"

आरित को अजीब-सा लगा।

उसने एकाएक पूछ लिया, "साहब मेरी तनख्वाह कितनी होगी?"

सेठजी ने बेरुखी से कहा, "कैसी तनख्वाह?"

"साहब काम के बदले में कुछ तो देंगे। महीने में।''

"तेरे बाप से बात हो गई। उसी को देंगे।"

"काम तो मैं कर रहा हूँ। पता तो चले इतने काम की महीनेभर में तनख्वाह क्या मिलती है?"


"कुछ नहीं मिलेगी।"

"तो मुझे काम भी नहीं करना।"

मालिक ने ज़ोर से आवाज़ लगाकर अपने पिता से कहा, जो पास ही अंदर दुकान में थे कि ये लड़का कुछ बात करना चाहता है।

'अच्छा तो यहाँ एक और बड़े सेठजी हैं।'

उन्होंने अंदर बुलाया। वहाँ जाकर आरित ने वही पूछा।


मालिक के पिता इस मामले में भी मालिक के पिता ही निकले। उनका जवाब मालिक से भी बुरा था। पहले तो कहा तनख्वाह नहीं मिलेगी। फिर कहा हम तो फ्री में काम करवाएंगे। जब आरित ने ज़ोर देकर पूछा तो मालिक ने कहा एक हज़ार रुपये महीना देंगे। वहां तक आने जाने का किराया ही चार सौ पचास रुपये हो जाता था और दोपहर का भोजन भी अगर मिलाया जाए तो सब कुछ वही खर्च हो जाएगा।

आरित ऐसे व्यवहार से बहुत दुखी हुआ।


उसे लगा कि अगर मैं योग्य हूँ तो मैं कुछ अच्छा कर लूँगा और अगर यहीं दबा-कुचला रह गया तो मैं कुछ भी नहीं कर पाऊंगा। ये लोग मुझे लगातार दबाते रहेंगे। अब उसके सामने दो रास्ते थे। एक तो चुपचाप सहन करते हुए वहीं पड़ा रहता और दूसरा कुछ अच्छा, कुछ अलग, कुछ विशेष, कुछ बड़ा करने की तरफ कदम बढ़ा देता।

हम सबके जीवन में ऐसा धर्मसंकट कम-से-कम एक बार ज़रूर आता है।


उसने दृढ़ता के साथ बड़े मालिक से कहा कि देखिए साहब या तो आप मुझे सही जवाब दीजिए या तो फिर मुझे जाना होगा।

बड़े मालिक ने कहा, "एक बार जाना था, वहाँ सौ बार जा। कोई रोकने वाला नहीं है। हम तो ₹1000 महीना देंगे और तेरे पापा से बात हो चुकी है। देंगे तो देंगे, नहीं देंगे तो नहीं देंगे..."


आरित ने गंभीरतापूर्वक कहा, "ठीक है, आप संतुष्टि के योग्य उत्तर नहीं दे रहे हैं। अब मैं यहाँ नहीं रुक सकता। जाता हूँ। आखिरी राम-राम।"


वह बस स्टॉप पर आ गया। उसके गांव जाने वाली बस 11:30 बजे आती थी। बस आ गई। बस में बैठा-बैठा सोच रहा था। हो गई नौकरी। हो गई घर वालों की सहायता। एक बेबस-लाचार बालक तिरस्कार सहकर, अपमानित होकर चुपचाप अपने घर की ओर जा रहा था।


पता नहीं ऐसे कितने ही आरितों का प्रतिदिन शोषण हो रहा है। हर रोज, हर पल, हर कदम अपमान-तिरस्कार हो रहा है। यही बातें सोचते वह अपने घर की तरफ बढ़ रहा था। सूरज अपनी रोशनी को आग में परिवर्तित करने को उतावला हो रहा था। यह थी उसकी पहली नौकरी, ढाई घंटे की नौकरी।


श्रवण कुमार कलयुग का (कहानी) - घनश्याम शर्मा shrawan kumar kalyug ka... कलयुगी कपूत या श्रवण कुमार story - GHANSHYAM SHARMA





श्रवण कुमार कलयुग का 


      उसकी मौत पर किसी को कोई दुख नहीं हुआ। वह कलयुगी बेटा था। अपने माता-पिता को कोसता, कटु वचन कहता और ये वचन मात्र कहने में कटु नहीं अपितु वास्तव में बहुत कड़वे होते थे। उसके वृद्ध माता-पिता बहुत बार उसकी इन बातों से आहत होकर रोते थे। अपने आप को धिक्कारते थे कि हमने क्यों ऐसी संतान को जन्म दिया? केवल माता-पिता ही नहीं गांव-गली, अड़ोस-पड़ोस के लोग, रिश्तेदार सभी तो उसे बुरा बताते। आज उसमें किसी को कोई अच्छाई नज़र नहीं आतीं, किन्तु क्या वो शुरू से ही ऐसा था?


विद्यालय-महाविद्यालय के दौरान वह पढ़ने में होशियार, सब का सम्मान करने वाला, अपने माता-पिता, भाई-बहन सबको प्यार करने वाला, अपने मित्रों का चहेता, सहपाठियों और गुरुजनों का प्रिय था। सभी उसके गुणों का गान करते थकते नहीं थे। सब कहते कि ऐसा गुणवान, ज्ञानी, नम्र, आज्ञाकारी, मेहनती लड़का आज के युग में होना असंभव-सी बात है। कहीं हमारी नज़र ना लग जाए। फिर इतना अच्छा लड़का कुछ ही वर्षों में इतना कैसे बदल गया? लगता है सच में शायद उसे नज़र लग गयी। आज वह तीस वर्ष का है। पर लोग उसे आज सपूत ना कहकर कलयुगी कपूत कहते है।


आज से एक वर्ष पहले उसे भयंकर सिर-दर्द, आंख-दर्द हुआ। अनेक डॉक्टरों से इलाज कराने पर भी ठीक नहीं हो रहा था। यहाँ सफलता ना पाकर एक दिन वह दिल्ली अपना उपचार करवाने गया और जब वापस आया तो चुपचाप रहने लगा।


दिल्ली से आने के बाद उसने घर वालों को बताया कि वह कुछ ही दिनों में एकदम ठीक हो जाएगा। घरवालों को उसने अपनी दवाइयां दिखाई, विश्वास दिलाया और निश्चिन्त कर दिया। परंतु वह स्वयं कुछ चिंतित-सा नज़र आता। पहले हँसता-खिलखिलाता हिमाश्र अब बुझा हुआ दीपक लगता था। कुछ दिन यूँ चुपचाप रहने के बाद हिमाश्र के स्वभाव-व्यवहार में एकदम से परिवर्तन दिखाई देने लगे।


अब वह अपने माता-पिता से सीधे मुंह बात नहीं करता। उनके कामों में सौ कमियाँ निकालता। कभी कहता उन्हें खाना खाना नहीं आता, खाना बनाना नहीं आता, ये नहीं आता, वो नहीं आता; मेरी तो इन लोगों ने ज़िंदगी ही खराब कर दी। ऐसे तरह-तरह के ताने सुनाता।


माता-पिता भी सोचते की संतान से ऐसी बातें सुनने से अच्छा धरती फट जाए और हम लोग उसमें समा जाए। हर बार वो अपने आप को संभाल लेते, समझा लेते। इस तरह कुछ ही दिनों में बूढ़े माँ-बाप को उसने परेशान कर दिया। उन बेचारे वृद्ध दंपती को तो कुछ भी समझ नहीं आता कि क्या करें? भगवान ऐसी संतान किसी को न दे। उनकी पांच संतानें थी। एक बड़ा लड़का, तीन लड़कियां सबकी शादी हो चुकी थी। अब वे हिमाश्र की शादी करके गंगा नहा लेना चाहते थे परंतु नियति में कुछ और ही बदा था।


मनुष्य हमेशा अपने सपने बुनता है। नयी उम्मीदें पालता है। लक्ष्य बनाता है और ऊपरवाला हमेशा मुस्कुरा रहा होता है क्योंकि वह मनुष्य के लिए कोई और योजना बनाए रखता है। बहुत बार वह भी जीत जाता है और काफी बार मनुष्य भी जीत जाता है और उसे अपने साहस से हरा ही देता है। हिमाश्र शायद इतना भाग्यशाली नहीं था। उसने स्वयं से हार मान ली थी।


हिमाश्र का यह बुरा बर्ताव ना केवल अपने माता-पिता के साथ बल्कि अपनी बहनों, अपने भाई-भाभी, अपने मित्रों, पड़ोसियों सबके साथ था। सबको उसने अपना दुश्मन बना लिया था, किन्तु वह सबसे अधिक परेशान अपने माता-पिता को ही करता था और विडंबना देखिए कि जिन माता-पिता को भगवान से भी बढ़कर चाहता था और हमेशा कहा करता था, "मैं श्रवण कुमार से भी बढ़कर अपने माता-पिता की सेवा करूंगा, पूजा करूंगा। भगवान राम भी लज्जा का अनुभव करेंगे मेरा सेवा-भाव, पितृ-भक्ति देखकर। अपने माता-पिता के पास कभी किसी चीज़ की कमी न रहने दूंगा" इतना सम्मान करने वाला हिमाश्र आज उन्हें दुत्कारता है।


इस तरह न जाने कितने ही दिनों तक लगातार ताने मारता रहा है हिमाश्र अपने निर्दोष माता-पिता को और माता-पिता भी चुपचाप सह लेते। भला हो भगवान तेरा, जो तूने माता-पिता बनाए, तू खुद अपने बच्चों को संभालने माता-पिता बन कर आ गया। दुनिया का कोई तराजू, कोई मशीन माप नहीं सकती माँ-बाप के प्यार को। इन धरती के सच्चे भगवानों में कहीं कोई खोट नहीं। इतने ताने सुनने के बाद भी उनके प्यार में कहीं रंचमात्र भी कमी नहीं आई।


अब हिमाश्र तीस साल का है। माफ कीजिए तीस साल का था, क्योंकि अभी कुछ दिनों पहले ही उसका देहाँत हो चुका है और कहते है कि मृत्यु सारे वैर-भाव भुला देती है। मरने के बाद हर कोई कहता है, लड़का तो अच्छा था, आदमी तो अच्छा था। गुण गाये जाते है। लेकिन यहाँ परिस्थितियां बदली नज़र आती थी। उसकी मौत पर कोई दुखी नहीं था। लोग बातें कर रहे थे।


 एक ने कहा, "अरे, अच्छा हुआ मर गया। ऐसे बेटे से तो बिना बेटे के होना अच्छा है"


दूसरा बोला, "हाँ भाई, बड़ा कसाई था। इसने तो सारे मोहल्ले का जीना हराम कर रखा था। किसी का कोई काम न करता। बोलते ही खाने दौड़ता था। भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। न्याय किया भगवान ने"


तीसरा, "अरे, मोहल्ले की तो कोई बात नहीं, यह तो उन माता-पिता का ही नहीं हुआ जिन्होंने इसे जन्म दिया था। ये तो कोई पूत नहीं, कपूत था, कलयुगी कपूत। "


सब ने एक साथ हाँ में हाँ मिलाई, "कलयुगी कपूत"


हिमाश्र का देहाँत हुए काफी दिन हो गए थे। वृद्ध दंपती कोई त्योहार नहीं मना पाते थे। जवान बेटे की असमय मृत्यु का दुख वही जान सकता है, जिसमें बीती हो। इस बार औपचारिकतावश उन्होंने दीपावली मनाने की सोची, क्योंकि ये उसका पसंदीदा त्योहार था। दिवाली के नजदीक बेटे की याद भी बहुत आती थी। छोटा था तो कैसे हर त्योहार पर खुश होता था और दिवाली पर तो जैसे खुशियाँ सातवें आसमान पर होती थी। उछलता-कूदता फिरता, खुद भी खुश रहता और जहाँ जाता सिर्फ ख़ुशियाँ बांटता फिरता। दुनिया चाहे बुरा समझे, चाहे अच्छा समझे, पर यदि संतान माता-पिता को जान से भी मार दे तो भी वे उसे प्यार करना नहीं छोड़ते। उसकी अच्छी बातें याद रखते है। वे अपने बेटे को दोष नहीं देते। बल्कि सोचते कि ज़रूर कुछ गड़बड़ है। हमारा हिमाश्र ऐसा नहीं था। अपनी आंखों से देखा, अपने कानों से सुना, किन्तु उनका दिल नहीं मानता कि हमारा बेटा ऐसा है, ऐसा हो सकता है।


इस साल दिवाली पर वृद्ध दंपती घर की सफाई कर रहे थे और वही उन दोनों की लाशें पड़ी हुई मिलीं।


जब मैं वहाँ पहुंचा, उनको देखा तो दोनों मर चुके थे। सारा मोहल्ला एकत्र हो गया। उनके हाथ में एक बैग और एक डायरी थी। यह वही बैग था जिसमें हिमाश्र की उन जांचों की रिपोर्ट थी, जो उसने दिल्ली करवायी थी। साथ ही एक डायरी जिसमें कुछ लिखा था। पृष्ठ खुला था, "मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था भगवान। कभी कोई भी ऐसा काम नहीं किया, जो अनैतिक हो, अनाचार हो। फिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों? सिर्फ एक वर्ष है मेरे पास। इस एक वर्ष में क्या-क्या करूं मैं? मैं चाहे कितने भी सुख पहुंचा लूं अपने माता पिता को, किन्तु जब मैं मरूंगा तो क्या ये जी पाएंगे? मेरे भाई-बहन, मित्र सभी मुझे कितना प्यार करते है। इन सबका रो-रोकर बुरा हाल हो जायेगा। इन सबको तो फिर भी कोई संभाल लेगा किन्तु मेरे इन वृद्ध माता-पिता का क्या होगा? तू ही मुझे कोई ऐसा रास्ता दिखा कि मेरी मृत्यु का किसी को कोई दुख ना हो बल्कि उत्सव मनाया जाए। मेरी मृत्यु मेरे माता पिता के लिए दुख, विषाद, उदासी न लेकर आए, बल्कि उन्हें कहीं-ना-कहीं मुक्ति, स्वतंत्रता का एहसास हो। ऐसा क्या करूं मैं? अब इतना तो बता भगवान कम-से-कम। (तभी उसकी नज़र एक पुस्तक पर गयी, जिसके आवरण-पृष्ठ पर लिखा था, 'अत्याचारी, कटुभाषी और क्रोधी से कोई प्रेम नहीं करता' ) और उसे रास्ता मिल गया।


बहुत बार मनुष्य सही चीजें करने के लिए गलत रास्ता अख्तियार कर लेता है। वह भूल जाता है कि हमेशा गलत रास्ते के पास एक अच्छा रास्ता भी अवश्य होता है। वह भूल जाता है कि बुराई से अच्छी भलाई हमेशा से रही है। गलत रास्ते उसका जीवन तबाह कर देते है और उसके बाद उसके परिवारजनों का, उसके मित्रों का जीवन भी खराब कर देते है। ऐसे वक्त में भगवान हमेशा सही रास्ता दिखाता है, लेकिन उसी जगह गलत रास्ता भी होता है। हमें सही रास्ता चुनना चाहिए क्योंकि गलत रास्ता सबको कष्ट ही देता है।


 "अब मैं भी ऐसा ही कुछ करूंगा और तू जानता है कि मरने से पहले सौ बार मरूंगा। मेरे प्राणों से भी प्यारे माता-पिता मैं आपको बहुत प्रेम करता हूँ। मेरे लिए ईश्वर से भी प्रिय आप हो। आपको कटु वचन कहते, आपको दुख देते समय मैं हज़ार मौत मरूंगा किन्तु फिर भी मैं यह करूँगा। अब मैं बनूंगा 'कलयुगी कपूत'। हिमाश्र की डायरी में लिखी ये आत्म-स्वीकृति पढ़ने के बाद मुझे भी उसमें राम और श्रवण के लक्षण साक्षात दिखने लगे।P

Wednesday 21 February 2024

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पार्ट - 7,  और 7 केंद्रीय विद्यालयों के विज्ञापन

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पार्ट - 5,  और 13 केंद्रीय विद्यालयों के विज्ञापन

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पार्ट - 4, 9 और केंद्रीय विद्यालयों के विज्ञापन


सभी सम्मानितों को नमस्कार

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पार्ट - 1, लगभग 20 केंद्रीय विद्यालयों के विज्ञापन ...

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पार्ट- 2, लगभग 35 केंद्रीय विद्यालयों के विज्ञापन...

https://ghanshyamsharmahindi.blogspot.com/2024/02/blog-post_12.html

पार्ट - 3, 8 और केंद्रीय विद्यालयों के विज्ञापन...


         अभी केंद्रीय विद्यालयों में ज़ोर-शोर से संविदा पर साक्षात्कार हो रहे हैं, यदि आपमें से किन्हीं सम्मानित को कहीं कोई विज्ञापन दिखे या आपके विद्यालय में साक्षात्कार हो रहे हों तो कृपया उसकी फ़ोटो या स्क्रीन शॉट लेकर कृपया समूह में डाल दीजिए या मुझे व्यक्तिगत 8278677890 नम्बर पर भेज दीजिए। मैं उन्हें अपने blog पर upload करके  ज़रूरतमंद शिक्षकगण तक भेजने का प्रयास करूँगा। कई सम्मानित अध्यापकगण इन साक्षात्कार की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं। किसी कारणवश वो केवीएस में नियमित चयन नहीं पा सके थे, और कुछ को अभी नौकरी और अनुभव की तलाश भी है। साथ ही केंद्रीय विद्यालयों के साक्षात्कार के विज्ञापन को वाइड पब्लिसिटी भी मिलेगी।


नोट :— साक्षात्कार देने वाले शिक्षक यह जान लें कि यह केवल संविदा पर भर्ती है। इसके माध्यम से आप परमानेंट नहीं हो सकते और यदि सत्र के बीच ही कोई नियमित कर्मचारी स्थानांतरण या किसी भी माध्यम से उसी पद पर आ जाते हैं तो आपकी सेवाएँ तुरंत समाप्त हो जाती हैं। अतः आपका कई केंद्रीय विद्यालयों के पैनल में होना , आपके लिए लाभदायक हो सकता है।

धन्यवाद सहित

सहयोगी टीम 

8278677890


➡️➡️इस blog पर upload होगा:—

https://ghanshyamsharmahindi.blogspot.com/2023/09/classes-9101112-all-subject-study.html

Classes 9,10,11,12 ॥ ALL SUBJECT ॥ STUDY MATERIAL ॥ KVS ॥ CBSE ॥ कक्षा नवीं, दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं के सभी विषयों की अध्ययन सामग्री हेतु ऊपर  दिए लिंक पर क्लिक करें 👏साभार प्राप्त 👏


Part - 12 Vacancy 2024-25 संविदा-शिक्षक साक्षात्कार , files - 10+ contractual teacher interviews KENDRIYA VIDYALAYA

नोट :- जिस भी विज्ञापन को clear देखना है, कृपया उस पर क्लिक करें।




















 

हर घर तिरंगा har ghar tiranga selfie my gov connect

  +91 93554 13636 *नमस्कार*   my gov connect द्वारा *हर घर तिरंगा* अभियान चलाया जा रहा है।      इसके अंतर्गत दिए गए नम्बर पर *Hi* लिखकर भेजे...