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Tuesday 28 February 2023

एक प्राचार्य ऐसे भी : परम परोपकारी आदरणीय प्राचार्यश्री मनोज वर्मा 💐☘️👏🙏

 



एक प्राचार्य ऐसे  भी 


        ‘‘मम्मी , आज मुझे एक और मेमो दे दिया मेरे प्राचार्य ने” विशेषता ने लगभग रोते हुए अपनी मम्मी को बताया ।


     विशेषता को नियुक्ति पाए हुए अभी दो वर्ष भी नहीं हुए थे जबकि यह उसका तीसरा मेमो था । आप सोच रहे होंगे कि ज़रूर विशेषता दिए गए काम ठीक से नहीं कर रही होगी या कमी कुछ विशेषता में ही होगी । यही तो उसकी मम्मी ने भी सोचा और कहा कि देख बेटा हर जगह माँ नहीं होती , वहाँ अपना काम ठीक से किया कर । अवश्य ही तूने ही कोई ग़लती की होगी , बाक़ी स्टाफ़ को तो नहीं मिला , तुझे ही क्यों मिला ? 


   “मम्मी आपको नहीं पता ….”  और फिर विशेषता ने बहुत-सी बातें अपनी  मम्मी को बताईं और इन बातों में कई बार श्री मनोज वर्मा , प्राचार्य का नाम विशेषता के मुँह से बार-बार ऐसे आ रहा था जैसे हनुमान जी भगवान राम का नाम ले रहे हों या एक देश-भक्त अपने देश का नाम ले रहा हो… वन्दे मातरम्।


   मम्मी ने पूछा कि ये कौन हैं मनोज वर्मा जी ? तू इन्हीं के विद्यालय में स्थानांतरण क्यों नहीं ले लेती ? 


“हाँ मम्मी, काश मुझे उन्हीं का विद्यालय मिला होता ।” और कहते-कहते विशेषता रो पड़ी। 



       ऐसे न जाने कितने ही अध्यापकगण हैं जो परम आदरणीय मनोज वर्मा सर के विद्यालय में पढ़ाना चाहते हैं और हृदय से उनका सम्मान करते हैं। 

  


       साहित्य में संस्मरण-रेखाचित्र-आत्मकथा-जीवनी विधाएँ कहानी-नाटक-उपन्यास से किसी भी मायने में कम रोचक या कमतर नहीं हैं । हम किसी व्यक्ति के साथ समय बिताकर उनपर संस्मरण-रेखाचित्र लिख सकते हैं। अब, जब सबकुछ ऑनलाइन है तो हम बहुत-से लोगों के साथ ऑनलाइन समय बिताते हैं और पिछले दो साल से बिताए गए समय के आधार पर बहुत-से सहृदय , सहयोगी , भले और उज्ज्वल चरित्र के अध्यापकगण के सम्पर्क में आया । बहुत प्रभावित हुआ । 


     उन्हीं में से एक हैं परम श्रद्धेय श्री मनोज वर्मा , प्राचार्य जी । मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता। कुछ Whatsapp समूहों / फ़ेसबुक पर उनके साथ हूँ। वहाँ उनके सहयोग के साक्षात् दर्शन किए । मनोज सर कभी भी आपको जज नहीं करते । अज्ञेय जी ने कहा है कि दुःख आदमी को माँजता है और जिसे माँजता है वो दूसरों के दुःखदर्द को आसानी से समानुभूत कर पाता है। मनोज सर कैसे हर एक की पीड़ा जानकर , बिना उस व्यक्ति से नाराज़ हुए, बिना उसको ग़लत समझे , उसकी कार्यालयी/विद्यालयी समस्याओं का समाधान बड़ी ही सरलता से कर देते हैं। इतना धैर्य , इतनी दया, इतनी क्षमा कहाँ से लाते हैं सर ? कहीं अज्ञेय जी ने जो कहा , उसका सम्बंध सर से  तो नहीं ? यदि हाँ , तो ऐसे व्यक्ति हेतु और भी अधिक श्रद्धा मन में उमड़ती है। 


      महात्मा आधुनिक ऋषि  श्रीयुत् दशरथ माँझी जी को भी पहाड़ काटकर क्या मिलना था ? पर ‘पर सरिस धर्म नहीं भाई’ वाली उक्ति जैसे ऐसे ही महानुभावों हेतु लिखी गई है। 


     हम अपना अमूल्य समय दूसरों को सुनने , उनके कष्टों के निवारण में लगाते हैं। इसका क्या अर्थ हो सकता है? हमें कुछ चाहिए ? पर ऐसा क्या है जो एक स्थिर प्रज्ञ अनासक्त या लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति को चाहिए ? मनोज सर के पास तो सबकुछ है। हम दूर बैठे अध्यापक उन्हें दे ही क्या सकते हैं और जो कहीं और नियुक्ति पा गए या पा जाएँगे वो तो समूह भी छोड़ जाएँगे , कुछ समय बाद भूल भी जाएँगे । 


     अतः vote of thanks … हार्दिक धन्यवाद अभी बनता है। बल्कि सच में शब्द नहीं सर के धन्यवाद हेतु । 


      दरअसल यह स्वभाव ही होता है । हर कोई स्वार्थी नहीं होता । वो ऋषि और बिच्छू की कहानी तो सबने सुनी ही होगी । ऋषि उसे बार-बार पानी से बचाने हेतु निकाल रहे हैं और बिच्छू उन्हें डंक मार रहा है । अंततः बिच्छू को तो बचा लेते हैं पर ऋषि के हाथ बिच्छू के डंक के दर्द से नीले पड़ जाते हैं। बात बस स्वभाव की है ।आप सब लुटाकर भी और भी लुटाने हेतु तैयार होते हैं… आपको बनाकर परमात्मा ने जाने कितने ही जीवों की डायरेक्ट हेल्प कर दी और इससे न जाने कितने ही परिवार ख़ुशहाल हैं , जाने कितनों की ही नौकरी , मान-सम्मान, परिवार बचा चुके आप मनोज सर । उन सबकी दुआएँ हमेशा आपके साथ हैं सर ।


      हमारे पास सबसे क़ीमती चीज़ हमारा जीवन, जीवन समय से बना है और वही समय जब हम सम्मानित अध्यापकगण को देते हैं तो वास्तव में हम अपने जीवन का एक हिस्सा ही तो उन्हें दे रहे हैं। क्या हर कोई अपना समय और इतनी मेहनत से अर्जित अपना ज्ञान यूँ ही फ़्री में बाँट सकता है? आप धन्य हैं श्रद्धेय सर । 


तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। 

कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।।




         मेरी नज़रों में अध्यापक से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण (वीआईपी) व्यक्ति कोई और नहीं हो सकता । वही सच्चे अर्थों में राष्ट्रनिर्माता है। सैकड़ों किताबों का अध्ययन कर पाया कि जो भी राष्ट्र विश्व में महान बने , उन सभी का कारण था उनके महान बनने से पहले उनमें महान अध्यापकगण का जन्म। नहीं विश्वास तो आप अमेरिका, जापान, फ़्रान्स, ब्रिटेन , यूनान किसी भी राष्ट्र का इतिहास उठाइए । यहाँ तक कि अपना देश भी उस समय अपने परम उत्थान पर था , जब यहाँ का शिक्षक अपने चरम पर था । अतः आपने शिक्षकगण का मार्गदर्शन करके बहुत ही पावन और अनिवार्य कार्य सम्पन्न किया है। 


सर,

आप अजातशत्रु हैं।

कभी भी प्रशासन/संगठन की बुराई आपने नहीं की । हमेशा सही रास्ता सबको दिखाया। किसी को कभी-भी उकसाने या पथभ्रष्ट करने का कार्य भी आपने नहीं किया । 


     पिछले कई वर्षों से आपके विद्यालय में किसी को मेमो तक नहीं मिला । ना ही कोरोना टाइम में आपके किसी भी शिक्षकगण का टीए आदि कटा, न ही अन्य कोई व्यवधान। पूरी बात ध्यान से सुनकर, उसके कारणों का पता लगाकर, उस व्यक्ति को नहीं बल्कि उस व्यक्ति की समस्या की जड़ों को आपने हटाया । मनुष्य जन्म से ही सकारात्मक होता है और इसकी सबसे बड़ी निशानी है , उसका ज़िंदा रहना और आगे की योजना बनाना। आप इन मनोवैज्ञानिक तथ्यों को न केवल जानते हैं बल्कि उनका उपयोग समाज की भलाई में करते हैं। । आपके ही कारण बहुत-से शिक्षकगण कुसमायोजित होने से बच गए । बहुत-से अध्यापकगण ग़लत फ़ैसलों से बच गए । 

  

     आप सच्चे अर्थों में लीडर हैं। सभी को आपसे बहुत कुछ सीखना चाहिए सर । आप निरंतर उन्नति करते रहें सर । मैं जब नवोदय में था , तो वहाँ परम श्रद्धेय श्री विक्रम जोशी सर से मिला । अब तो सर उपायुक्त बन गए हैं ।उन्होंने कभी एक पैसे तक की हेर-फेर का नहीं सोचा। ईमानदारी का पहला नाम विक्रम जोशी … ऐसे मुहावरे चल पड़े हैं अभी । ठीक वैसे ही आपका नाम सर्वत्र श्रद्धा से लिया जाने लगा है। उनके रहते मेस का खाना शानदार होता , विद्यालय हर अच्छे कामों में अव्वल रहता । ऐसे ही आपके बारे में भी सुनने को मिलता है। 





   सम्पूर्ण शिक्षक समुदाय , उनके विद्यार्थी , उनके परिवार के सदस्य आपके प्रति हृदय से कृतज्ञ हैं। हम सभी की तरफ़ से आपको कोटि-कोटि धन्यवाद । विनम्रतापूर्वक कृतज्ञ हैं हम सब। भगवान आपको हमेशा ख़ुशहाल रखें । ...और साथ ही हर उन लीडर का भी हार्दिक धन्यवाद जो सदा ही अच्छे - से -अच्छा कार्य करने में अग्रसर रहते हैं। 


जय हिंद - जय भारत,


   


नोट :— 1. विभिन्न व्हाट्सएप समूहों, फ़ेसबुक, बहुत-से सम्मानित अध्यापकगण से बात-चित के आधार पर ई-संस्मरण (नयी साहित्यिक विधा)। व्यक्तिगत रूप से या call से कभी मनोज सर से बात नहीं हो पाई । धन्य होऊँगा जिस दिन बात होगी ।

2. Gratitude बहुत ज़रूरी है। हर उस व्यक्ति का धन्यवाद होना चाहिए जो वर्तमान में अपना काम ईमानदारी से कर रहा है, भले ही वेतन ले रहा हो। 

3. समाज की , शिक्षा की, राजनीति की  या अन्य कोई ग़लत बात हो उसपर व्यंग्य होने के साथ ही अच्छे कामों की प्रशंसा भी उतनी ही ज़रूरी । 

4. हमारा सुधार साथ ही हमारे कर्मक्षेत्र का सुधार हमारा परम कर्त्तव्य ताकि देश फिर से शिखर पर हो और विश्वगुरु के नाम की सार्थकता प्राप्त करे । 

5. मुझे कभी कोई मेमो आजतक नहीं मिला , और अपार में भी ठीकठाक रह जाता हूँ। कहीं कोई समझें कि अपनी ही कहानी बता रहा हूँ😊

6. हमेशा खुले मस्तिष्क से लेख पढ़ें । कोरे आदर्शवादी नहीं लिख सकता और न ही पूरे यथार्थवादी ही । अतः सच्चाइयाँ लिखने के साथ ही ध्यान सकारात्मकता पर ही रहता है। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते भावुकता थोड़ी ज़्यादा है बस। खुले और शांत दिमाग़ से पढ़ेंगे तो लेख की आत्मा तक पहुँचेंगे ☘️॥


— घनश्याम

केंद्रीय विद्यालय शिक्षक 

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