कविता - अफ़वाह
‘एक' और 'दो' में,
थोड़ी-सी हुई कहासुनी,
'तीन' ने यह बात सुनी,
'चार' को उसने बताया कि
'एक' और 'दो' में
गाली-गलौज ज़ोरदार हुआ।
'चार' ने कुछ तो सुना,
समझा दो गुना (हम सब भी तो दुगुना ही समझते हैं)
उसने यही बात 'पांच' को कुछ यूं बताई-
कि 'एक' और 'दो' में हुई भीषण लड़ाई,
मरते-मरते ही बचे हैं ।
'पांच' भी आजकल की दुनिया जितना ही समझदार था,
सो समझ गया।
जैसी कि रीत है-
अपनी तरफ से भी जोड़ दिया।
'छह' को बताया कि -
'एक-दो-तीन' में आज मार काट हो गई,
'दो' व 'तीन' को गहरी चोटें आईं,
जबकि 'एक' की तो हालत ही गंभीर है ।
'छह' ने सुना,
समझा।
वो ढूंढने लगा 'सात' को,
क्योंकि उसे,
बात पचती न थी ।
जैसे ही उसे 'सात' मिला,
उसने 'सात' को सब 'डिटेल' से बताया,
कुछ अपना 'इमेजिन' भी लगाया। (हम भी तो लगाते हैं)
'सात' ने 'आठ' को,
'आठ' ने 'नौ' को,
और 'नौ' ने 'दस' को,
जब ये बात बताई,
तो कहानी कुछ यूं हो गई थी-
- 'एक', 'दो', 'तीन', 'चार', 'पांच', 'छह' में,
बड़ी भयंकर हुई लड़ाई,
सुबह से शाम तक चली,
चाकू, छुरी , तलवार ही नहीं,
रिवाल्वर-पिस्तौल भी चले,
'एक' और 'दो' तो स्वर्ग सिधार गए,
'तीन' जाने ही वाला है,
'चार' कोमा में है,
'पांच' गंभीर जख्मी है,
'छह'...
'छह' का तो अता-पता ही नहीं ।
पास में खड़े 'सात-आठ' को भी,
चोटें आईं हैं।
...और यह सब ...
...सब कुछ...
मैंने अपनी इन्हीं आंखों से देखा है ।
(सफेद झूठ)
हे भगवान !
क्या भयंकर दृश्य थे।
(वाह रे झूठे )।
मित्रों,
इसी तरह अफवाहें पैदा होती हैं,
फलती-फूलती हैं,
चलती नहीं , दौड़ती हैं,
हम ही उसे पंख लगाते हैं।
(क्या यह सही है?)
ये अफवाहें चारों ओर दौड़ रही हैं।
अफवाहें, मित्र को मित्र से,
पिता को पुत्र से,
पति को पत्नी से,
साजन को सजनी से,
भाई को भाई से,
ससुर को जवाई से,
अपनी संतान से,
परम पिता भगवान से,
दूर ...
बहुत दूर कर देती हैं।
अत: अफवाहों पर ध्यान ना दें,
अन्यथा जीवन भर पछतायें,
आप और आपकी अफवाहें।।
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