सभी का अभिनंदन ...
Creative kV4 competition
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Creative Kv 4 competition में भाग लेने वाले सभी बच्चों की
कविताओं , कहानियों , पेंटिंज़ , पोस्टर आदि को यहाँ एक साथ पब्लिश किया जा रहा है । इस प्रतियोगिता में बच्चों ने बड़े ही उत्साह से भाग लिया और बहुत ही सुंदर रचनायें प्रस्तुत कीं। हर बच्चे की अधिकतम दो रचनाओं को इस ब्लॉग पर स्थान दिया गया है और न्यूनतम एक रचना होना अनिवार्य है ।
शीघ्र ही इस प्रतियोगिता का परिणाम भी घोषित किया जाएगा ।
आप आनंद लीजिए बच्चों की कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता का :—
*मानवता*
मानव की सभ्यता में, खो गया है मानवता
मानव की सृष्टि में, छुपा था मानवता
मानवता को जीवन में,
हमने क्यों खो दिया है?
न करते मार, न होते अत्याचार
बेटियों का हुआ बलात्कार
हत्या हुई बार बार।
बेटियां तो वरदान है,
उसमें जीवन देने का दान है,
मानवता को अपनाना होगा,
सुन्दर समाज बनाना होगा,
सबको यह निर्णय लेना होगा,
आपस में भाई - चारे को अपनाना होगा,
वही मानवता को फिर से लाना होगा,
तभी सुन्दर होगा यह राष्ट्र,
जिसमें हम करते है बास,
तभी कहलाएगा भारतवर्ष महान।
Name - Biswajit Badapanda
Class - १२ A
Roll no. - २२
Kendriya Vidyalaya No.४
*आस्था*
*यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है*
यह कहानी मेरी परनानी की जुबानी । एक बार उनके गांव में बहुत जोरों की बाढ़ आई थी। हर जगह पानी ही पानी भर गया था घर के अंदर से लेकर बाहर तक जहां भी आंख जाती पानी ही पानी था बहुत तकलीफ से गुजर रहे थे इसी बीच गांव में एक प्रथा के अनुसार हर घर को कुछ पैसे गांव के मंदिर के लिए देने पड़ते थे। उसी समय पैसे देने की बारी हमारे घर की थी ।
बाढ़ के कारण कोलकाता से परनाना जी के भेजे पैसे नहीं मिल पाए थे । परनानी बहुत उदास थी चारों और पानी ,घर के सारे वास्तु भीगे हुए ,धान चावल आदि । खाने की दिक्कत के साथ-साथ पास में पैसे भी न थे । फिर भी मंदिर के लिए योगदान देना जरूरी था । इसी परेशानी में परनानी जी भगवान के कक्ष में गई ,रोते-रोते भगवान से प्रार्थना की , हे प्रभु इस परिस्थिति से कैसे निकला जाये "भगवन सब कुछ आपके हाथ में है" यह परनानी बोले।
भगवान से यह निवेदन करते करते सोने को चली गई। इस चिंता के साथ अगर पानी ज्यादा दिनों तक घर के अंदर रहा तो मिट्टी की दीवार धस जाएगी बस एक पलंग को पत्थरों के सहारे ऊंचे में रखे थे तभी परनानी ने सपने में देखा सफेद वस्त्र पहने हुए कोई व्यक्ति आकर उन्हें मानो कह रहे हैं,' घबराओ मत कल सुबह तक सब कुछ सही हो जाएगा चिंता मत करो बस मुझ पर विश्वास रखो ।' यही कहते हुए परनानी से दूर होते जा रहे थे जाते वक्त एक आवाज आ रही थी …
… *ठक,* *ठक*, *ठक* जैसे कोई लकड़ी का चप्पल हो । उसी आवाज को सुनकर घबराहट में अचानक परनानी की आंख खुल गई ,देखती है तो भोर हो चुकी थी धड़ाम से उठ बैठी उठते के साथ रो पड़ी क्योंकि परनानी ने देखा उनके मुट्ठी में कुछ पैसे थे और जो पानी घर के अंदर था सुख के पीछे के तलाब तक चली गई थी परनानी आश्चर्यचकित हो गई ,कौन थे वह! जो यह चमत्कार कर गए ।
तभी परनानी को एहसास हुआ की सोने से पहले जो ठाकुर जी को प्रार्थना की थी कहीं ठाकुर जी तो नहीं पधारे थे मैं अभागन सोती रह गई देख भी नहीं पाई इसी सोच में रोते हुए ठाकुर जी को प्रणाम करने जब गई देखती है तो ठाकुर के पादुका में मिट्टी के अवशेष लगे थे ,यह देखते ही वह फूट-फूट कर रो पड़ी। सुबह के कामों में व्यस्त रह गई और मंदिर के प्रबंधक जब आए तो उन्हें पैसे दे दिए ।
इसी से यह एहसास होता है कि भगवान पर आस्था रखने से वह जरूर सुनते हैं।
अनेकों बार ऐसे अनेक परिस्थिति में ठाकुर ने मेरी पर नानी जी को सहायता की थी।
नाम: रुद्राक्ष राय
कक्षा :9 ब
स्कूल :केंद्रीय विद्यालय क्रमांक 4 भुवनेश्वर
सच्चा अौर ईमानदार भूत (कहानी )
रमेश नामक एक गरीब दूधवाला एक छोटे से गांव में रहता था। उसके पास एक गाय और उसका बछड़ा भी था। रोज सुबह वह अपने गाय से दूध निकालकर बाज़ार में बेचकर सौ- डेढ़ सौ रुपए कमाता था। रमेश कभी अपने दूध में पानी नहीं मिलाता था इसलिए लोग रमेश से दूध लेना पसंद करते थे।
ऐसे करते करते वह बहुत अमीर बन गया। उसे देखकर उसके पड़ोसी देव ने एक दिन सोचा कि,"अगर रमेश ऐसे करके अमीर बन गया तो मैं क्यों नहीं बन सकता "।
देव का लालच बढ़ता ही गया। उसके अगले सुबह ही वह एक गाय ले आया। जब वह उससे दूध निकालने गया तो गाय बस चार-पाँच लीटर ही दूध दिया।
देव गाय को फिर जोर-जोर से मारने लगा। फिर देव दूध में पानी मिलाकर बाज़ार में बेचने गया तो कोई उससे दूध नहीं लिए। फिर देव गुस्सा हो गया।उसने अपने मन में ठान लिया कि वह रमेश की गाय चुरा लेगा।
उसी रात देव रमेश की गाय चुरा लिया।
उसके अगले सुबह जब रमेश गाय के पास गया तो गाय नहीं थी । वह परेशान हो गया। सबसे पूछा लेकिन किसी ने गाय को नहीं देखा।
रमेश निराश हो कर घर आया और रोने लगा। उसी समय एक भूत आया और पूछा क्या हुआ? रमेश ने सारी बात बताई। तभी भूत बोला,"मैं सभी सच्चे लोगों की मदद करता हूं और मैं तुम्हारी मदद भी करुंगा "। यह सुनकर रमेश खुश हो गया।
भूत ने फिर अपने मंत्र से रमेश को बीस लीटर दूध देने वाली गाय दी और कहा,"इसको तुम रखो जल्द ही मैं तुम्हे तुम्हारी गाय दे दूँगा । उसके अगले सुबह उसने गाय को ढूंढ़ लिया और सोचा कि इस को थोड़ा सबक देगें। फिर भूत ने गाय के अदंर प्रवेश किया। जब देव गाय से दूध निकालने बैठा तो गाय ने एक जोर से लात मारी। देव गिर गया और डर गया तो उसने गाय को खोल दिया। फिर भूत गाय के अदंर से निकल आया और रमेश को दे दिया। रमेश खुश हो गया। भूत फिर उधर से चला गया । उसी दिन से रमेश दोनों गाय को पालने लगा।
शिक्षा- लालच और चोरी सबसे खराब चीज़ है।
नाम- आदित्यदित्य पलटासिहं
कक्षा- छ्ठी 'ब'
तारीख- 28-03-2020-21
दिन- शनिवार
माता-दीप्ति रानी दाश
विद्यालय- केंद्रीय विद्यालय क्रमांक-४
भुवनेश्वर
*मैं जवान पर वृद्ध मेरी पहचान*
नज़रें न हटाओ उनसे
निगाहें न छिपाओ
वो है अलादीन का चिराग
उनको अपने सर पर बिठाओ।।
ज़िंदगी मेहनत की गुज़ार दी
धन दौलत अपने बच्चों के नाम की
सिर्फ़ सही सलामत रहने की चाह की
बदले में और कुछ न मांग की।।
सारी सारी रात, पूरा पूरा दिन
न कुछ खाया, न सोया
हमारी सेवा में अपना
सब कुछ गवाया।।
उन्होंने अपना आज बिगाड़ा
और हमारा कल संवारा
उनके जीवन में न करो अंधियारा
मुश्किल वक्त में उनका बनों सहारा।।
उनके स्नेह लाड प्यार के बदले
हमनें उन्हें क्या दिया?
सिर्फ़ गुस्सा , झगड़ा, मार
अरे हाथों से नहीं तो बातों की वार।।
वो ज़माना कुछ और ही था
बुज़ुर्ग घर के मुखिया कहलाते
सारे फैसले वही सुनाते
हर नियम उनसे हो आते।।
अरे बाहर वाले तो छोड़ो
घर वाले भी न पूछते
खुद खून का रिश्ता खून तोड़ता
और वृद्धाश्रम का स्थान दिखता।।
अब ज़िंदगी यहीं गुजारनी है
अकेलेपन के पल भी यहीं काटने है
अपने भाग्य को कोसते रहे
न जाने किस जन्म की
सज़ा भूगोत रहे।।
वृद्ध होते हैं भगवान
वृद्धाश्रम में नहीं उनका स्थान
अरे खुदगर्जों, मानव जाति का तो रख लो सम्मान
क्यूं जीतेजी ले रहे हो उनकी जान।।
मेरी मानो, अभी से ठानो
अपने मां बाप के दर्द को पहचानो
उनके किए कुर्बानी को जानो
उन्हें ऐसे जीतेजी मत मारो।।
नाम: श्रेयांसि महापात्र
दसवीं कक्षा। अनुक्रमांक:२२
केंद्रीय विद्यालय क्र:४, भुवनेश्वर
धन्यवाद
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शीघ्र ही इस प्रतियोगिता का परिणाम भी घोषित किया जाएगा ।
आप आनंद लीजिए बच्चों की कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता का :—
*मानवता*
मानव की सभ्यता में, खो गया है मानवता
मानव की सृष्टि में, छुपा था मानवता
मानवता को जीवन में,
हमने क्यों खो दिया है?
न करते मार, न होते अत्याचार
बेटियों का हुआ बलात्कार
हत्या हुई बार बार।
बेटियां तो वरदान है,
उसमें जीवन देने का दान है,
मानवता को अपनाना होगा,
सुन्दर समाज बनाना होगा,
सबको यह निर्णय लेना होगा,
आपस में भाई - चारे को अपनाना होगा,
वही मानवता को फिर से लाना होगा,
तभी सुन्दर होगा यह राष्ट्र,
जिसमें हम करते है बास,
तभी कहलाएगा भारतवर्ष महान।
Name - Biswajit Badapanda
Class - १२ A
Roll no. - २२
Kendriya Vidyalaya No.४
*आस्था*
*यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है*
यह कहानी मेरी परनानी की जुबानी । एक बार उनके गांव में बहुत जोरों की बाढ़ आई थी। हर जगह पानी ही पानी भर गया था घर के अंदर से लेकर बाहर तक जहां भी आंख जाती पानी ही पानी था बहुत तकलीफ से गुजर रहे थे इसी बीच गांव में एक प्रथा के अनुसार हर घर को कुछ पैसे गांव के मंदिर के लिए देने पड़ते थे। उसी समय पैसे देने की बारी हमारे घर की थी ।
बाढ़ के कारण कोलकाता से परनाना जी के भेजे पैसे नहीं मिल पाए थे । परनानी बहुत उदास थी चारों और पानी ,घर के सारे वास्तु भीगे हुए ,धान चावल आदि । खाने की दिक्कत के साथ-साथ पास में पैसे भी न थे । फिर भी मंदिर के लिए योगदान देना जरूरी था । इसी परेशानी में परनानी जी भगवान के कक्ष में गई ,रोते-रोते भगवान से प्रार्थना की , हे प्रभु इस परिस्थिति से कैसे निकला जाये "भगवन सब कुछ आपके हाथ में है" यह परनानी बोले।
भगवान से यह निवेदन करते करते सोने को चली गई। इस चिंता के साथ अगर पानी ज्यादा दिनों तक घर के अंदर रहा तो मिट्टी की दीवार धस जाएगी बस एक पलंग को पत्थरों के सहारे ऊंचे में रखे थे तभी परनानी ने सपने में देखा सफेद वस्त्र पहने हुए कोई व्यक्ति आकर उन्हें मानो कह रहे हैं,' घबराओ मत कल सुबह तक सब कुछ सही हो जाएगा चिंता मत करो बस मुझ पर विश्वास रखो ।' यही कहते हुए परनानी से दूर होते जा रहे थे जाते वक्त एक आवाज आ रही थी …
… *ठक,* *ठक*, *ठक* जैसे कोई लकड़ी का चप्पल हो । उसी आवाज को सुनकर घबराहट में अचानक परनानी की आंख खुल गई ,देखती है तो भोर हो चुकी थी धड़ाम से उठ बैठी उठते के साथ रो पड़ी क्योंकि परनानी ने देखा उनके मुट्ठी में कुछ पैसे थे और जो पानी घर के अंदर था सुख के पीछे के तलाब तक चली गई थी परनानी आश्चर्यचकित हो गई ,कौन थे वह! जो यह चमत्कार कर गए ।
तभी परनानी को एहसास हुआ की सोने से पहले जो ठाकुर जी को प्रार्थना की थी कहीं ठाकुर जी तो नहीं पधारे थे मैं अभागन सोती रह गई देख भी नहीं पाई इसी सोच में रोते हुए ठाकुर जी को प्रणाम करने जब गई देखती है तो ठाकुर के पादुका में मिट्टी के अवशेष लगे थे ,यह देखते ही वह फूट-फूट कर रो पड़ी। सुबह के कामों में व्यस्त रह गई और मंदिर के प्रबंधक जब आए तो उन्हें पैसे दे दिए ।
इसी से यह एहसास होता है कि भगवान पर आस्था रखने से वह जरूर सुनते हैं।
अनेकों बार ऐसे अनेक परिस्थिति में ठाकुर ने मेरी पर नानी जी को सहायता की थी।
नाम: रुद्राक्ष राय
कक्षा :9 ब
स्कूल :केंद्रीय विद्यालय क्रमांक 4 भुवनेश्वर
नाम - प्रीतिश्री परीड़ा
कक्षा - आँठवीं ‘ब'
सेशन - 2020-2021
दिनांक - 05/04/2020
दिन - शनिवार
पिता का नाम - प्रताप चंद्र परीड़ा
माता का नाम – दीप्ति परीड़ा
विद्यालय का नाम – केन्द्रीय विद्यालय नं-4 भुवनेश्वर
काला रंग: अभिशाप या आशीर्वाद
क्या है मेरा कोई कसूर?
तो क्यों मुझे रोने के लिए कर रहे हो तुम मज़बूर,
शायद यहीं राज़ है तुम्हारा,जिस से होते हो तुम मशहूर।
मिला मुझे यह अनोखा जन्म मेरी माँ के कोख से,
और वहीं से मिला मुझे यह श्याम रंग का अवतार,
है मुझे मेरे इस काले रंग पर नाज़,
चाह के भी बंद नहीं कर सकते हो तुम मेरी आवाज़।
काला धागा,काला टीका, काला तिल बचाता है तुम्हें बुरीनज़रों से,
बस मेरे ही काले रंग से है तुम्हें इतना एतराज़,
बना के रखा है इसे एक रीति रिवाज।
दिया है रब ने यह रंग मुझे पता नहीं सोचकर एकआशीर्वाद या अभिशाप,
पर इस के लिए मुझे ही करना पड़ रहा है पश्चाताप।
कभी कोई बोलता विनाशिनी तो कभी कुलक्षिणी,
पर पता है मुझे कि हूँ मैं सुलक्ष्मी।
पता नहीं क्या है खुदा की इस के पीछे साज़िश,
पर रब से एक है गुज़ारिश,
दे शक्ति मुझे ताकि मैं कर सकूँ इस समाज को बदलनेकी कोशिश।
ये कोरोना है या भगवान
हर युग में पाप का नाश करने भगवान ने अवतार लिया,
इस युग में पाप का नाश करने कोरोना ने अवतार लिया ।
सर्वश्रेष्ठ प्राणि ने मचाया हर जगह आतंक,
धरती में बचे बहुत ही कम संत।
हर जगह नारियों का अपमान हुआ,
पेड़ों को काटने का काम हुआ।
जगह नारियों का अपमान हुआ, हर जगह पेड़ों को काटने का काम हुआ।
पर्यावरण को हमने किया दुशित ,
जानवरों को मार कर हमेशा के लिए किया मुर्छित।
हर जगह हमने नफ़रत फैलाई,
पाप की हमने हमेशा करी बढाई।
राम के आचरण को हमने झुटलाया,
गलत कामों को हमने बढाया।
देखो कैसे हमारी धरती तप रही है,
हमारे अत्याचारों से बिलख रही है।
पाप का नाश करने भगवान ने अवतार लिया,
कोरोना के माध्यम से संहार किया।
हे प्रभु आपसे है मेरी एक गुहार,
हमे मौका दीजिए और एक बार,
नहीं करेंगे हम गलती बार बार।
नाम -जयश्री पृष्टि
जन्मतिथि -24-03-2006
जन्मस्थान -आइजोल, मिज़ोरम
पिता का नाम - नरेंद्र कुमार पृष्टि
माता का नाम - पुष्प लता पुष्टि
वर्तमान पता- भी आई एम,शैलश्री विहार, भुवनेश्वर, ओडिशा
पिनकोड -751021
कक्षा -आठवी (2019-2018)
विद्यालय -केंद्रीय विद्यालय क्रमांक ४
नीलाद्रि विहार
भुवनेश्वर , ओडिशा
नाम - आयुष्मती शर्मा
कक्षा - आठवीं ‘ब’
सेशन - 2020-2021
दिनांक - 29/03/2020
दिन - रविवार
पिता का नाम – शिवप्रसाद शर्मा
विद्यालय का नाम – केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक – 4 , भुवनेश्वर
ज़िंदगी
होती है कुछ पलों की ये ज़िंदगी,
आज बचपन,
कल जवानी,
परसो बुढ़ापा फिर ख़तम कहानी।
होता है एक जहां ये ज़िंदगी,
जी भरके रोते है तो करार मिलता है,
इस जहां में कहां सबको प्यार मिलता है,
गुज़र जाती हैं ये ज़िंदगी इम्तिहानों के दौर से,
एक ज़ख्म भरता है,
तो वहीं दूसरा तैयार मिलता है।
वैसे तो एक किताब है ये ज़िंदगी,
पर काश,
फाड़ सकते उन पन्नों को जिन्होंने रुलाया है,
जोड़ सकते उन लम्हों को जिन्होंने हसाया है,
हिसाब लगा पाते की कितना खोया है और कितना पाया है।
होता है बड़ा अजीब ये ज़िंदगी,
कभी हार तो कभी जीत होती है,
मुस्कुराओ तो लोग जलते है,
ख़ामोश रहो तो सवाल करते है।
एक सुहाना सफर है ये ज़िंदगी,
मत पूछो मंज़िल का पता,
आंखों में आंसू और दिल में ख्वाब रख को,
लंबा सफर है ज़िंदगी का जरूरी सामान रख लो।
अरे ! तुम क्या जानोगे क्या होती है ये ज़िंदगी,
अगर जानना है,
तो कभी किसी भिखारी के कटोरे पे फेंके सिक्के गिन लेना,
कभी अपनी मां की त्याग देख लेना,
कभी किसी मजदूर के हांथ के छाले देख लेना।
--आयुष्मती शर्मा
नाम - आयुष्मती शर्मा
कक्षा - आठवीं ‘ब’
सेशन - 2020-2021
दिनांक - 29/03/2020
दिन - रविवार
पिता का नाम – शिवप्रसाद शर्मा
विद्यालय का नाम – केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक – 4 , भुवनेश्वर
शहीद-ए-भगत
सरफरोशी की तमन्ना तब
हमारे दिल में आया था,
लहू का प्रत्येक कतरा
इंकलाब लाया था,
क्या हिन्दू, क्या मुस्लिम,
पूरा हिंदुस्तान उस दिन रोया था,
23 मार्च 1931 का दिन काल बनके आया था,
जब फांसी के फंदे पर
तीन वीरों को झुलाया था,
सुखदेव, भगत, राजगुरु के
मन को कोई दूजा न भाया था,
खुशी-खुशी वतन के वास्ते
मौत को गले लगाया था।
इंकलाब का नारा लिए
हमसे विदा लेने की ठानी थी,
लटक गए तुम फांसी पर परन्तु मुंह
से एक शब्द तक नहीं निकली थी,
देख ऐसी वीरता तुम्हारी
पूरा जग है रोया था,
खुशी-खुशी वतन के वास्ते
मौत को गले लगाया था।
सीने में जुनून का राग था,
न मौत का कोई डर था,
न परवाह थी अपने प्राण की,
छोड़ मोह माया इस जग का
अपनों को छोड़ के आया था,
भारत माता को गोद लिया था,
इस वतन को है अपनाया था,
लेके जन्म इस पुनीत भूमि पर,
अपना फर्ज निभाया था,
खुशी-खुशी वतन के वास्ते
मौत को गले लगाया था।
अलविदा कहकर चल दिए,
दिखाकर सपना आज़ादी का,
सपना हुआ आपका सच
पर रोज़ दिखता है दृश्य बर्बादी का,
कहीं गरीब भूखा मारता है,
तो कहीं अमीरों का घर भरता है,
कहीं जात-पात की शोर होती है,
तो कहीं नारी पर भर- भरता बरस आती है,
यही अफसाना है आज़ाद भारत का,
जब जब याद आया आपका
इन आंखों ने अश्रुधारा बहाया था,
खुशी-खुशी वतन के वास्ते
मौत को गले लगाया था।
टुकड़े टुकड़े कर गोरों ने
भारत मां का सीना चीरा था,
हिन्दू मुस्लिम के पंगो ने
भाईचारा को बहकाया था,
जातिवाद के इस खेल में
लड़ाई सबकी मजबूरी थी,
कुछ को हिंदुस्तान मिला तो
कुछ ने पाया पाकिस्तान था,
देखते ही देखते बंट गया ये समाज अपना
ऐसा तो नहीं देखा था आपने सपना,
सरहद के उस विभाजन का
आज असर कुछ गहरा दिखता है,
भारत-पाक् के उन सीमाओं पर
हर रोज़ जवान मौत की मार मरता है,
आपके सपनों पर ये भारत
खरा न उतार पाया था,
सलाम उन वीरों को जिन्होंने
खुशी-खुशी वतन के वास्ते
मौत को गले लगाया था।
जय भगत !
जय भारत !
इंकलाब ज़िंदाबाद !
-आयुष्मती शर्मा
सच्चा अौर ईमानदार भूत (कहानी )
रमेश नामक एक गरीब दूधवाला एक छोटे से गांव में रहता था। उसके पास एक गाय और उसका बछड़ा भी था। रोज सुबह वह अपने गाय से दूध निकालकर बाज़ार में बेचकर सौ- डेढ़ सौ रुपए कमाता था। रमेश कभी अपने दूध में पानी नहीं मिलाता था इसलिए लोग रमेश से दूध लेना पसंद करते थे।
ऐसे करते करते वह बहुत अमीर बन गया। उसे देखकर उसके पड़ोसी देव ने एक दिन सोचा कि,"अगर रमेश ऐसे करके अमीर बन गया तो मैं क्यों नहीं बन सकता "।
देव का लालच बढ़ता ही गया। उसके अगले सुबह ही वह एक गाय ले आया। जब वह उससे दूध निकालने गया तो गाय बस चार-पाँच लीटर ही दूध दिया।
देव गाय को फिर जोर-जोर से मारने लगा। फिर देव दूध में पानी मिलाकर बाज़ार में बेचने गया तो कोई उससे दूध नहीं लिए। फिर देव गुस्सा हो गया।उसने अपने मन में ठान लिया कि वह रमेश की गाय चुरा लेगा।
उसी रात देव रमेश की गाय चुरा लिया।
उसके अगले सुबह जब रमेश गाय के पास गया तो गाय नहीं थी । वह परेशान हो गया। सबसे पूछा लेकिन किसी ने गाय को नहीं देखा।
रमेश निराश हो कर घर आया और रोने लगा। उसी समय एक भूत आया और पूछा क्या हुआ? रमेश ने सारी बात बताई। तभी भूत बोला,"मैं सभी सच्चे लोगों की मदद करता हूं और मैं तुम्हारी मदद भी करुंगा "। यह सुनकर रमेश खुश हो गया।
भूत ने फिर अपने मंत्र से रमेश को बीस लीटर दूध देने वाली गाय दी और कहा,"इसको तुम रखो जल्द ही मैं तुम्हे तुम्हारी गाय दे दूँगा । उसके अगले सुबह उसने गाय को ढूंढ़ लिया और सोचा कि इस को थोड़ा सबक देगें। फिर भूत ने गाय के अदंर प्रवेश किया। जब देव गाय से दूध निकालने बैठा तो गाय ने एक जोर से लात मारी। देव गिर गया और डर गया तो उसने गाय को खोल दिया। फिर भूत गाय के अदंर से निकल आया और रमेश को दे दिया। रमेश खुश हो गया। भूत फिर उधर से चला गया । उसी दिन से रमेश दोनों गाय को पालने लगा।
शिक्षा- लालच और चोरी सबसे खराब चीज़ है।
नाम- आदित्यदित्य पलटासिहं
कक्षा- छ्ठी 'ब'
तारीख- 28-03-2020-21
दिन- शनिवार
माता-दीप्ति रानी दाश
विद्यालय- केंद्रीय विद्यालय क्रमांक-४
भुवनेश्वर
*मैं जवान पर वृद्ध मेरी पहचान*
नज़रें न हटाओ उनसे
निगाहें न छिपाओ
वो है अलादीन का चिराग
उनको अपने सर पर बिठाओ।।
ज़िंदगी मेहनत की गुज़ार दी
धन दौलत अपने बच्चों के नाम की
सिर्फ़ सही सलामत रहने की चाह की
बदले में और कुछ न मांग की।।
सारी सारी रात, पूरा पूरा दिन
न कुछ खाया, न सोया
हमारी सेवा में अपना
सब कुछ गवाया।।
उन्होंने अपना आज बिगाड़ा
और हमारा कल संवारा
उनके जीवन में न करो अंधियारा
मुश्किल वक्त में उनका बनों सहारा।।
उनके स्नेह लाड प्यार के बदले
हमनें उन्हें क्या दिया?
सिर्फ़ गुस्सा , झगड़ा, मार
अरे हाथों से नहीं तो बातों की वार।।
वो ज़माना कुछ और ही था
बुज़ुर्ग घर के मुखिया कहलाते
सारे फैसले वही सुनाते
हर नियम उनसे हो आते।।
अरे बाहर वाले तो छोड़ो
घर वाले भी न पूछते
खुद खून का रिश्ता खून तोड़ता
और वृद्धाश्रम का स्थान दिखता।।
अब ज़िंदगी यहीं गुजारनी है
अकेलेपन के पल भी यहीं काटने है
अपने भाग्य को कोसते रहे
न जाने किस जन्म की
सज़ा भूगोत रहे।।
वृद्ध होते हैं भगवान
वृद्धाश्रम में नहीं उनका स्थान
अरे खुदगर्जों, मानव जाति का तो रख लो सम्मान
क्यूं जीतेजी ले रहे हो उनकी जान।।
मेरी मानो, अभी से ठानो
अपने मां बाप के दर्द को पहचानो
उनके किए कुर्बानी को जानो
उन्हें ऐसे जीतेजी मत मारो।।
नाम: श्रेयांसि महापात्र
दसवीं कक्षा। अनुक्रमांक:२२
केंद्रीय विद्यालय क्र:४, भुवनेश्वर
धन्यवाद
There are very interesting drawings
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