5.गजानन माधव मुक्तिबोध
(सहर्ष स्वीकारा है)
कवितासार:-
कविता में जीवन के सुख– दुख‚ संघर्ष– अवसाद‚ उठा– पटक को समान रूप से स्वीकार करने की बात कही गई है। स्नेह की प्रगाढ़ता अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर वियोग की कल्पना मात्र से त्रस्त हो उठती है। प्रेमालंबन अर्थात प्रियजन पर यह भावपूर्ण निर्भरता‚ कवि के मन में विस्मृति की चाह उत्पन्न करती है।वह अपने प्रिय को पूर्णतया भूल जाना चाहता है , वस्तुत: विस्मृति की चाह भी स्मृति का रूप है यह विस्मृति भी स्मृतियों के धुंधलके से अछूती नहीं है|प्रिय की याद किसी न किसी रूप में बनी रहती है | कवि दोनों ही परिस्थितियों को उस परम् सत्ता की परछाईं मानता | वह हर परिस्थिति को स्वीकार करता है –सुख –दुख, संघर्ष–अवसाद ,उठा-पटक, मिलन –बिछोह को समान भाव से स्वीकार करता है |
पठित पद्यांश-
● काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें –
“गरबीली गरीबी यह,ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनय सब
मौलिक है,मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जागृत है ,अपलक है-
संवेदन तुम्हारा है !!”
(क) कवि किस-किस को मौलिक मानता है और क्यों ?
उत्तर- कवि अपनी स्वाभिमानयुक्त गरीबी,जीवन गंभीर अनुभवों, वैचारिकचिंतन, व्यक्तित्व की दृढ़ता और अंतः करण की भावनाओं को मौलिक मानता है | ये सभी उसके भोगे हुए यथार्थ का प्रतिफल हैं | इन पर किसी की छाया नहीं है अतः यह मौलिक है |
(ख) कवि ने क्या सहर्ष स्वीकार किया है और क्यों ?
उत्तर- कवि ने जिन्दगी में जो कुछ भी प्राप्त है उसे सहर्ष स्वीकार किया है | इसका कारण यह है कि उसका जो कुछ भी है,वह उसकी प्रिया को प्यारा लगता है |
(ग) ‘गरीबी’ के लिए प्रयुक्त विशेषण का भव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए |
उत्तर- ‘गरीबी’ के लिए ‘गरबीली’ विशेषण का प्रयोग किया गया है | इसका भव-सौन्दर्य है-गरीबी पर गर्व किया जा सकता है, यह किसी भी प्रकार से हीन भावना उत्पन्न करने वाली नहीं होनी चाहिए |
* काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें –
“जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलेता हूं भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुस्काता चांद जो धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता हुआ चेहरा है!”
1. कवि अपने उस प्रिय संबंधी के साथ अपने संबंध कैसे बताता है?
उत्तर- कवि का अपने उस प्रिया के साथ गहरा संबंध है। उस के स्नेह से वह अंदर व बाहर से पूर्णतः आच्छादित है और उसका स्नेह उसे भिगोता रहता है।
2. कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है तथा क्यों?
उत्तर- कवि अपने दिल की तुलना मीठे पानी के झरने से करता है। वह इसमें से जितना भी प्रेम बाहर उड़ेलता है, उतना ही यह फिर भर आता है।
3. कवि प्रिय को अपने जीवन में किस प्रकार अनुभव करता है?
उत्तर- कवि प्रिय को अपने जीवन पर इस प्रकार आच्छादित अनुभव करता है जैसे धरती पर सदा चांद मुस्कुराता रहता है। कवि के जीवन पर सदा उसके प्रिय का मुस्कुराता चेहरा जगमगाता रहता है।
● काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें –
“सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूं मैं भूलूं मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुव अधंकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लू मैं
झेलूं मैं, उसी में नहा लूं मैं
इसलिए कि तुम से ही परिवेष्टित पर आधारित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।“
1. अमावस्या के लिए प्रयुक्त विशेषण से काव्यार्थ में क्या विशेषता आई है?
उत्तर- कवि ने 'अमावस्या' के लिए 'दक्षिण ध्रुवी अंधकार' विशेषण का प्रयोग किया है। इसमें कवि का अपराध बोध व्यक्त होता है। वह दक्षिणी ध्रुव के अंधकार में स्वयं को विलीन करना चाहता है ताकि प्रियतमा से अलग रह सके।
2. मैं तुम्हें भूल जाना चाहता हूं- इस सामान्य कथन को व्यक्त करने के लिए कवि ने क्या युक्तियां अपनाई है?
उत्तर-कवि ने इस सामान्य कथन को कहने के लिए स्वयं को दक्षिण ध्रुवी अंधकार अमावस्या में लीन करने की बात कही है। उसने स्वयं को भूलने के लिए इस युक्ति का प्रयोग किया है।
3. काव्यांश का शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- 'अंधकार-अमावस्या' में अनुप्रास अलंकार है।
● कवि ने खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति की है।
● तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है।
● 'अमावस्या', 'अंधकार' निराशा के प्रतीक हैं।
● 'दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या' में रूपक अलंकार है ।
भाव-सौन्दर्य :
1) कवि अपने जीवन की हर उपलब्धि को इसलिए स्वीकार करता है क्योंकि उसके पीछे उसकी प्रिया की प्रेरणा और भावना है ।
2) उसकी प्रिया को कवि की हर उपलब्धि प्रिय लगती है ।
3) इस कविता में कवि ने अपनी गरीबी, बौद्दिकता और गहन अनुभूतियों को उपलब्धि माना है तथा इस का श्रेय अपनी प्रिया को दिया है ।
शिल्प-सौन्दर्य :
1) सहज, सरल एवं प्रवाहपूर्ण खड़ीबोली हिन्दी का प्रयोग किया गया है ।
2) कविता में कहीं-कहीं संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का भी प्रयोग हुआ है ।
3) संबोधन शैली का प्रयोग हुआ है ।
4) पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार प्रयोग किया गया है ।
पल-पल, भर-भर
5) अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है ।
छटपटाती छाती, शरीर पर, चेहरे पर,
6) प्रश्न और संदेह अलंकार का प्रयोग हुआ है ।
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है ?
7) ’मुसकाता चाँद .....चेहरा है’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है ।
8) ’ममता के बादल’ और ’तुमसे ...उजाला’ में रूपक अलंकार है ।
विषयवस्तु से संबंधित लघु उत्तरात्मक प्रश्न :-
प्रश्न 1. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में प्रयुक्त ‘गरबीली गरीबी यह ...........भीतर की सरिता’ ममता के बादल ......... बहलाती सहलाती आत्मीयता’ ‘मीठे पानी का सोता’ जैसे प्रयोगों के भाव और उनकी सटीकता पर अपने विचार लिखिए |
उत्तर- गरीबीली गरीबी में प्रायः मनुष्य हताश निराश और दुखी होकर अपना धैर्य खो बैठता है | तब उसका जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण हो जाता है | यहाँ कवि ने गरीबी को गरबीली बताकर उसे आत्मसम्मान का रूप दे दिया है |भीतर की सरिता इस कथन का तात्पर्य यह है की हृदय के अंदर प्रेम भाव की नदी बहती है |यहाँ भावनाओं के प्रवाह को ही सरिता कहा गया है | कवि के हृदय में भावनाओ का अंत: प्रवाह है |ममता के बादल – कवि के ऊपर ममता भरे बादल बरसाती है |
प्रश्न 2. सहर्ष स्वीकारा है कविता किसको और क्यों स्वीकार करने की प्रेरणा देती है ?
उत्तर- मुक्तिबोध की यह कविता अपनी सुख –दुख की अनुभूतियों ,गर्वीली गरीबी ,प्रौढ़ विचार,व्यक्तिगत दृढ़ता ,जीवन के खट्टे –मीठे अनुभव ,प्रेमिका का प्रेम व नूतन भावनाओं के वैभव को सहर्ष स्वीकार करने की प्रेरणा देती है | इससे व्यक्ति का जीवन सहज होता है | वह स्वयं को प्रिय से जुड़ा हुआ पाता है |
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