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Saturday, 4 April 2020

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1. हरिवंश राय बच्चन
(आत्मपरिचय / दिन जल्दी-जल्दी ढलता है)

काव्य – सार (आत्मपरिचय):-
इस कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपने स्वभाव और व्यक्तित्त्व के बारे में बताया है। कवि का इस संसार से प्रीति-कलह का संबंध है क्योंकि वह जग जीवन से जुड़ा भी है और इससे अलग भी है। वह इस संसार का भार (जिम्मेदारियाँ) लिए फिरता है लेकिन उसके जीवन में प्यार की भावना भी है। कवि कहता है कि यह संसार लोगों को कष्ट ही देता है फिर भी वह संसार से अलग नहीं रह सकता है। इस कविता में कवि ने समाज एवं परिवेश से ‘प्रेम एवं संघर्ष’ का संबंध निभाते हुए जीवन में सामंजस्य स्थापित करने पर ज्यादा बल दिया है। कवि अपनी मस्ती में मस्त रहता है और कभी भी इस जग की परवाह नहीं करता है क्योंकि संसार अपने ढ़ंग से लोगोँ को जीवन जीने का तरीका बताता है। कवि का अपना व्यक्तित्त्व है और जग का अपना। दोनों में कोई नाता नहीं है। इस कविता में ‘प्रीति-कलह’ और ‘शीतल वाणी’ में आग का विरोधाभास दिखाया गया है क्योंकि व्यक्ति और समाज का सम्बंध ‘प्रेम और संघर्ष’ की तरह ही है। ‘नादान वही है हाय, जहाँ पर दाना’ पंक्ति के माध्यम से कवि सत्य की खोज के लिए ‘अहंकार को त्याग कर नई सोच अपनाने पर जोर दे रहा है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है :-
‘एक गीत’ शीर्षक कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन कहते हैं कि समय हमेशा चलता रहता है और उसके बीतने का अहसास हमें लक्ष्य-प्राप्ति के लिए और अधिक प्रयास करने की प्रेरणा देता है। रास्ते में चलने वाला राहगीर यही सोचकर अपनी मंजिल की ओर तेज गति से कदम बढ़ाता है कि कही रास्ते में ही रात ना हो जाए। पक्षियों को भी दिन बीतने के साथ यह अहसास होता है कि उनके बच्चें भोजन पाने की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे। यह सोचकर चिड़ियाँ के पंखों में तेजी आ जाती है। इन पंक्तियों में आशावादी स्वर है। आशा की किरण जीवन की जड़ता को समाप्त कर देती है और पाठकों को सकारात्मक सोच तक ले जाने का प्रयास करती हैं। लेकिन कवि का जीवन तो एकाकी है और घर पर उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई भी नहीं है। घर पर ऐसा कोई भी नहीं है जो कि उसके लिए व्याकुल होगा और इसी निराशा के कारण कवि का मन कुंठा से भर जाता है, उसकी गति मंद पड़ जाती है। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने अपने जीवन के अकेलेपन की पीड़ा को वाणी दी है।



कविता: आत्मपरिचय :- (अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्यबोध संबंधी)
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न:-
“मैं निज उर के उदगार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए  फिरता हूँ;
है यह अपूर्ण संसार न मुझ को भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।”
क. "निज उर के उदगार" से कवि का क्या आशय है?
उत्तर- ‘निज उर के उद्गार’ से कवि का आशय है- प्रेम से परिपूर्ण वाणी। यह वाणी वह अपने प्रिय को देना चाहता है।
ख. कवि को संसार प्रिय क्यों नहीं है?
उत्तर- संसार में प्रेम और आत्मीयता का कोई स्थान नहीं है। संसार में पूर्णता नहीं है, इसलिए कवि को संसार प्रिय नहीं है।
ग. संसार की विषमताओं के बीच भी कवि कैसे जी रहा है?
उत्तर- संसार में बहुत कष्ट हैं। संसार से किनारा करके ही कवि खुशी से जी रहा है।
सौंदर्यबोध संबंधी प्रश्न:-
“मैं और जग और, कहाँ का नाता
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोडा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!”

क. काव्यांश का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- प्रस्तुत काव्यांश हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’कविता से लिया गया है,जिसमे कवि का दार्शनिक, मौलिक तथा कल्पनामयी रूप सामने आया है। इस काव्यांश में स्वयँ और जग के मध्य प्रेम और संघर्ष रूपी संबंधोँ के बारे में बात की गई है।
ख. प्रस्तुत काव्यांश की शिल्प संबंधी कोई दो विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर- ‘कहाँ का नाता’ में प्रश्नालंकार का प्रयोग है।
  ‘बना-बना’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

कविता की विषयवस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर :-
1. ‘आत्मपरिचय’ कविता दुनिया के साथ कवि की प्रीति-कलह की कविता है – कथन पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर- ‘आत्मपरिचय’ शीर्षक कविता में कवि अपना परिचय देता है और कहता है कि वह समाज का अंग होते हुए भी उससे अलग है। स्वयं को जानना संसार को जानने से अधिक कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता कुछ खट्टा-मीठा तो होता ही है, पर जगजीवन से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं है। कवि कहता है कि इस जग से हमारा संबंध द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक रूप में होता है। कवि दुनिया में रहकर इसी से संघर्ष करता है। इस जीवन को अनेक विरोधाभासों के मध्य जीना पडता है। कवि इन विरोधाभासों के साथ सामंजस्य बिठाते हुए जीवन में मस्ती उतार लेता है। इसीलिए कवि इसे दुनिया के साथ प्रीति कलह की कविता कहता है।
2. मैं और, और जब और कहाँ का नाता- पंक्ति में और शब्द की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- यहाँ ’और’ शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। पहले ‘और’ का अर्थ है- अन्य या भिन्न। पहले और तीसरे ‘और’ का अर्थ है- विशेष व सांसारिकता में डूबा हुआ आम मनुष्य। दूसरे ‘और’ का तात्पर्य है ‘तथा’ । इस प्रकार यह शब्द अनेकार्थी शब्दों के रूप में प्रयुक्त हुआ है।
3. शीतल वाणी में आग के होने का क्या अभिप्राय है ?
अथवा
कवि क्यों कहता है- शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ?
उत्तर- ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरने’ का अभिप्राय है यह है कि उसकी वाणी में शीतलता भले ही दिखाई देती हो, पर उसमे आग जैसे जोशीले विचार भी भरे रहते हैं। उसके दिल में इस जग के प्रति विद्रोह की भावना तो है फिर भी वह जोश में होश नहीं खोता है। वह अपनी वाणी में शीतलता बनाए रखता है। यहाँ आग से अभिप्राय कवि की आंतरिक पीडा से है। वह अपने किसी प्रिय के वियोग की वेदना को ह्रदय में समाए फिरता है और यही वियोग की वेदना उसे निरंतर जलाती रहती है।पंक्ति ‘शीतल वाणी में आग’ में भले ही विरोधाभास है किंतु यह विरोधमूलक न होकर केवल विरोध का आभास मात्र ही है।
4. कविता में कवि एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करता है और दूसरी  ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ की बात की गई है- विपरीत से लगने वाले इन कथनों का क्या आशय है?
उत्तर- प्रस्तुत कविता आत्मपरिचय में हरिवंशराय बच्चन ने कहा है कि वह स्वयं को जग से जोडकर भी और जग से अलग भी महसूस करता है। वह इस बात को भली प्रकार से जानता है कि जग-जीवन से पूरी तरह से निरपेक्ष नहीं रहा जा सकता है। वह दूनिया से कटकर नहीं रह सकता। वह भी इसी दूनिया का एक अंग है। इसके बावजूद भी कवि जग की ज्यादा परवाह नहीं करता है। वह संसार के बताए इशारोँ पर नहीं चलता है। उसका अपना अलग व्यक्तित्त्व है और वह अपने मन के भावों को निडरता से प्रकट करता है कवि की स्थिति ऐसी है कि ‘मैं दुनिया में हूँ, पर दुनिया का तलबगार नहीं हूँ’
5. ‘जहाँ दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं’- कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर- इस कविता में कवि ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योकि यह संसार स्वार्थी है और इसे जहाँ कुछ मिलता है वहीं जम जाता है। प्रस्तुत कविता में दाना का अर्थ अनाज भी है और चतुर व बुद्धिमान लोग भी। इस दृष्टि से इसका अर्थ हुआ कि जहाँ पर बुद्धिमान और चतुर लोग रहते हैं वहीं पर कुछ नादान (मूर्ख) भी रहते हैं। कवि कहना चाहते हैं कि इस संसार में सभी प्रकार के व्यक्ति रहते हैं कवि के अनुसार सांसारिक मोह-माया में लगा रहने वाला व्यक्ति ही नादान है और स्वविवेक से काम लेने वाला व्यक्ति ही चतुर है। फिर भी विरोधी होते हुए सभी प्राणी एक साथ सुखपूर्वक रहते हैं

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