कहानी की रचना प्रक्रिया से संबंधित प्रश्नोंत्तर
प्रश्न 1.कहानी क्या है?
उत्तर- "किसी घटना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध ब्यौरा, जिसमें परिवेश हो, द्वंद्वात्मकता हो, कथा का क्रमिक विकास हो, चरम उत्कर्ष का बिंदु हो, उसे कहानी कहा जाता है।"
प्रश्न 2. कहानी का मानव जीवन से जुड़ाव किस प्रकार है?
उत्तर- वास्तव में प्रत्येक आदमी में अपने अनुभव बांटने और दूसरों के अनुभव जाने के प्राकृतिक इच्छा होती है। हम अपनी बातें दूसरों को सुनाना और उनकी बातें सुनना चाहते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि हर व्यक्ति में कहानी लिखने का मूल भाव निहित होता है, भले ही मनुष्य में इस भाव का विकास कम हो या ज़्यादा।
प्रश्न 3. कहानी के इतिहास के विषय में बताइए।
उत्तर- वास्तव में कहानी का इतिहास मानव इतिहास जितना ही पुराना है। क्योंकि कहानी मानव स्वभाव और प्रकृति का हिस्सा है। अतः धीरे-धीरे कहानी कहने की कला का विकास होने लगा और कथावाचक कहानियां सुनाने लगे। यह कहानियां किसी घटना, युद्ध, प्रेम और प्रतिशोध से जुड़ी होती थीं।
प्रश्न 4. कहानियों की लोकप्रियता और उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्राचीन काल में इससे बड़ा संचार का कोई साधन न होने के कारण मौखिक कहानियां बहुत लोकप्रिय होती थीं। धर्म प्रचारकों ने अपने सिद्धांत और विचारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए कहानी का सहारा लिया। कालांतर में शिक्षा देने के लिए भी लोगों ने इस विधा का प्रयोग किया। 'पंचतंत्र' में लिखी कहानियों का उद्देश्य शिक्षा देना ही था। बाद में कहानी का उद्देश्य विकसित होता गया।
प्रश्न 5. कहानी का कथानक किसे कहते हैं?
उत्तर- कहानी के केंद्रीय बिंदु को कथानक कहते हैं। यह कहानी का संक्षिप्त रूप होता है जिसमें प्रारंभ से अंत तक कहानी की सभी घटनाओं और पात्रों का उल्लेख होता है।
प्रश्न 6. कथानक के अंगों के विषय में बताइए।
उत्तर- कथानक का पूरा स्वरूप होता है। इसके तीन अंग होते हैं- प्रारंभ, मध्य और अंत।अर्थात कथानक का पूरा स्वतंत्र रूप होता है। कथानक न केवल आगे बढ़ता है बल्कि उसमें द्वंद के तत्व भी होते हैं जो कहानी को रोचक बनाए रखते हैं। द्वंद के तत्वों से अभिप्राय यह है कि परिस्थितियों में इस काम के रास्ते में यह बाधा है। यह बाधा समाप्त हो गई तो आगे कौन सी बाधा आ सकती हैं? या हो सकता है एक बाधा समाप्त हो जाने या निष्कर्ष पर पहुंच जाने के कारण कथानक पूरा हो जाए। कथानक की पूर्णता की शर्त यही होती है कि कहानी नाटकीय ढंग से अपने उद्देश्य को पूरा करने के बाद समाप्त हो। अंत तक कहानी में रोचकता बनी रहनी चाहिए। यह रोचकता द्वंद के कारण ही बनी रह पाएगी।
प्रश्न 7. कथानक के देशकाल और स्थान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- हर घटना, पात्र, समस्या का अपना देशकाल और स्थान होता है। कथानक का स्वरूप बन जाने के बाद कहानीकार कथानक के देशकाल और स्थान को पूरी तरह समझ लेता है क्योंकि यह कहानी को प्रमाणिक और रोचक बनाने के लिए बहुत आवश्यक है। जैसे, यदि अस्पताल का कथानक है तो अस्पताल का पूरा परिवेश, ध्वनियां, लोग, कार्य-व्यापार और लोगों के पारस्परिक संबंध, नित्य घटने वाली घटनाएं आदि का जानना आवश्यक है।
प्रश्न 8. कथानक के पात्र का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- देशकाल, स्थान और परिवेश के बाद कथानक के पात्र पर विचार करना चाहिए। हर पात्र का अपना स्वरूप, स्वभाव और उद्देश्य होता है। कहानीकार के सामने पात्रों का स्वरूप स्पष्ट होना चाहिए। इससे पात्रों का चरित्र चित्रण करने एवं संवाद के लेखन में आसानी होती है। पात्रों का चित्रण कहानी की एक महत्वपूर्ण बुनियादी शर्त है। कौन से पात्र की किस परिस्थिति में क्या प्रतिक्रिया होगी। यह भी कहानीकार को पता होना चाहिए। असल में कहानीकार और उसके पात्रों का निकटतम संबंध होना चाहिए।
प्रश्न 9.पात्रों का चरित्र-चित्रण किस प्रकार होना चाहिए?
उत्तर- पात्रों का चरित्र-चित्रण करने अर्थात उन्हें कहानी में कथानक की आवश्यकता अनुसार अधिक से अधिक प्रभावशाली ढंग से लाने के कई तरीके हैं। इनमें से एक है पात्रों के गुणों का बखान करना। जैसे श्यामू बड़ा परोपकारी हैं। वह दूसरों के दुख नहीं देख सकता है। चरित्र-चित्रण का यह तरीका प्रभावहीन और आउटडेटेड है। पात्रों का चरित्र-चित्रण उनके क्रियाकलापों संवादों तथा दूसरे के द्वारा बोले गए संवादों के माध्यम से ही प्रभावशाली होता है। जैसे- श्यामू ने दवा की दुकान से उस आदमी को निराश होते देखा, जिसके पास पैसे कम थे। उसने दुकानदार को पैसे दिए और दवा लेकर उस व्यक्ति को दे दिया।
प्रश्न 10. पात्रों के संवाद कैसे होनी चाहिए?
उत्तर- कहानी में पात्रों के संवाद बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। संवाद के बिना पात्र की कल्पना मुश्किल है। संवाद ही कहानी के पात्र को स्थापित व विकसित करते हैं और कहानी को गति देते हैं, आगे बढ़ाते हैं। पात्रों के संवाद लिखते समय यह अवश्य ध्यान में रहना चाहिए कि संवाद पात्रों के स्वभाव और पूरी पृष्ठभूमि के अनुकूल हो। वह उसके विश्वासों, आदर्शों तथा परिस्थितियों के भी अनुकूल होने चाहिए। संवाद लिखते समय लेखक गायब हो जाता है और पात्र स्वयं संवाद बोलते हैं। उदाहरण के लिए किसी मज़दूर के संवाद ऐसे होनी चाहिए कि श्रोता को पता चल जाए कि कौन बोल रहा है? यह आदमी क्या करता है? इसकी पृष्ठभूमि क्या है? इत्यादि। संवाद छोटे, स्वाभाविक और उद्देश्य के प्रति सीधे लक्षित होने चाहिए। संवादों का अनावश्यक विस्तार बहुत-सी जटिलताएं पैदा कर देता है।
प्रश्न 11. कहानी का चरमोत्कर्ष कैसा होना चाहिए?
उत्तर- इसे कहानी का क्लाइमेक्स भी कहा जाता है। इसका चित्रण बहुत ही सावधानी से करना चाहिए क्योंकि कहानी के पात्र की अतिरिक्त भावाभिव्यक्ति चरम उत्कर्ष के प्रभाव को कम कर देती है। इस बारे में सबसे अच्छा यह होता है कि चरमोत्कर्ष पाठक को स्वयं सोचने और लिखने के लिए प्रेरित करें। लेकिन पाठक को यह भी लगे कि उसे स्वतंत्रता दी गई और उसने जो निर्णय निकालें हैं, उसके अपने हैं।
प्रश्न 12. कथानक में द्वंद के महत्व को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर- कथानक में द्वंद का अपना विशेष योगदान होता है। दोनों ही कथानक को आगे बढ़ाते हैं। यदि दो व्यक्ति किसी बात पर सहमत हैं, तो बात आगे नहीं बढ़ सकती। परंतु असहमति होने पर बातचीत सरलता से आगे बढ़ जाती है। कहानी का कथानक द्वंद के बिंदु को जितना स्वस्थ रखेगा कहानी भी उतनी ही सफलता से आगे बढ़ेगी।
(i) फीचर लेखन
समकालीन घटना तथा किसी भी क्षेत्र विशेष की विशिष्ट जानकारी के सचित्र तथा मोहक विवरण को फीचर कहते हैं |फीचर मनोरंजक ढंग से तथ्यों को प्रस्तुत करने की कला है | वस्तुत: फीचर मनोरंजन की उंगली थाम कर जानकारी परोसता है| इस प्रकार मानवीय रूचि के विषयों के साथ सीमित समाचार जब चटपटा लेख बन जाता है तो वह फीचर कहा जाता है | अर्थात- “ज्ञान + मनोरंजन = फीचर” |
Great...Dhanaywad sir🙏
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