दो सुमन समर्पित करता हूँ,
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दो सुमन समर्पित करता हूँ,
अपना मन अर्पित करता हूँ
मां सरस्वती चरणों में तेरे ,
यह जीवन अर्पित करता हूँ।
तेरी कृपा से ज्ञान-देवी
मूर्ख भी ज्ञानी बनता है,
दया-दृष्टि पड़े जिस पर
सब की हैरानी बनता है,
तेरी भक्ति के बीज मैया,
मैं खुद में विकसित करता हूँ,
दो सुमन समर्पित करता हूंँ
अपना मन अर्पित करता हूँ।
अब तक जिया हूँ मैया
मैं जग की ठोकर खा-खाकर,
बिन ज्ञान, नहीं सम्मान मिला
मैं देख चुका दर जा-जाकर,
अंत शरण में तेरी मैया
मैं स्वयं को शरणित करता हूँ
दो सुमन समर्पित करता हूँ,
अपना मन अर्पित करता हूँ।
है ज्ञान-सूर्य अंबा मेरी
मुझमें ज्ञान-दीप जला दो तुम,
अंधकार जितना मुझ में
उसको तो दूर भगा दो तुम,
मन की बात बता तुझको
मैं मन को हर्षित करता हूँ,
दो सुमन समर्पित करता हूँ
अपना मन अर्पित करता हूँ।
मां सरस्वती चरणों में तेरे
यह जीवन अर्पित करता हूँ,
यह जीवन अर्पित करता हूँ।
— घनश्याम शर्मा
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