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Friday, 24 April 2020

दसवीं - मानवीय करुणा की दिव्य चमक - सर्वेश्वर दयाल Saxena

प्रश्न अभ्यास 

1. फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी ?
उत्तर
देवदार का वृक्ष आकार में लंबा-चौड़ा होता है तथा छायादार भी होता है।फ़ादर बुल्के का व्यक्तित्व भी कुछ ऐसा ही है। जिस प्रकार देवदार का वृक्षवृहदाकार होने के कारण लोगों को छाया देकर शीतलता प्रदान करता है। ठीक उसी प्रकार फ़ादर बुल्के भी अपने शरण में आए लोगों को आश्रय देते थे। तथा दु:ख के समय में सांत्वना के वचनों द्वारा उनको शीतलता प्रदान करते थे।
2. फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैंकिस आधार पर ऐसा कहा गया है?

उत्तर

फ़ादर बुल्के को भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग इसलिए कहा गया हैक्योंकि वे बेल्जियम से भारत आकर यहाँ की संस्कृति में पूरी तरह रच-बस गए थे। वे सदा यह बात कहते थे कि अब भारत ही मेरा देश है। भारत के लोग ही उनके लिए सबसे अधिक आत्मीय थे। वे भारत की सांस्कृतिक परंपराओं को पूरी तरह आत्मसात कर चुके थे। फ़ादर हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए बहुत से प्रयास किये तथा हिंदी के समृद्धि के लिए ''ब्लू-बर्ड '' तथा ''बाइबिल'' का हिंदी रूपान्तरण भी किये। वे भारतीय संस्कृति के अनुरूप ही वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ओतप्रोत थे।

3. पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फ़ादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है?
उत्तर
फ़ादर बुल्के के हिन्दी प्रेम के कई प्रसंग इस पाठ में आये हैंजैसे - इलाहबाद में फादर बुल्के 'परिमलनाम की साहित्यिक संस्था से जुड़े थे। वेवहाँ हिन्दी भाषा व साहित्य से सम्बंधित गोष्ठियों में सम्मिलित होते हुए गंभीर बहस करते थे। वे लेखकों की रचनाओं पर अपनी स्पष्ट राय और सुझाव भी देते थें। वे सड़क पर जा रहे लेखकों के पास साइकिल से उतर कर पहुँच जाते और उनकी रचनाओं पर बात-चीत करते। फ़ादर बुल्के ने हिन्दी में शोध भी कियाजिसका विषय था - "रामकथा: उत्पत्ति और विकास।" उन्होंने एक नाटक "ब्लू - बर्ड" का हिन्दी में "नील - पंछी" के नाम से अनुवाद भी किया। फ़ादर बुल्के राँची के सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में हिन्दी तथा संस्कृति विभाग के विभागाध्यक्ष हो गए। वहीं उनहोंने अंग्रेज़ी - हिन्दी कोश तथा बाइबिल का अनुवाद भी तैयार किया। फ़ादर बुल्के को हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की बड़ी चिंता थी। वे हर मंच पर इस चिंता को प्रकट करते तथा इसके लिए अकाट्य तर्क देते। वे हिन्दी वालों द्वारा ही हिन्दी की उपेक्षा पर दुखी हो जाते।

4. इस पाठ के आधार पर फ़ादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर
फ़ादर बुल्के एक निष्काम कर्मयोगी थे। वे लम्बेगोरेभूरी दाढ़ी व नीलीआँखों वाले चुम्बकिय आकर्षण से युक्त संन्यासी थे। अपने हर प्रियजन के लिए उनके ह्रदय में ममता व अपनत्व की अमृतमयी भावना उमड़ती रहती थी। उनके व्यक्तित्व में मानवीय करुणा की दिव्य चमक थी। वे अपने प्रिय जनों को आशीषों से भर देते थे। वे भारत को ही अपना देश मानते हुए यहीं की संस्कृति में रच -बस गए थे। वे हिंदी के प्रकांड विद्वान थे एवं हिंदी के उत्थान के लिए सदैव तत्पर रहते थे। उन्होंने हिंदी में पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त ''ब्लू-बर्ड ''ताठा ''बाइबिल ''का हिंदी अनुवाद भी किया। फ़ादरबुल्के अपने स्नेहीजनों के व्यक्तिगत सुख -दुख का सदा ध्यान रखते थे। वे रिश्ते बनाते थे ,तो तोड़ते नहीं थे। उनके सांत्वना भरे शब्दों से लोगों का हृदय प्रकाशित हो उठता था। अपने व्यक्तित्व की महानता के कारण ही वे सभी की श्रद्धा के पात्र थे। 

5. लेखक ने फ़ादर बुल्के को 'मानवीय करुणा की दिव्य चमकक्यों कहा है?

उत्तर 

लेखक इ फ़ादर बुल्के को ''मानवीय करूणा के दिव्य चमक ''इसलिए कहा हैक्योंकि फ़ादर के हृदय में मानव मात्र के प्रति करूणा की असीम भावनाविद्दमान थी। उनके मन में अपने हर एक प्रियजन के लिए ममता और अपनत्व का भावना उमड़ता रहता था। वे लोगों को अपने आशीषों से भर देते थे।उनकी आँखों की चमक में असीम वात्सल्य तैरता रहता था। वे लोगों के सुख -दुख में शामिल होकर उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करते थे तथा उन्हें सांत्वना भी देते थे। लोगों का कष्ट उनसे देखा नहीं देखा जाता था।
6. फ़ादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की हैकैसे?
उत्तर
प्राय: संन्यासी सांसारिक मोह - माया से दूर रहते हैं । जबकि फ़ादर ने ठीकउसके विपरीत छवि प्रस्तुत की है।परंपरागत संन्यासियों के परिपाटी कानिर्वाहन न करवे सबके सुख - दुख मे शामिल होते। एक बार जिससे रिश्ता बना लेते उसे कभी नहीं तोड़ते । सबके प्रति अपनत्व,प्रेम और गहरा लगाव रखते थे । लोगों के घर आना - जाना नित्य प्रति काम था। इस आधार पर कहा जा सकता है कि फ़ादर बुल्क़े ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग छवि प्रस्तुत की है।
7. आशय स्पष्ट कीजिए -

(
क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि फ़ादर बुल्के की मृत्यु पर वहाँ उपस्थित नमआँखों वाले व्यक्तियों के नामों का उल्लेख करना सिर्फ स्याही को बरबाद करना है। कहने का आशय है कि आँसू बहाने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि उसे गिनना संभव नहीं था।
(ख) फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि जिस प्रकार एक उदास शांत संगीत को सुनते समय हमारा मन गहरे दुःख में डूब जाता हैवातावरण में एक अवसाद भरी निस्तब्ध शांति छा जाती है और हमारी आँखें अपने-आप ही नम हो जाती हैंठीक वैसी ही दशा फ़ादर बुल्के को याद करते समय हो जाती है।
पृष्ठ संख्या: 85
रचना और अभिव्यक्ति
8. आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा 
उत्तर
हमारे विचार से फ़ादर बुल्क़े ने भारत के प्राचीन एवं गौरवपूर्ण इतिहास तथायहाँ की सभ्यता-संस्कृतिजीवन-दर्शनसत्यअहिंसाप्रेमधर्मत्याग तथा ऋषि-मुनियों से प्रभावित होकर ही भारत आने का मन बनाया होगा।
9. 'बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि - रेम्सचैपल।' - इस पंक्ति में फ़ादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ अभिव्यक्त होती हैंआप अपनी जन्मभूमिके बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर
फ़ादर कामिल बुल्के की जन्मभूमि 'रेम्सचैपलथी। फ़ादर बुल्के के इस कथन से यह स्पष्ट है कि उन्हें अपनी जन्मभूमि से बहुत प्रेम था तथा वे अपनीजन्मभूमि को बहुत याद करते थे।
मनुष्य कहीं भी रहे परन्तु अपनी जन्मभूमि की स्मृतियाँ हमेशा उसके साथ रहती है। हमारे लिए भी हमारी जन्मभूमि अनमोल है। हमें अपनी जन्मभूमि की सभी वस्तुओं से प्रेम है। यहीं हमारा पालन-पोषण हुआ। अत: हमें अपनी मातृभूमि पर गर्व है। हम चाहें जहाँ भी रहे परन्तु ऐसा कोई भी कार्य नहीं करेंगे जिससे हमारी जन्मभूमि को अपमानित होना पड़े।
भाषा अध्यन
12. निम्नलिखित वाक्यों में समुच्यबोध छाँटकर अलग लिखिए -
(क) तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे।
(ख) माँ ने बचपन में ही घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया।
(ग) वे रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे।
(घ) उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।
(ङ) पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था लेकिन वो स्मृति में अकसर डूब जाते।
उत्तर

(
क) और
(
ख) कि
(
ग) तो
(
घ) जो
(
ङ) लेकिन
सार

प्रस्तुत पाठ में लेखक ने फ़ादर बुल्के के जीवन का चित्रांकन किया है। फ़ादरबुल्के का जन्म बेल्जियम के रेम्सचैपल में हुआ था। वे इंजीनियरिंग की पढ़ाईछोड़ने के बाद पादरी बनने की विधिवत शिक्षा ली। भारतीय संस्कृति के प्रभाव में आकर भारत आ गए। बुल्के के पिता व्यवसायी थेएक भाई पादरी था तथा एक परिवार के साथ रहकर काम करने वाला था। एक बहन भी थी जिसने बहुत दिन बाद शादी की। माँ की उन्हें बहुत याद आती थीउनकी चिट्ठियां अक्सर उनके पास आती रहती थीं। उन पत्रों को वो अपने मित्र रघुवंश को हमेशा दिखाते रहते थे।
भारत में उन्होंने जिसेट संघ में दो साल तक पादरियों के बीच रहकर धर्माचारकी शिक्षा प्राप्त की। 9-10 वर्ष दार्जिलिंग में रहकर अध्यन कार्य किया।कोलकाता में रहते हुए बी.ए. तथा इलाहाबाद से एम.ए. की परीक्षाएँ उत्तीर्णकी। हिंदी से उनका अत्याधिक लगाव रहा। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय केहिंदी विभाग से सन 1950  शोध प्रबंध 'रामकथाःउत्पत्ति और विकासलिखा। रांची में सेंट जेवियर्स कॉलेज के हिंदी तथा संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष के रूप में उन्होंने काम किया। बुल्के ने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक 'ब्लू बर्ड'का रूपांतर 'नीला पंक्षीके नाम से किया। बाइबिल का हिंदी अनुवाद किया तथा एक हिंदी-अंग्रेजी कोश भी तैयार किया। वे भारत में रहते हुए दो-चार बार ही बेल्जियम गए।
लेखक का परिचय बुल्के से इलाहबाद में हुआ जो की दिल्ली आने पर भी बना रहा। लेखक उनके महान व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थे जिससे उनकेपारिवारिक समबन्ध बन गए। वे एक बार रिश्ता बनाते तो तोड़ते नहीउनकी चिंता हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की थी। वे हिंदी भाषियों को हीहिंदी की उपेक्षा करने पर झुंझलाते और दुखी हो जाते। लेखक के पत्नी और बेटे की मृत्यु पर बुल्के द्वारा सांत्वना देती हुई पंक्ति ने लेखक को अनोखीशान्ति प्रदान की।
फादर बुल्के की मृत्यु दिल्ली में जहरबाद से पीड़ित होकर हुई। अंतिम समय में उनकी दोनों हाथ की अंगुलियाँ सूज गई थीं। दिल्ली में रहकर भी लेखक को उनकी बीमारी और उपस्थिति का ज्ञान ना होने से अफ़सोस हुआ। 18 अगस्त, 1982 की सुबह दस बजे कश्मीरी गेट निकलसन कब्रगाह में उनका ताबूत एक नीली गाडी से रघुवंश जी के बेटेपरिजन राजेश्वर सिंह और कुछ पादरियों ने उतारा और अंतिम छोर पर पेड़ों की घनी छाया से ढके कब्र तक ले जाया गया। वहाँ उपस्थित लोगों में जैनेंद्र कुमारविजयेंद्र स्नातकअजित कुमारडॉ निर्मला जैनइलाहबाद के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ सत्यप्रकाशडॉ रघुवंशमसीही समुदाय के लोग और पादरी गण थे। फादर बुल्के के मृत शरीर को कब्र पर लिटाने के बाद रांची के फ़ादर पास्कल तोयना ने मसीही विधि से अंतिम संस्कार किया और सबने श्रद्धांजली अर्पित की। लेखक के अनुसार फ़ादर ने सभी को जीवन भर अमृत पिलायाफिर भी ईश्वर ने उन्हें जहरबाद द्वारा मृत्यु देकर अन्याय किया। लेखक फ़ादर को ऐसे सघन वृक्ष की उपमा देता है जो अपनी घनी छायाफल,फूल और गंध से सबका होने के बाद भी अलग और सर्वश्रेष्ठ था।
लेखक परिचय
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
इनक जन्म 1927 में जिला बस्तीउत्तर प्रदेश में हुआ। इनकी उच्च शिक्षाइलाहबाद विश्वविधयालय से हुई।  अध्यापकआकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसरदिनमान में उपसंपादक और पराग के संपादक रहे। ये बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे। सन 1983 में इनका आकस्मिक निधन हो गया।
प्रमुख कार्य
कविता संग्रह - काठ की घंटियाँकुआनो नदीजंगल का दर्द और खुटियों पर टंगे लोग।
उपन्यास - पागल कुत्तों का मसीहा सोया हुआ जल।
कहानी संग्रह- लड़ाई
नाटक - बकरी
बाल साहित्य - भौं भौं खौं खौंबतूता का जूतालाख की नाक।
लेख संग्रह - चर्चे और चरखे।
कठिन शब्दों के अर्थ

• 
जहरबाद- गैंग्रीनएक तरह का जहरीला और कष्टसाध्य फोड़ा
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देहरी - दहलीज
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निर्लिप्त - आसक्ति रहितजो लिप्त ना हो
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आवेश - जोश
• 
रूपांतर - किसी वास्तु का बदला हुआ रूप
• 
अकाट्य - जो कट ना सके
• 
विरल - काम मिलने वाली
• 
करील - झाडी के रूप में उगने वाला एक कँटीला और बिना पत्ते का पौधा
• 
गौरीक वसन - साधुओं द्वारा धारण किया जाने वाला गेरुआ वस्त्र
• 
श्रद्धानत - प्रेम और भक्तियुक्त पूज्य भाव
• 
रगों - नसों
• 
अस्तित्व - स्वरुप
• 
चोगा - लम्बा ढीला-ढाला आगे से खुला मर्दाना पहनावा
• 
साक्षी - गवाह
• 
गोष्ठियाँ - सभाएँ
• 
वात्सल्य - ममता का भाव
• 
देह - शरीर
• 
उपेक्षा- ध्यान न देना
• 
अपनत्व - अपनाना
• 
सँकरी - कम  चौड़ीपतली
• 
संकल्प  इरादा

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