नाटक की रचना प्रक्रिया से संबन्धित प्रश्न - उत्तर
पाँच अंकों के प्रश्न उत्तर
1. नाटक किसे कहते हैं?
उत्तर- भारतीय काव्य शास्त्र में नाटक को दृश्य काव्य कहा गया है | नाटक में संवाद होते हैं। अभिनेयता का गुण ही नाटक को साहित्य की अन्य विधायों से अलग करता है | एक निर्देशक द्वारा निर्देशित, विभिन्न अभिनेतायों द्वारा अभिनीत तथा अन्य रंगकर्मियों की सहायता से इसे दर्शकों के लिए रंगमंच पर प्रस्तुत किया जाता है।
2. नाटक और साहित्य की अन्य विधायों में क्या अंतर है ?
उत्तर- साहित्य में कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध आदि अनेक विधाएँ आती हैं। नाटक भी इन्हीं विधायों के समान साहित्य के अंतर्गत आता है। किन्तु नाटक में कुछ निजी विशेषताएं होती हैं। जहां साहित्य की अन्य विधाएँ केवल पढ़ने या सुनने तक ही सीमित हैं, वही नाटक पढ़ने, सुनने के साथ – साथ देखने के तत्व को भी अपने अंदर समेटे है उसका यही गुण उसे साहित्य की अन्य विधायों से अलग करता है|
3 .नाटक के पात्र कैसे होने चाहिए ?
उत्तर- नाटक में चित्रित पात्र जीवन से जुड़े हुए तथा अपने आस पास के परिवेश के ही होने चाहिए। नाटक में इस प्रकार के पात्र नहीं होने चाहिए जो सपाट, सतही अथवा एक विशेष टाइप के हों, नाटक में चित्रित पात्र अच्छे और बुरे दोनों प्रकर के होने चाहिए। जिस प्रकार रोज़मर्रा की जिंदगी में किसी व्यक्ति को सिर्फ़ अच्छा या बुरा नहीं कह सकते उसी तरह नाटक की कहानी में भी चरित्रों के विकास में इस बात का ध्यान रखा जाये कि वे स्थितियों के अनुसार अपनी क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं को व्यक्त करते चलें |
4 .नाटक की भाषा शैली कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर- नाटक की रचना मुख्य रूप से रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिए की जाती है। इस लिए इसकी भाषा सहज, स्वाभाविक और प्रसंग के अनुकूल होनी चाहिए। यदि नाटक में चित्रित परिवेश पौराणीक है तो उसकी भाषा तत्सम प्रधान हो सकती है। इसी प्रकार से आधुनिक काल के नाटकों में खड़ी बोली के साथ– साथ अँग्रेजी, उर्दू , फारसी आदी भाषायों के शब्दों का प्रयोग हो सकता हैं।
5.नाटक के विभिन्न तत्वों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर- नाटक साहित्य की प्राचीन विधा है| वस्तुत नाटक साहित्य की वह विधा है जिसकी सफलता का परीक्षण रंगमंच पर होता है| किन्तु नाटक का मंचन युग विशेष की अभिरुचि पर निर्भर होता है| इसलिए समय के साथ साथ नाटक के स्वरूप में परिवर्तन होता रहा है| आज वर्तमान समय की अभिरुचियों के अनुरूप नाटक के विभिन्न तत्व निम्नलिखित हैं –
● समय का बंधन
● शब्द
● कथ्य
● संवाद
● शिल्प
6 .नाटक में अस्वीकार की स्थिति को स्पष्ट करें?
उत्तर- नाटक स्वयं में एक जीवंत माध्यम है| कोई भी दो चरित्र जब आपस में मिलते हैं तो विचारों के आदान प्रदान में टकराहट होना स्वाभाविक है | यही कारण है कि रंगमंच प्रतिरोध का सबसे सशक्त माधयम है| वह कभी भी यथास्थिति को स्वीकार कर ही नहीं सकता| इस कारण उसमें अस्वीकार की स्थिति भी बराबर बनी रहती है| क्योंकि कोई भी जीता- जागता प्राणी वर्तमान परिस्थितियों को लेकर असंतुष्ट हुए बिना नहीं रह सकता| किसी नाटक में अस्वीकार की स्थिति जितनी ज़्यादा उपस्थित होगी वह उतना ही सशक्त नाटक सिद्ध होगा|
7.नाटक में समय का बंधन होता है इस तथ्य को स्पष्ट करें?
उत्तर- किसी भी नाटक की मूल विशेषता होती है समय| नाटक में समय की सीमा होती है | नाटक को इसकी समय सीमा से बढ़ाया नहीं जा सकता है | नाटक को निर्धारित समय के अंदर पूरा करना होता है | नाटक का विषय चाहे भूतकाल का हो या भविष्यकाल का दोनों ही स्थितियों में नाटक को वर्तमान काल में संयोजित करना होता है | यही कारण है कि मंच के निर्देश सदैव वर्तमान काल में लिखे जाते हैं | समय को लेकर एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि साहित्य की अन्य विधाओं यानि कहानी, उपन्यास या फिर कविता को हम वाचन या श्रवण करते हुए बीच में भी रोक सकते हैं ओर कुछ समय बाद वहीं से दोबारा पढ़ ओर सुन सकते हैं, पर नाटक के साथ ऐसा नहीं है
8. नाटक की शिल्प सरंचना पर प्रकाश डालिए |
उत्तर- नाटक के अंतर्गत सर्वप्रथम कहानी के रूप को किसी शिल्प फार्म अथवा सरंचना के भीतर पिरोना होता है | इसके लिए नाटक के शिल्प की जानकारी होना आवशयक होता है | यह बात सदैव ध्यान में रखनी चाहिए की नाटक का मंचन मंच पर होता है | इसलिए एक नाटकार को रचनाकार के साथ साथ कुशल संपादक भी होना चाहिए | घटनाओं, स्थितियों, दृश्यों का चयन, मंचन का क्रम आदि रखने का अनुभव ओर जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है, तभी नाटक सफल हो पाता है |
9.नाटक में शब्द का क्या महत्व है ?
उत्तर- ‘शब्द’ साहित्य की प्रत्येक विधा का आधारभूत अंग है | किन्तु नाटक ओर कविता के लिए शब्द का विशेष महत्व होया है | नाट्यशास्त्र में नाटक के अंतर्गत बोले जाने वाल शब्दों को नाटक का शरीर कहा जाता है | कहानी, उपन्यास, आदि में शब्दों के द्वारा किसी विशेष स्थिति, वातावरण या फिर कथानक का वर्णन, विश्लेषण आदि करते हैं | कविता लेखन के अंतर्गत शब्द, बिंबों, ओर प्रतीकों में बदलने की क्षमता भी रखते हैं ओर इसी कारण कविता ही नाटक के सबसे करीब जान पड़ती है | नाटक में प्रयुक्त शब्दों में दृश्यों को सर्जित करने की जबर्दस्त क्षमता होनी चाहिए जिससे वह लिखे ओर उच्चरित किए गए शब्दों से भी ज्यादा उस तथ्य को ध्वनि करें जो लिखा या बोला नहीं जा रहा है |
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