प्रश्न अभ्यास
1. संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है ?
उत्तर
संगतकार के माध्यम से कवि किसी भी कार्य अथवा कला में लगे सहायककर्मचारियों और कलाकारों की ओर संकेत कर रहा है। जैसे संगतकार मुख्य गायक के साथ मिलकर उसके सुरों में अपने सुरों को मिलाकर उसके गायन में नई जान फूँकता है और उसका सारा श्रेय मुख्य गायक को ही प्राप्त होता है।
2. संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं ?
उत्तर
संगतकार जैसे व्यक्ति निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलते हैं; जैसे -
1. सिनेमा के क्षेत्र में - फिल्म में अनेकों सह कलाकार, डुप्लीकेट, सह नर्तक व स्टंटमैन होते हैं।
2. भवन निर्माण क्षेत्र में -मज़दूर जो भवन का निर्माण करते हैं।
3. संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?
उत्तर
1. गायन के समय यदि गायक-गायिका का स्वर भारी हो तो संगतकार अपनी आवाज़ से उसमें मधुरता भर देता है।
2. जब गायन करते समय मुख्य गायक-गायिका अंतरे की जटिलता के कारण तानों में खो जाता है तो वह उसके स्थाई स्वरुप को सँभालते हुए गायन करता रहता है।
3. जब गायन करते समय मुख्य गायक-गायिका अपनी लय को लाँघकर भटक जाते हैं तो संगतकार उस भटकाव को सँभालता है।
4. तारसप्तक के गायन के समय गायक-गायिका का स्तर धीमा होने लगता है तो वह उसकी गायन में अपने स्तर को मिलाकर उसकी गति को सुर का साथ देता है।
4. भाव स्पष्ट कीजिए -
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियाँ 'मंगलेश डबराल' द्वारा रचित "संगतकार" कविता से ली गईहै। इसमें कवि द्वारा गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार कीभूमिका के महत्व को दर्शाया गया है। कवि कहता है कि संगतकार जब मुख्य गायक के पीछे-पीछे गाता है वह अपनी आवाज़ को मुख्य गायक की आवाज़ से अधिक ऊँचें स्वर में नहीं जाने देते ताकि मुख्य गायक की महत्ता कम न हो जाए। यही हिचक (संकोच) उसके गायन में झलक जाती है। वह कितना भी उत्तम हो परन्तु स्वयं को मुख्य गायक से कम ही रखता है। लेखक आगे कहता है कि यह उसकी असफलता का प्रमाण नहीं अपितु उसकी मनुष्यता का प्रमाण है कि वह शक्ति और प्रतिभा के रहते हुए स्वयं को ऊँचा नहीं उठाता,बल्कि अपने गुरु और स्वामी को महत्व देने की कोशिश करता है।
3. जब गायन करते समय मुख्य गायक-गायिका अपनी लय को लाँघकर भटक जाते हैं तो संगतकार उस भटकाव को सँभालता है।
4. तारसप्तक के गायन के समय गायक-गायिका का स्तर धीमा होने लगता है तो वह उसकी गायन में अपने स्तर को मिलाकर उसकी गति को सुर का साथ देता है।
4. भाव स्पष्ट कीजिए -
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियाँ 'मंगलेश डबराल' द्वारा रचित "संगतकार" कविता से ली गईहै। इसमें कवि द्वारा गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार कीभूमिका के महत्व को दर्शाया गया है। कवि कहता है कि संगतकार जब मुख्य गायक के पीछे-पीछे गाता है वह अपनी आवाज़ को मुख्य गायक की आवाज़ से अधिक ऊँचें स्वर में नहीं जाने देते ताकि मुख्य गायक की महत्ता कम न हो जाए। यही हिचक (संकोच) उसके गायन में झलक जाती है। वह कितना भी उत्तम हो परन्तु स्वयं को मुख्य गायक से कम ही रखता है। लेखक आगे कहता है कि यह उसकी असफलता का प्रमाण नहीं अपितु उसकी मनुष्यता का प्रमाण है कि वह शक्ति और प्रतिभा के रहते हुए स्वयं को ऊँचा नहीं उठाता,बल्कि अपने गुरु और स्वामी को महत्व देने की कोशिश करता है।
5. किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर
किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह सेयोगदान देते हैं। जैसे प्रसिद्ध गायक-गायिका जब प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं तो उसमें एक संगीत निर्देशक, गीतकार, तकनीकी साउंड डालने वाले, वाद्य यंत्र बजाने वाले, संगतकार, निर्माता का महत्वपूर्ण हाथ होता है जब तक इन सब लोगों का सहयोग प्राप्त न हो तो एक गायक-गायिका अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर सकते और इन्हीं सब के सहयोग द्वारा वह सफलता के शिखर तक पहुँच पाते हैं।
6. कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
तारसप्तक में गायन करते समय मुख्य गायक का स्वर बहुत ऊँचाई तक पहुँच जाता है। जिसके कारण स्वर के टूटने का आभास होने लगता है और इसी कारण वह अपने कंठ से ध्वनि का विस्तार करने में कमज़ोर हो जाता है। तब संगतकार उसके पीछे मुख्य धुन को दोहराता चलता है वह अपनी आवाज़ से उसके बिखराव को सँभाल लेता है।
7. सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं?
6. कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
तारसप्तक में गायन करते समय मुख्य गायक का स्वर बहुत ऊँचाई तक पहुँच जाता है। जिसके कारण स्वर के टूटने का आभास होने लगता है और इसी कारण वह अपने कंठ से ध्वनि का विस्तार करने में कमज़ोर हो जाता है। तब संगतकार उसके पीछे मुख्य धुन को दोहराता चलता है वह अपनी आवाज़ से उसके बिखराव को सँभाल लेता है।
7. सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं?
उत्तर
सफलता पर पहुँच कर यदि व्यक्ति लड़खड़ाने लग जाता है तो इसके सहयोगी अपने सुझावों द्वारा उसके कदमों को नई दिशा देते हैं, अपने मनोबल द्वारा इसके मनोबल को सँभालते हैं तथा उसका मार्गदर्शन करते हैं। उसकी खोई आत्मशक्ति को एकत्र कर और फिर से उठने की हिम्मत देते हैं वह उसकी प्रेरणा स्रोत बन उसके जीवन में नया संबल बनते हैं।
सार
इस कविता में कवि ने गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार कीमहत्ता का स्पष्ट किया है। कवि कहते हैं कि मुख्य गायक के गंभीर आवाज़का साथ संगतकार अपनी कमजोर किन्तु मधुर आवाज़ से देता है। अधिकांशत ये मुख्य गायक का छोटा भाई, चेला या कोई रिश्तेदार होता है जो की शुरू से ही उसके साथ आवाज़ मिलाता आ रहा है। जब मुख्य गायक गायन करते हुए सुरों की मोहक दुनिया में खो जाता है, उसी में रम जाता है तब संगतकार ही स्थायी इस प्रकार गाकर समां बांधे रखता है जैसे वह कोई छूटा हुआ सामान सँजोकर रख रहा हो। वह अपनी टेक से गायक को यह उन दिनों की याद दिलाता है जब उसने सीखना शुरू किया था।
कवि कहते हैं बहुत ऊँची आवाज़ में जब मुख्य गायक का स्वर उखड़ने लगता है और गला बैठने लगता है तब संगतकार अपनी कोमल आवाज़ का सहारा देकर उसे इस अवस्था से उबारने का प्रयास करता है। वह मुख्य गायक को स्थायी गाकर हिम्मत देता है की वह इस गायन जैसे अनुष्ठान में अकेला नहीं है। वह पुनः उन पंक्तियों को गाकर मुख्य गायक के बुझते हुए स्वर को सहयोग प्रदान करता है। इस समय उसके आवाज़ में एक झिझक से भी होती है की कहीं उसका स्वर मुख्य गायक के स्वर से ऊपर ना पहुँच जाए। ऐसा करने का मतलब यह नही है की उसके आवाज़ में कमजोरी है बल्कि वह आवाज़ नीची रखकर मुख्या गायक को सम्मान देता है। इसे कवि ने महानताबताया है।
कवि परिचय
मंगलेश डबराल
इनका जन्म सन 1948 में टिहरी गढ़वाल, उत्तरांचल के काफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा देहरादून में। दिल्ली आकर हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद ये पूर्वग्रह सहायक संपादक के रूप में जुड़े। इलाहबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की, बाद में सन 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद संभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादक रहने के बाद आजकल नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं।
प्रमुख कार्य
कविता संग्रह - पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं और आवाज़ भी एक जगह है।
पुरस्कार - साहित्य अकादमी पुरस्कार, पहल सम्मान।
कठिन शब्दों के अर्थ
• संगतकार - मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या वाद्य बजाने वाला कलाकार।
• गरज - उँची गंभीर आवाज़
• अंतरा - स्थायी या टेक को को छोड़कर गीत का चरण
• जटिल - कठिन
• तान - संगीत में स्वर का विस्तार
• सरगम - संगीत के सात स्वर
• अनहद - योग अथवा साधन की आनन्दायक स्थिति
• स्थायी - गीत का वह चरण जो बार-बार गाय जाता है, टेक
• नौसिखिया - जिसने अभी सीखना आरम्भ किया हो।
• तारसप्तक - काफी उँची आवाज़
• राख जैसा गिरता हुआ - बुझता हुआ स्वर
• ढाँढस बँधाना - तसल्ली देना
इस कविता में कवि ने गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार कीमहत्ता का स्पष्ट किया है। कवि कहते हैं कि मुख्य गायक के गंभीर आवाज़का साथ संगतकार अपनी कमजोर किन्तु मधुर आवाज़ से देता है। अधिकांशत ये मुख्य गायक का छोटा भाई, चेला या कोई रिश्तेदार होता है जो की शुरू से ही उसके साथ आवाज़ मिलाता आ रहा है। जब मुख्य गायक गायन करते हुए सुरों की मोहक दुनिया में खो जाता है, उसी में रम जाता है तब संगतकार ही स्थायी इस प्रकार गाकर समां बांधे रखता है जैसे वह कोई छूटा हुआ सामान सँजोकर रख रहा हो। वह अपनी टेक से गायक को यह उन दिनों की याद दिलाता है जब उसने सीखना शुरू किया था।
कवि कहते हैं बहुत ऊँची आवाज़ में जब मुख्य गायक का स्वर उखड़ने लगता है और गला बैठने लगता है तब संगतकार अपनी कोमल आवाज़ का सहारा देकर उसे इस अवस्था से उबारने का प्रयास करता है। वह मुख्य गायक को स्थायी गाकर हिम्मत देता है की वह इस गायन जैसे अनुष्ठान में अकेला नहीं है। वह पुनः उन पंक्तियों को गाकर मुख्य गायक के बुझते हुए स्वर को सहयोग प्रदान करता है। इस समय उसके आवाज़ में एक झिझक से भी होती है की कहीं उसका स्वर मुख्य गायक के स्वर से ऊपर ना पहुँच जाए। ऐसा करने का मतलब यह नही है की उसके आवाज़ में कमजोरी है बल्कि वह आवाज़ नीची रखकर मुख्या गायक को सम्मान देता है। इसे कवि ने महानताबताया है।
कवि परिचय
मंगलेश डबराल
इनका जन्म सन 1948 में टिहरी गढ़वाल, उत्तरांचल के काफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा देहरादून में। दिल्ली आकर हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद ये पूर्वग्रह सहायक संपादक के रूप में जुड़े। इलाहबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की, बाद में सन 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद संभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादक रहने के बाद आजकल नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं।
प्रमुख कार्य
कविता संग्रह - पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं और आवाज़ भी एक जगह है।
पुरस्कार - साहित्य अकादमी पुरस्कार, पहल सम्मान।
कठिन शब्दों के अर्थ
• संगतकार - मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या वाद्य बजाने वाला कलाकार।
• गरज - उँची गंभीर आवाज़
• अंतरा - स्थायी या टेक को को छोड़कर गीत का चरण
• जटिल - कठिन
• तान - संगीत में स्वर का विस्तार
• सरगम - संगीत के सात स्वर
• अनहद - योग अथवा साधन की आनन्दायक स्थिति
• स्थायी - गीत का वह चरण जो बार-बार गाय जाता है, टेक
• नौसिखिया - जिसने अभी सीखना आरम्भ किया हो।
• तारसप्तक - काफी उँची आवाज़
• राख जैसा गिरता हुआ - बुझता हुआ स्वर
• ढाँढस बँधाना - तसल्ली देना
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