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Tuesday, 3 March 2020

सम्पूर्ण आत्मपरिचय - हरिवंश राय बच्चन

आत्मपरिचय – हरिवंश राय बच्चन
केंद्रीय भाव

अपने को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है।
समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा – मीठा होता है।
जगजीवन से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं है।
दुनिया अपने व्यंग्य – बाण और शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य नहीं रह पाता ।
व्यक्ति की अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है ।
कवि का दुनिया से द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंध है।
दुनिया से कवि का संबंध प्रीति कलह का है।
कवि का जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है।
वह उन्माद में अवसाद , रोदन में राग, शीतल वाणी में आग लिए हुए है।
परस्पर विरोधी स्थितियों को साधते-साधते बेखुदी, मस्ती और दीवानगी उसका व्यक्तित्व बन गया है।
वह किसी असंभव आदर्श की तलाश में है।
कवि जब संसार को अपने आदर्श के अनुरूप नहीं पाता तो वह उसकी परवाह नहीं करता ।

काव्य सौंदर्य संबंधी बिंदु :
भाषा- खड़ी बोली हिंदी का साहित्यिक रूप I
सीधी-सादी सरल जीवंत भाषा पाठक के मर्म को छूती है I भाषा की सरलता आपबीती का भी एहसास कराती है I
संवेदनशील गेय शैली है I आत्मपरिचय कविता आत्मकथात्मक शैली में रचित है I
मुक्त छंद में लयबद्धता है I
कविता का वाचन करते-करते काव्य पाठ की इच्छा जाग्रत होती है I
छंद में भावों को ऐसा पिरोया गया है कि एक-एक शब्द अपना भाव स्पष्ट कर रहा है I
प्रत्येक पंक्ति में ‘मैं’ शब्द का प्रयोग आत्मपरिचय के रूप में अलंकृत, अलंकारों का सहज प्रयोग है I
अनुप्रास- जगजीवन, स्नेह-सुरा I
पुनरोक्ति-  (1) लिए फिरता हूँ, लिए फिरता हूँ I
   (2) निज उर के, निज उर के I
समस्त पद- जग-जीवन, स्नेह-सुरा I
विरोधाभास- जग जीवन का भर लिए फिरता हूँ,
   फिर भी जीवन में भार लिए फिरता हूँ i
संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त भाषा I
छंद छोटे-छोटे मगर गहन भाव वहन कर रहे हैं I
कवि ने अपनी परवाह न करके संसार की पीड़ा को काव्यबद्ध किया है I

आत्मपरिचय – हरिवंश राय बच्चन
1.
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर,
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ।
मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता,
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।

 उपरोक्त काव्य-खंड को पढ़ कर निम्नलिखित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर लिखें –

कवि अपने हृदय में क्या  लिए फिरता है ?
कवि ने इस जगत को अपूर्ण क्यों कहा है ?
कवि का जग से कैसा रिश्ता है ?
विरोधों के बीच कवि का जीवन किस प्रकार व्यतीत होता है ?

2.
मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता,
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।

   उपरोक्त काव्य-खंड  को पढ़ कर काव्य सौन्दर्य पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर
   लिखें-
काव्यांश से अनुप्रास अलंकार के दो उदाहरण चुनकर लिखिए।
रूपक अलंकार का उदाहरण चुनकर उसका सौन्दर्य समझाइए।
काव्यांश की भाषा पर टिप्पणी कीजिए ।





3.
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ ;
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता,
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ !

मैं जला हृदय से अग्नि, दहा करता हूँ ,
सुख-दुःख दोनों में मग्न रहा करता हूँ ;
जग भव सागर तरने को नाव बनाए,
         मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ !
   उपरोक्त काव्य-खंड  को पढ़ कर निम्नलिखित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर लिखें –
कवि को यह संसार अच्छा क्यों नहीं लगता ?
सुख-दुः ख  मे मग्न रहने का क्या तरीका है ? आत्मपरिचय कविता के आधार पर व्यक्त करें
कवि अपने हृदय में किन भावों को धारण किये हुए है ?
आशय स्पष्ट कीजिए-
‘मैं भव मौजों  पर मस्त बहा करता हूँ’
4.
मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ।
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना ?
नादान वहीं है हाय जहाँ पर दाना।
फिर मूढ़ न क्या जग जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना ।
    उपरोक्त काव्य-खंड  को पढ़ कर काव्य सौन्दर्य पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर
    लिखें-
काव्यांश की भाषागत विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए ।
‘उन्मादों में अवसाद’ का अलंकार सौन्दर्य स्पष्ट करें ।
सीखा ज्ञान भुलाना” में ज्ञान किसका प्रतीक है ?
5.
मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता,
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता ।

   उपरोक्त काव्य-खंड  को पढ़ कर काव्य सौन्दर्य पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर
   लिखें-
काव्यांश के अलंकार सौन्दर्य पर टिप्पणी कीजिए ।
काव्यांश की भाषा की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
काव्यांश का भाव-सौन्दर्य लिखिए।


6.
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं  वह खँडहर का भाग लिए फिरता हूँ


   उपरोक्त काव्य-खंड  को पढ़ कर निम्नलिखित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर लिखें –
शीतल वाणी में आग का क्या तात्पर्य है ?
कवि ने खंडहर का भाग किसे कहा है और क्यों?
राजमहल न्यौछावर होने से क्या आशय है और वे किस पर न्यौछावर होते है ?
‘मेरा जीवन विरुध्दों ‍‌‍‌‍का सामंजस्य है’ – यह बात कवि ने कैसे समझाई है ।






7.
मैं रोया, इसको  तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाये.
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना !
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का सन्देश लिए फिरता हूँ !
  उपरोक्त काव्य-खंड  को पढ़ कर अर्थग्रहण सौन्दर्य पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के
  उत्तर लिखें –
 ‘मैं फूट पड़ा, तुम कहते छंद बनाना’ प्रस्तुत पंक्तियों में कवि का विरोधाभास बताइये/ स्पष्ट कीजिए  I
‘मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना’ में कवि अपने व्यक्तित्व की कौन सी विशेषता बताना चाहता है ?
‘झूम, झुके, लहराए’ शब्दों के अर्थ से कवि मन के किन भावों को व्यक्त करता है ?
8.
मैं रोया, इसको  तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाये.
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना !
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का सन्देश लिए फिरता हूँ !
    उपरोक्त काव्य-खंड  को पढ़ कर काव्य सौन्दर्य पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर
    लिखें –
काव्यांश की भाषा की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए  I
कविता में कवि ने कौन सी शैली का प्रयोग किया है?
प्रयुक्त अलंकारों को स्पष्ट कीजिए
उत्तर

आत्मपरिचय – हरिवंश राय बच्चन

1.

उत्तर-
कवि अपने ह्रदय में भावों, अनुभूतियों और ह्रदय की सौगात लिए फिरता है ।  उसकी ख़ुशी ने उसे जो उपहार दिए है, उन्हें वह अपने ह्रदय में लिए फिरता है ।
क्योंकि यह संसार विभिन्न प्रकार के अभावों से भरा हुआ है ।  कुछ भी अपने आदर्श रूप में नहीं है।
कवि ने संसार के साथ प्रीति और कलह के संबंध बताये है।  दोनों एक दूसरे को अन्य या और मानते है ।  कवि प्रतिदिन अपनी कल्पना में ऐसे संसार बनता और मिटाता है।
कवि अपने सांसारिक जीवन में संसार रूपी समस्याओं कष्टों को लिए विचरण करता है फिर भी वह अपने जीवन में प्रेम को महत्त्व देता है ।  उसके जीवन में समस्याओं के साथ-साथ प्रेम की भावना भी है ।

2.
उत्तर-
अनुप्रास अलंकार
- पान किया करता हूँ
- मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ
   2. रूपक अलंकार
- ‘स्नेह-सुरा’ अर्थात स्नेह रूपी सुरा।  कवि प्रेम रूपी मदिरा का पान कर उसी में मस्त
     रहना चाहता है।
   3. आम बोल चाल की खड़ी बोली हिंदी
तुकांत रचना
गीतात्मकता





3.
उत्तर-
कवि को अपूर्ण संसार अच्छा नहीं लगता है क्योंकि उसका अपने सपनों का संसार है ।  यह लौकिक संसार उसके सपनों के संसार के अनुरूप नहीं है । लौकिक संसार उसके सपनों की कसौटी पर पूरा नही उतरता है ।
कवि सुख की स्थिति में अभिमान नहीं करता और दुःख की स्थिति में रोता नहीं । दोनों ही स्थितियों में वह सामान्य रहता है ।  वह अपना सपनों का संसार खुद ही बनाता रहता है।
कवि अपने ह्रदय में भावों, अनुभूतियों और प्रेम की सौगात लिए फिरता है ।  उसकी ख़ुशी ने उसे जो उपहार दिया है, उसे वह अपने ह्रदय में लिए फिरता है ।
कवि संसार रूपी लहरों पर बेफिक्र होकर बहता है अर्थात् कवि सांसारिक क्रिया-कलापों से बेपरवाह रहता है ।
4.
उत्तर-
आम बोल चाल की खड़ी बोली हिंदी
तुकांत रचना
गीतात्मकता
विरोधाभास अलंकार है क्योंकि एक तरफ तो वह बहुत खुश/उत्साहित है दूसरी तरफ अवसाद है ।
यहाँ ज्ञान सांसारिकता का प्रतीक है ।

5.
उत्तर-
 अनुप्रास अलंकार -   ‘जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा’
 पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार- ‘बना-बना’
 आम बोल चाल की खड़ी बोली हिंदी  
 ‘और’ शब्द की आवृत्ति से ध्वनि/ अर्थ संबंधी चमत्कार
 कवि और संसार के बीच वैचारिक भिन्नता
 सांसारिकता और भौतिकता की उपेक्षा

6.
उत्तर-
 कवि का स्वर कोमल, शीतल, मधुर है परन्तु प्रिय को न पाने की वेदना
 उतनी ही प्रबल है ।
 व्यवहार में विनम्रता है परन्तु विचारों में उष्णता है ।
 असफल प्रेम को
 उसके हृदय में असफल प्रेम की यादें शेष रह गयी है ।
 बड़े-बड़े राजाओं का साम्राज्य भी प्रेम पर न्यौछावर हो गया क्योंकि राजा  
 प्रेम के आवेग में राजगद्दी छोड़ने को तैयार हो जाते है ।
 रोदन में आग
 शीतल वाणी में आग

7.
उत्तर-
कवि जब अपने दुखों की अनुभूति को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्ति देता है तो लोग इसे कविता अर्थात छंद बनाना मानते है।  कवि जब अपने मनोभावों को व्यक्त करता है तो लोग उसे उसका कविता रचना मानते है ।
‘मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना’ के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि उसमें भरपूर मस्ती और मादकता है।  वह प्रेमरूपी मदिरा का पान किया है और प्रेम के गीत सारी दुनिया को  सुनाता है जिसे सुनकर सारी दुनिया झूम उठती है ।
कवि अपने प्रेम रूपी दुनिया में डूबा रहता है जिसे वह कविता द्वारा लोंगों तक पहुँचाता है जिसे सुनकर सारी दुनिया झूम उठती है ।

8.
उत्तर-
आम बोल चाल की खड़ी बोली हिंदी
तुकांत रचना
गीतात्मकता
यह गीतात्मकता शैली में लिखा गया है।
‘रोदन में राग’ में विरोधाभास अलंकार है ।


निम्नलिखित शब्‍दों के  अर्थ लिखिए  –

1 झंकृत                         ………………………………………..
2 सुरा ……………………………………….
3 उद्गार …………………………………… …….
4 निःशेष ………………………………….
5 उन्माद …………………………..
6 अवसाद                       …………………………………
7 नादान     …………………………….
8 वैभव     ……………………………
9 प्रासाद     ………………………..
10 भूपों     ……………………











प्रश्न बैंक

1- आत्म परिचय की प्रकृति है - गीत
2- आत्मपरिचय गीत संकलित है- निशा निमंत्रण में 1969 में संकलित किया गया
3- आत्मपरिचय पूरे गीत में एक विरोधाभास झलकता है जैसे उन्मादों में अवसाद, रोदन में राग, शीतल वाणी में आग
4- कवि ने दुनिया से अपना संबंध बताया है - प्रीतिकलह का
5- कवि ने अपने जीवन को बताया है- विरुद्धों का सामंजस्य
6- आत्मपरिचय की शैली है- गेय एवं आत्म कथात्मक शैली
7- आत्म परिचय कविता का सार तत्व है- विरुद्धों का सामंजस्य
8- आत्म परिचय कविता के कितने पद संकलित है - 5 पद
9- कवि बच्चन किस संबोधन को अस्वीकार करता है - कवि के संबोधन को
10- आत्म परिचय का प्रकाशन वर्ष- 1969
11- "मैं सांसो के दो तार लिए फिरता हूँ " यहां सांसो के दो तार प्रतीक है- जीवन की स्मृतियों के
12- कवि किसका ध्यान नहीं करता है - जग का ध्यान
13- कवि के अनुसार जग किसको पूछता है - जो जग का गीत गाते हैं
14- कवि किसका गान करता है- अपने मन का
15- "मैं निज उर के उदगार लिए फिरता हूँ " यहां उर के उद्गार से तात्पर्य है - हृदय का प्रेम
16- "मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ " यहां निज उर के उपहार से तात्पर्य है - अपने स्वयं के मन के विचार
17- कवि निज उर के उपहार लिए क्यों फिरता है - क्योंकि कवि अपने हृदय के प्रेम को किसी अन्य को देना चाहता है
18- कवि को कैसा संसार नहीं भाता है - अपूर्ण संसार
19- "उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ " कौन सा अवसाद- पत्नी से बिछोह का
20- "मैं, हाय किसी की याद लिए फिरता हूँ " किसकी याद - अपनी पत्नी की
21- "उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ " किसका उन्माद - यौवन अर्थात जवानी का
22- कवि अवसादग्रस्त क्यों हैं - प्रियतम अर्थात पत्नी की विरह-व्यथा के कारण
23- "नादान वही है, हाय जहां पर दाना" यहां दाना शब्द का अर्थ है- जहाँ कहीं मनुष्य को विद्वत्ता ‌का अहंकार है वास्तव में वही नादानी का सबसे बड़ा लक्षण है।
24- "मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता" यहां उस से तात्पर्य है- धन दौलत और वैभव से युक्त
25- "मैं बना बना कितने जग रोज मिटाता" यहां जब से तात्पर्य है- नए आदर्श (पूरी तरह से संतुष्ट नहीं होने के कारण उन आदर्शों को मिटा देता हूँ ) 
26- "मैं सीख रहा हूँ  सीखा ज्ञान भुलाना" यहां पर सीखा ज्ञान से तात्पर्य है - पुरानी बातें
27- "नादान वही है, हाय, जहां पर दाना" यहां दाना शब्द का अर्थ है- जहाँ कहीं मनुष्य को विद्वत्ता ‌का अहंकार है वास्तव में वही नादानी का सबसे बड़ा लक्षण है।
28- "कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना" पंक्ति में कवि किस सत्य की ओर इशारा कर रहा है- जीवन सत्य की ओर (जन्म-मरण)
29- कवि ने नादान किसे कहा है - जो जानबूझकर सांसारिक लोभ मोह के चक्कर में उलझे रहते हैं
30- "फिर मूढ़ क्या जग जो इस पर भी सीखे" यहां मूढ़ का अर्थ है – मूर्ख/ अज्ञानी (मोहमाया के कारण)
31- "मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ, शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ" पंक्ति में अलंकार है- विरोधाभास
32- "शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ " आग से तात्पर्य है- विरह
33- "हो जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर" किस पर- खंडहर पर (प्रेम की बिखरी हुई स्मृतियों पर)
34- "मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ " यहां पर खंडहर किसे कहा है- प्रेम से परिपूर्ण दुख को/ अपने जीवन को/ जीवन की अंतिम अवस्था को
35-"इसको तुम कहते हो गाना" किसको - कवि के रोने को
36- मैं फूट पड़ा तुम कहते छंद बनाना छंद बनाना से तात्पर्य है काव्य रचना करना
37- कवि ने स्वयं को कौन सी उपाधि दी है - दुनिया का एक नया दीवाना
38- कवि ने स्वयं को दीवाना क्यों कहा है - प्रेम की मदिरा का सेवन कर झूमने के कारण
39- संसार के लोग क्या सुनकर झूमने लगते हैं - प्रेम गीत सुनकर
40- कवि किस का गान किया करता है - अपने मन का
41- कवि अंत में कौन सा संदेश लिए फिरता है- मस्ती का
42- कवि किस का भार लिए फिरता है - जगजीवन का
43- "मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूँ " पंक्ति में भाव है- कुंठा का
44- कवि ने सुरा किसे कहा है- स्नेह को
45- कवि सदा किसका ध्यान किया करता है - भावनाओं का
46- "दोनों में मग्न रहा करता हूँ " यहां दोनों से तात्पर्य है - सुख और दुख
47- "संसार ना भाता मुझको" क्यों - अपूर्ण होने के कारण
48- कवि ने संसार को अपूर्ण क्यों कहा है - अपनी पत्नी की मृत्यु के कारण
49- कवि अपने अपूर्ण संसार की पूर्ति किससे करता है - स्वप्न के संसार से
50- इस गीत में लक्षणा शब्द शक्ति, माधुर्य गुण और शांत रस की अभिव्यंजना हुई है।
51- कवि के अनुसार दुनिया को जानने से भी ज्यादा कठिन क्या है- स्वयं को जानना


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